व्यक्ति चाहे नारी हो या पुरुष , उसके मन में सौंदर्य के प्रति आकर्षण सहज और स्वाभाविक है। इस तथ्य की पुष्टि इस बात से भी होती है कि कोई व्यक्ति कभी भी जानबूझकर असुंदर नहीं लगना चाहता। मनोविज्ञान की दृष्टि से देखें तो यह भी सुंदरता के प्रति उत्कट आकर्षण का ही नतीजा है। लेकिन असुंदर या कम सुंदर व्यक्तियों ने अपने जीवन में ऐसी अन्यतम उपलब्धियां अर्जित कीं कि वे भी अपने महत्वपूर्ण कार्यों से सुंदर लोगों की श्रेणी में गिने जाने लगे। इसलिए सौंदर्य की हमारी परिभाषा सिर्फ बाहरी सौंदर्य तक सीमित नहीं है। आंतरिक सौंदर्य ही किसी व्यक्ति को आकर्षक बनाता है।
सौंंदर्य की परिभाषा
ईश्वर की कोई भी कृति असुंदर नहीं है। हम कम सुंदर कह सकते हैं किन्तु किसी को भी असुंदर नहीं कहा जा सकता। सौंदर्य की हमारी परिभाषा सिर्फ बाहरी सौंदर्य तक सीमित नहीं है। आंतरिक सौंदर्य ही किसी व्यक्ति को आकर्षक बनाता है। इसीलिए महान व्यक्ति हमें प्रिय लगते हैं। हम उनके आचरण और गुणों को देखते हैं और उनका बाहरी रूपाकार हमारे लिए मायने नहीं रखता। व्यक्ति का बाहरी सौंदर्य भले ही शुरुआती दौर में दूसरों को आकर्षित करता है, पर अंतत: आंतरिक सौंदर्य ही किसी व्यक्ति को हमारे जीवन में स्थायी महत्व दिलाता है। आंतरिक सौंदर्य केे सामने बाहरी सौंदर्य बौना नजर आता है।
सुंदरता हर किसी को मोहती है। यह कुदरत का अटूट नियम है कि किसी व्यक्ति की पहली इमेज उसके बाहरी प्रत्यक्ष रूप से ही बनती है। इस बात पर एक लंबी दार्शनिक बहस चलती रहती है है कि सौंदर्य वस्तु में होता है या दृष्टा की आंखों में , लेकिन इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि सौंदर्य में ही जीवन रस मौजूद होता है। वही हमें तत्काल दूसरों से जोड़ता है। मानव से मानव के बीच संवाद का यह पहला पुल है, इसलिए बायोलॉजी से लेकर समाज तक इसकी ताकत बेमिसाल है।
किसी व्यक्ति का बाहरी सौंदर्य उसके संपर्क में आने वाले व्यक्ति को प्रभावित करता है और उसमें अनायास उत्साह, स्फूर्ति और उत्कट आकर्षण भाव का संचरण करता है। व्यक्ति चाहे नारी हो या पुरुष, उसके मन में सौंदर्य के प्रति आकर्षण सहज और स्वाभाविक है। इस तथ्य की पुष्टि इस बात से भी होती है कि कोई व्यक्ति कभी भी जानबूझकर असुंदर नहीं लगना चाहता। मनोविज्ञान की दृष्टि से देखें तो यह भी सुंदरता के प्रति उत्कट आकर्षण का ही नतीजा है। लेकिन असुंदर या कम सुंदर व्यक्तियों ने अपने जीवन में ऐसी अन्यतम उपलब्धियां अर्जित कीं कि वे भी अपने महत्वपूर्ण कार्यों से सुंदर लोगों की श्रेणी में गिने जाने लगे। इसलिए सौंदर्य की हमारी परिभाषा सिर्फ बाहरी सौंदर्य तक सीमित नहीं है। आंतरिक सौंदर्य ही किसी व्यक्ति को आकर्षक बनाता है। इसीलिए महान व्यक्ति हमें प्रिय लगते हैं। हम उनके आचरण और गुणों को देखते हैं और उनका बाहरी रूपाकार हमारे लिए मायने नहीं रखता।
