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Vimla Sharma

बच्‍चों की पढाई में, पैरेंट्स की भूमिका | Role of parents in children's education

Updated: Aug 2, 2022



यदि ट्यूटर बच्चों को पढ़ाता है, तब भी माता-पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वह बच्चों को थोड़ा समय दें, उनसे पढ़ाई के बारे में बात करें। होमवर्क आदि में उनकी थोड़ी मदद तो जरूर करें। इससे बच्चा आपसे मानसिक तौर पर तो जुड़ेगा ही साथ ही वह आपकी व्यस्तता को भी समझने की कोशिश करेगा। यह मत भूलिए की पढ़ाई बच्चे अपने उज्जवल भविष्य के लिए कर रहे हैं। तो सर्वप्रथम बच्चे और उनकी आवश्यकताएं जरूरी हैं।


अक्सर यह देखा गया है कि बच्चों के परीक्षाओं के दिन नजदीक होते हैं और घर में किसी रिश्तेदार की शादी या कोई फंक्शन होता है जिसमें माता-पिता के अनुसार जाना आवश्यक होता है। ऐसे समय में माता-पिता को बच्चों की पढ़ाई को अहमियत देनी चाहिए किन्तु ऐसा होता नहीं है। वह अपनी सहूलियत देखते हैं और पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी ट्यूटर पर डालकर बैफिक्र हो जाते हैं। नतीजा वही निकलता है जिसका डर था। बच्‍चों के मन में एग्‍जाम से लेकर, टीचर से लेकर ऐसी कई बातें होती हैं जो बच्‍चे सिर्फ अपने पैरेंटस से ही शेयर करना चाहते हैं, किन्‍तु माता-पिता के पास समय ही नहीं होता, बच्‍चों के लिए...।


नीति की बेटी इस बार तीन विषयों में फेल है। रिपोर्ट कार्ड देखकर पति-पत्नी एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।

जिम्मेदार कौन है?

दोनों ही है।

यदि थोड़ा सोचते और बच्चों से बात करते तो रास्ता निकाला जा सकता था। यहां थोडा सामंजस्‍य बिठाने की आवश्‍यकता थी। जीवन में सभी कार्य जरूरी हैं किन्तु किस काम की कितनी अहमियत है यह सोचने वाली बात है। यदि रिश्तेदारों से बात करते या पति और पत्नी में से पति फंक्शन में चले जाते तो पत्नी घर पर ही बच्चों को परीक्षा के दिनों में समय देती तो नतीजा कुछ और होता ।


असल में एग्‍जाम के दिनों में अभिभावकों सोचना चाहिए कि उनके यहां मिलने-जुलने वालों के कारण बच्चों की पढ़ाई का कितना नुकसान हो रहा है। बच्चों को इस स्थिति से बचाने के लिए यदि मिलना आवश्यक है तो आप स्वयं उनसे मिलने चले जायें यह भी एक रास्ता हो सकता है। बच्‍चों को एग्‍जाम की तैयारी के लिए बच्‍चों को ऐसा माहौल अवश्‍य दें जिसमें बच्‍चा अपने एग्‍जाम तैयारियां बिना किसी परेशानी के कर सके।

बच्‍चों को समय-समय पर कुछ न कुछ हल्‍का-फुल्‍का खाने को देते रहें जिससे उन्‍हें थकान न हो। एग्‍जाम के दिनों में बच्‍चों की डाइट का विशेष ध्‍यान रखें। वह जितना भी पढें, मन लगाकर और दिलचस्‍पी लेकर पढे, यही काफी है।



पढाई के समय बोरियत महसूस न इस बात का भी ध्‍यान रखें। बच्‍चों को पढाई में बोरियत तभी महसूस होती है जब बच्‍चों को कन्‍सेप्‍ट समझ में नहीं आता। अगर आपको ऐसा लगे तो आगे आकर बच्‍चे से स्‍वयं पूछें कि क्‍या आप उसकी कोई मदद कर सकती हैं? आपका यह कहना ही बच्‍चों को उत्‍साह से भर देगा।



