तीन लोक, नवखण्ड में, गुरू से बडा न को। करता करे न कर सके, गुरू करे सो होये।। In the three worlds, Navakhand, no one is greater than the guru. If you can't do it, Guru should do it.
नई शिक्षा के लिए ओशो एक नए तरह के शिक्षक की विचारधारा देते हैं- नो टीचर। एक ऐसा शिक्षक जो शिक्षक से अधिक एक मार्ग दर्शक हो। वे कहते हैं- अगर एक विद्यार्थी गणित में कमजोर है, तो शिक्षा को यह जोर देने की जरूरत नहीं है कि वह गण्ति में मजबूत होगा तभी वह स्कूल से बाहर निकल सकता था। नहीं, कोई जरूरत नहीं है। गणित कोई ऐसा विषय बात है कि उसके बिना जिंदगी नहीं हो सकती।
शिक्षक, शिक्षा व्यवस्था के सुधार के तल पर भी लागू होते हैं। इस नई शिक्षा के लिए ओशो एक नए तरह के शिक्षक की विचारधारा देते हैं- नो टीचर। एक ऐसा शिक्षक जो शिक्षक से अधिक एक मार्ग दर्शक हो। वे कहते हैं-अगर एक विद्यार्थी गणित में कमजोर है, तो शिक्षा को यह जोर देने की जरूरत नहीं है कि वह गण्ति में मजबूत होगा तभी वह स्कूल से बाहर निकल सकता था। नहीं, कोई जरूरत नहीं है। गणित कोई ऐसा विषय नहीं है कि उसके बिना जिंदगी नहीं हो सकती। और हमारे जोर देने से भी कुछ बहुत फर्क पड़ने वाला नहीं है। सिर्फ एक फर्क पड़ेगा कि वह व्यक्ति एक इंफीरिआरिटी काम्प्लैक्स लेकर, एक हीन भावना का भाव लेकर दुनिया में जाएगा कि मैं कमजोर हूं गणित में, और यह भाव जिंदगी में दूसरे तरफ भी हराने वाला भाव बन जाएगा।
बार-बार एक व्यक्ति को उसकी कमी का अहसास कराना, उसके आत्मविश्वास को ठेस पहुंचाना है। गणित में होशियार न होना, कोई कमजोरी नहीं है। ईश्वर ने अपनी प्रत्येक कृति को यूनिक बनाया है। जिसे हम पहचान नहीं पाते हैं। जिसे हम इनट्रस्ट कहते हैं।
इसलिए जो व्यक्ति हो सकता है- तो मेरी दृष्टि में ऐसा मालूम पड़ता है, जो मैं अंतिम बार करना चाहता हूं वह यह कि सबसे पहला काम तो यह कि प्राथमिक स्कूल जहां हम पहली दफा बच्चों से साक्षात्कार करते हैं, जहां छोटे बच्चे पहले दफे पुरानी पीढ़ी के आमने-सामने खड़े होते हैं, जहां एन्काउंटर शुरू होता है, वहां श्रेष्ठतम शिक्षक होने चाहिए।
ओशो कहते हैं-
अभी हमने वहां निष्कृष्टतम शिक्षक बिठा रखे हैं जिनको हम यूनिवर्सिटीज में बिठाए हुए हैं उनको सबको प्राइमरी स्कूल में होना चाहिए। क्योंकि वहां पहला मुकाबला है, पुरानी पीढ़ी का नयी पीढ़ी से। वहां पुरानी पीढ़ी को अपना श्रेष्ठतम व्यक्ति खड़ा करना चाहिए क्योंकि वह अनुभव सदा के लिए कीमती होगा। लेकिन हमारा ऐसा ख्याल है, प्राथमिक शिक्षक तो कोई होना न चाहे। यूनिवर्सिटीज में भी जो शिक्षक जरा दो चार साल आगे हुआ कि वह कहता है अंडर ग्रेजुएट नहीं पढ़ायेंगे, तो पोस्ट ग्रेजुएट पढ़ायेंगे। अंडर ग्रेजुएट बेइज्जती है पढ़ाने को। जबकि सच्चाई यह है कि प्राथमिक स्कूल से ज्यादा कठिन और कोई बात नहीं है। बाद में सब सरल होता चला जाता है। असली सवाल वहां है जहां बिल्कुल नयी पीढ़ी, कच्ची पीढ़ी पुरानी पीढ़ी के सामने खड़ी होती है, वहां श्रेष्ठतम होने चाहिए।
देश में हमें सारे मनोवैज्ञानिकों को प्राथमिक स्कूल में उलझा देना चाहिए कि वहां खोज लें कि व्यक्ति हो क्या सकता है। वे चार वर्ष दो काम के लिए होने चाहिए, एक तो यह कि जिसको बहुत प्राथमिक ज्ञान कहें, जो जिंदगी के लिए सबको जरूरी होगा, वह दे दें। दूसरी, उससे भी कीमती बात कि हम चार वर्ष में यह खोज लें कि यह व्यक्ति हो क्या सकता है, इसकी संभावना क्या है। ताकि हम उसे मार्ग दे सकें।