व्यक्ति का बाहरी सौंदर्य भले ही शुरुआती दौर में दूसरों को आकर्षित करता है, पर अंतत: आंतरिक सौंदर्य ही किसी व्यक्ति को हमारे जीवन में स्थायी महत्व दिलाता है। प्रेम, परोपकार, करुणा, सहानुभूति, ममता, क्षमा व त्याग आदि जैसी आंतरिक विशेषताओं व गुणों से संपन्न व्यक्ति ऐसा प्रभाव छोड़ता है कि उसका साधारण रंगरूप भी दूसरों पर गहरा असर छोड़ता है। व्यक्ति का बाहरी सौंदर्य दूसरों को एक बार आकर्षित तो कर सकता है, पर आत्मीयता व घनिष्ठता कायम करने के लिए अंतत: आंतरिक गुण ही काम आते हैं। बाहरी रूप आकांक्षाओं की कुछ हद तक पूर्ति कर सकता है, लेकिन चारित्रिक गुण सामाजिक मूल्यों के विकास में योगदान देकर अपनी उपादेयता सिद्ध करते हैं। जिस तरह शारीरिक सुंदरता को उसकी उचित देखभाल से बढ़ाया जा सकता है, ठीक उसी तरह आंतरिक सौंदर्य को निखारने-संवारने के लिए चारित्रिक गुणों की आवश्यकता होती है।
भारत के राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, रहाकवि कालिदास, दार्शनिक सुकरात, हास्य सम्राट चार्ली चैपलिन, अब्राहम लिंकन, नेपोलियन आदि महापुरुषों ने अपनी बाहरी कुरुपता व साधारण कद काठी की भरपाई अपने-अपने क्षेत्र में अर्जित महान उपलब्धियों के जरिए की थी। ऐसी और भी कितनी ही महाविभूतियां हैं जो बाहरी सौंदर्य के मानदंडों पर कहीं भी नहीं ठहरतीं। लेकिन उन्होंने अपने आंतरिक गुणों व विशेषताओं की प्रखरता से ऐसा मुकाम हासिल किया जो उन्हें इतिहास पुरुष बना गया। आंतरिक सौंदर्य से भरपूर व्यक्ति के बाहरी चेहरे मोहरे, वेश-भूषा व हावभाव पर इतना ध्यान ही नहीं जाता, हम उसके आंतरिक व्यक्तित्व की चमक से इतने अभिभूत होते हैं कि वे हर हालत में हमें सुंदर ही लगते हैं, जबकि केवल अपने बाहरी व्यक्तित्व से आकर्षित करने वाले व्यक्ति पर हमारी पैनी निगाह टिकी रहती है। किसी भी छोटी-मोटी कमी या त्रुटि के कारण उसका आकर्षण हमारी नजरों में कम होने लगता है और कुछ समय बाद उसकी छवि धूमिल हो जाती है। इसकी अनगिनत मिसालें हम आए दिन देखते हैं। कोई अपराधी भले ही कितना रूपवान हो, हमें आकर्षक नहीं लगता। लेकिन हमारे आसपास के सामान्य लोग भी हमारे आत्मीय बन जाते हैं।
गुणों के सामने व्यक्ति का रूपाकार एक सीमा के बाद बेमानी हो जाता है और अंतत: वही हमारे जीवन में बसता है , जो हमारी आत्मा को छू लेता है। इसीलिए महापुरुषों ने बाहरी सुंदरता का बखान नहीं किया है, बल्कि कई बार उसे व्यक्ति के विकास में बाधा भी माना गया है। जो लोग रूप पर टिके रह जाते हैं , वे अपनी आंतरिक क्षमताओं की तलाश नहीं कर पाते। रूप उनके लिए एक ऐसा जाल बन जाता है, जिसे तोड़ना आसान नहीं होता। इसके उलट शरीर से निर्विकार रह कर मन की ताकत पर एकाग्र रहने वाले लोग महानता के शिखर चढ़ जाते हैं। तो भी सामान्य लोग इन दोनों सुंदरताओं के बीच संतुलन साध कर अपने जीवन को सार्थक, आकर्षक और प्रिय बना सकते हैं।
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