कई महिलाएं घूमने-फिरने की बहुत शौकीन होती हैं। वे पढ़ाई की जिम्मेदारी स्वयं पर न लेकर ट्यूटर रखना अधिक पसंद करती हैं। और यदि अच्छे नंबर नहीं आते तो या तो बच्चों की पिटाई करती हैं या फिर ट्यूटर को ही जिम्मेदार ठहरा कर अपनी जिम्मेदारी इस तरह पूरी कर लेती हैं। जो कि सही नहीं है। यदि ट्यूटर बच्चों को पढ़ाता है तो भी माता-पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वह बच्चों को थोड़ा समय दें, उनसे पढ़ाई के बारे में बात करें। होमवर्क आदि में उनकी थोड़ी मदद तो जरूर करें। इससे बच्चा आपसे मानसिक तौर पर तो जुड़ेगा ही साथ ही वह आपकी व्यस्तता को भी समझने की कोशिश करेगा। यह मत भूलिए की पढ़ाई बच्चे अपने उज्जवल भविष्य के लिए कर रहे हैं। तो सर्वप्रथम बच्चे और उनकी आवश्यकताएं जरूरी हैं।



बहुत सी कामकाजी महिलाएं हैं जो शुरू से ही बच्चों की पढ़ाई में भी दिलचस्पी लेती हैं और स्वयं के जरूरी कार्य भी बखूबी करती हैं।



छोटी कक्षा में जब बच्चे होते हैं तो माता-पिता सोचते हैं कि अभी पढ़ाई का बोझ कम है, तो उनका पार्टियों व सामाजिक आयोजनों में जाना चलता है। बच्चा पास होकर अगली कक्षा में चला जाता है। इसलिए वह संतुष्ट रहते हैं कि सब ठीक है। उन्हें इस बात का अहसास ही नहीं होता कि बच्चों में कमजोरी कहां है? नतीजा होता है कि जब बच्चा बड़ी कक्षा में आता है तो अच्छे नंबर न आने के कारण मनपसंद विषय नहीं चुन पाता।



कहने का अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि माता-पिता सारे सामाजिक बंधनों को तोड़कर बस बच्चे की पढ़ाई में ही लग जायें। जो बच्चे किसी भी क्षेत्र में महारत हासिल करते हैं उसके पीछे माता-पिता और बच्चों की अच्छी खासी मेहनत छिपी होती है। बच्चों के विकास में मां की भूमिका अहम होती है। किसी भी बच्चे के गुणों में निखार एक दिन में नहीं आता। उसके लिए समय का सही तालमेल, घूमने-फिरने में नियमितता, सामाजिक संबंधों को सीमित रखना बेहद आवश्यक है।


बच्‍चे, हमारी भावी पीढी है,वह कोई घर में सजाने की वस्‍तु नहीं, बाहरी भौतिक आवश्‍यकताओं से अधिक आवश्‍यक, बच्‍चों को आत्‍मीयता की आवश्‍यकता है। बाहर हम बच्‍चों को जाने नहीं देते, घर में हमारे पास बच्‍चों के लिए समय नहीं है, तो बच्‍चा क्‍या करे? वह टीवी के आगे बैठेगा, मंहगे मोबाइल पर खेलेगा, शारीरिक और मानसिक क्रिया-कलाप रूक जायेंगे। परिणाम, बच्‍चों को न भूख लगेगी, स्‍वभाव चिडचिडा हो जायेगा। बीमारियां लग जायेंगी। जिसका सीधा प्रभाव बच्‍चों की पढाई पर पडेगा। आज छोटे-छोटे बच्‍चों को थायरॉयड, शुगर, दिल की बीमारियां न जाने क्‍या-क्‍या हो रहा है। माता-पिता को पता ही नहीं है कि हमारे बच्‍चे क्‍या खा रहे हैं। जंक-फूड जीवन का हिस्‍सा बन चुका है। हमारे आर्युवेद मे ढाई घंटे के बाद बना भोजन खाना निषेध माना गया है। हम लोग महीनों पुराना खाना बडे ही शौक से खाते हैं। जंकफूड, पिज्‍जा बर्गर खाकर गर्व महसूस करते हैं। हमारी प्राथमिकता बच्‍चे, और उनकी आवश्‍यकताएं होनी चाहिए तभी हम अपने बच्‍चों को उज्‍जवल और स्‍वस्‍थ भविष्‍य दे सकते है। हमेशा प्रयास करें कि बच्‍चों को घर का ताजा बना खाना ही दें।



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