मेरी अपनी समझ यह है कि प्राथमिक शिक्षा पर सबसे पहले ध्यान दिया जाना जरूरी है क्योंकि प्राथमिक शिक्षक सबसे महत्वपूर्ण शिक्षक है और वहां हमें श्रेष्ठतम लोगों को खड़ा कर देना चाहिए। इधर मैं ऐसा सोचता हूं तभी संभव हो सकेगा जबकि हम प्राथमिक स्कूल में कोई पढ़ाता है उस हिसाब में उसकी तनख्वाह तय न करे बल्कि तनख्वाह उसे इस हिसाब से तय करें कि वह आदमी क्या है? वह चाहे यूनिवर्सिटी पढ़ाये और चाहे पहली कक्षा में पढ़ाये और श्रेष्ठतम को हम नीचे ले आयें। असल में बुनियाद के पास श्रेष्ठ तक होने चाहिए, शिखर तो संभल सकता है।
-ओशो
कहा जाये तो एक शिक्षक समाज का शिल्पकार होता है। शिक्षक का स्थान, ईश्वर से भी पहले आता है, शिक्षक ही समाज की सीमाएं तय करता है। यदि बच्चों में संस्कार अच्छे डाले गये हैं तो समाज की कोई भी बुराई उस पर हावी नहीं हो सकती। यदि हम इतिहास देखें तो गुलामी के समय में इतने महापुरूष, स्वामी विवेकानंद, राजाराम मोहन राय, दयानंद सरस्वती आदि हुए, जिनके बारे में बच्चों को बताया ही नहीं जाता। पढाया ही नहीं जाता। न ही पैरेंटस देखने और जानने की कोशिश करते हैं कि हमारे बच्चों को क्या पढाया जा रहा है। सभी बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर बनाना चाहते हैं, कोई जानना ही नहीं चाहता कि बच्चा क्या चाहता है?
बच्चों का जीवन एक खाली मैदान में बहते पानी सा हो गया है। उन्हें अपने धर्म संस्कृति के बारे में कुछ पता ही नहीं। वह भारतीय संस्कृति के अनुसार चलने में शर्म महसूस करते हैं। पश्चिमी कल्चर उन्हें अधिक आकषिर्त करता है। देश के लोंगों के नजरिये को बदला, समाज सुधार के आन्दोलन चलाये। उन्होंने हमें हमारी संस्कृति और संस्कारों से परिचय कराया। आज वास्तव में शिक्षा नीति को बदलने की आवश्यकता है। तकनीकि आधार पर जो शिक्षा दी जा रही है वह ठीक है, लेकिन जिस स्तर से समाज दूषित हो रहा है, नैतिकता का स्तर दिनों-दिन गिरता जा रहा है। समाज में कुछ जीवन मूल्य तय होने चाहिए।
बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना चाहिए। विदयार्थी जीवन, जीवन की नींव होता है। नींव जितनी मजबूत और गहरी होगी, इमारत उतनी ही मजबूत होगी। आज शिक्षक बच्चों को डांट नहीं सकते, यदि ऐसा करते भी हैं तो अभिभावक शिकायत लेकर स्कूल पहुंच जाते हैं। अभिभावक स्वयं शिक्षक का आदर नहीं करते, बच्चों के सामने ही उनका अनादर करने से नहीं चूकते। इस व्यवहार के कारण ही यह व्यवस्था एक व्यवसाय बनती जा रही है।
शिक्षक भी बच्चों के सामने पेरेंटस को उचित आदर नहीं दे पाते, दोनों एक दूसरे को टोपी पहनाने की कोशिश करते हैं। इसमें बच्चाें पर बुरा प्रभाव पडता है। मेरी अपनी निजी राय है कि पैरेंटस मीटिंग, शिक्षक और पैंरेंटस के बीच मेें होनी चाहिए, इसमें बच्चों को शामिल नहीं करना चाहिए।
सर्वप्रथम हमारे लिए यह जानना आवश्यक है कि बच्चा क्या चाहता है? शिक्षक और पैरेंटस मार्गदर्शक बनें, यही काफी है। बच्चों को अपने जीवन मूल्य स्वयं तय करने दीजिए। बच्चों को संस्कार अच्छे दीजिए, उनको समय दीजिए, उनसे बात करें, जब सब कुछ सकारात्मक होगा, तो रिजल्ट भी सकारात्मक ही निकलेगा। हम जैसा बीज डालेंगे, फसल भी फिर वैसी ही होगी।
फर्ज निभायें, अधिकार न जतायेंं।
IN ENGLISH
For new education, Osho gives the idea of a new type of teacher - no teacher. A teacher who is more of a guide than a teacher. They say- if a student is weak in maths, then education need not insist that he will be strong in maths only then he could drop out of school. No, there's no need. Mathematics is such a subject that life cannot exist without it.
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Teachers also apply at the level of reform of the education system. For this new education, Osho gives the ideology of a new type of teacher - no teacher. A teacher who is more of a guide than a teacher. They say that if a student is weak in maths, education need not insist that he will be strong in maths only then he could drop out of school. No, there's no need. Mathematics is not such a subject that life cannot exist without it. And even our emphasis is not going to make much difference. The only difference will be that the person will go into the world with an inferiority complex, with an inferiority complex that I am weak in maths, and this feeling will become a defeatist feeling on the other side in life as well.
To make a person feel his lack over and over again is to hurt his confidence. Not being smart in maths is not a weakness. God has made each of his creations unique. which we do not recognize. What we call interest.
So the person who can be- so it seems to me, the last thing I want to do is that the very first thing is that primary school where we interview the children for the first time, where the younger children first become the old ones. Generations stand face to face, where the encounter begins, there must be the best teachers.
person because that experience will be precious forever. But we have such a feeling that no one wants to be a primary teacher. Even in universities, the teacher who happened a little over two or four years ahead says that if you do not teach undergraduate, then you will teach post graduate. To teach undergraduate is disgrace. While the truth is that there is nothing more difficult than elementary school. Afterwards everything becomes simple. The real question is where the totally new generation, the raw generation stands before the old generation, should there be the best.
In the country, we should involve all the psychologists in the primary school to find out what a person can be. Those four years should be for two purposes, one, that one should give what is called very elementary knowledge, which is necessary for life to all. Secondly, more importantly, we should find out in four years what this person can be, what are its possibilities. so that we can guide him.
My own understanding is that primary education needs to be given the first attention because primary teacher is the most important teacher and there we should raise the best people. Here I think this will be possible only when we do not decide his salary according to what someone teaches in primary school, but decide the salary according to what that man is? He may teach university or he may teach in the first class and we bring down the best. In fact, the foundation should have even the best, the peak can be sustained.
-Osho
It is said that a teacher is the architect of the society. The place of the teacher comes even before God, the teacher decides the boundaries of the society. If good values are inculcated in children, then no evil of the society can overpower them. If we look at history, there were so many great men, Swami Vivekananda, Rajaram Mohan Roy, Dayanand Saraswati etc., during the time of slavery, about whom children are not even told. It is not taught. Nor do parents try to see and know what our children are being taught. Everyone wants to make children doctors, engineers, no one wants to know what the child wants?
Children's life has become like running water in an empty field. They do not know anything about their religion and culture. He feels ashamed to follow the Indian culture. Western culture attracts them more. Change the attitude of the people of the country, run the movement for social reform. He introduced us to our culture and traditions. Today there is really a need to change the education policy. The education which is being given on technical basis is fine, but the level with which the society is getting corrupted, the level of morality is deteriorating day by day. There should be certain values of life in the society.
Children should be made independent. Student life is the foundation of life. The stronger and deeper the foundation, the stronger the building will be. Today teachers cannot scold children, even if they do, parents reach the school with complaints. Parents themselves do not respect the teacher, they do not fail to disrespect them in front of the children. Due to this behavior, this system is becoming a business.
Even the teachers are unable to give proper respect to the parents in front of the children, both try to make each other wear hats. It has a bad effect on the children. My personal opinion is that the parent meeting should be between the teacher and the parent, not involving the children.
First of all it is necessary for us to know what the child wants? Teachers and parents be the guide, that's enough. Let the children decide their own life values. Give good values to the children, give them time, talk to them, when everything is positive, the result will also turn out to be positive. Whatever seed we sow, the crop will be the same again.
Do your duty, don't claim rights.
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