हमारा समाज और अर्थव्यवस्था बहुत तेजी के विकास की ओर बढ़ रहे हैं। आज से बीस दशक पहले किसी ने आज की सुख-सुविधाओं के बारे में सोचा तक नहीं था। आज लगभग सभी के पास बेहतर सुख-सुविधाएं हैं फिर चाहे आर्थिक स्थिति कैसी भी हो। इन सुविधाओं और भाग-दौड़ भरी जिंदगी में बचपन कहीं अकेला, बिल्कुल अकेला होता जा रहा है। वह अपने परिवार से दूर होता जा रहा है। उसका बाहर की ओर आकर्षण बढ़ रहा है। वह अपने अकेलेपन को दूर करने की कोशिश बेहतर सुख-सुविधाओं यानि इंटरनेट या गेम्स आदि में करता है। इससे बच्चों पर मानसिक दवाब बढ़ रहा है। यह स्थिति इसलिए भी है क्योंकि माता-पिता या परिवार से उन्हें पूरा समय या भावनात्मक सहयोग नहीं मिल रहा। इस लेख में हमने इन्हीं मुद्दों प्रकाश डालने का प्रयास किया है।
बच्चे प्रकृति का सुंदरतम उपहार है। बच्चों को भगवान का अक्ष भी कहा गया है। माता-पिता को बच्चे ही ईश्वर की खुशियों का वरदान देते हैं। बच्चों की एक मुस्कान के आगे माता-पिता अपना हर कष्ट भूल जाते हैं। कई बार तो देखा गया है कि अपने जीवन में माता-पिता जिन चीजों से या शौक से वंचित रह जाते हैं वह हर हाल में अपने बच्चों को देना चाहते हैं फिर वह शिक्षा हो या दैनिक जीवन की सुविधाएं।
पिछले बीस दशक पहले के बच्चों और आज के बच्चों के जीवन में बहुत अंतर है। जो चीजें या गजेट्स या सुविधाएं आज के बच्चों को दी जाती हैं उनके बारे में बीस दशक पहले किसी ने सोचा तक नहीं गया था। पहले के बच्चे शारीरिक और मानसिक तौर पर काफी मजबूत थे, किन्तु आज ऐसा बिल्कुल नहीं है। यातायात की सुविधाएं पहले से बेहतर हैं, गूगल ने पढाई के लिए कई सुविधाएं घर बैठे उपलब्ध करा दी हैं। इन सब सुविधाओं को देखते हुए कई बार बच्चे अपने पैरेंट्स से यह कहते हुए मिल ही जाते हैं कि बिना मोबाइल या इंटरनेंट या टीवी के आप लोगों की दिनचर्या क्या थी। वह काफी अचम्भित भी होते हैं
हर माता-पिता अपने बच्चों में अपनी भावी महत्वाकांक्षाओं के सुन्दर सपने साकार करते हैं। आज के बच्चों की महत्वकांक्षाएं और सोच में काफी अंतर आ चुका है। सारी सुविधाएं होते हुए भी आज के बच्चों के जीवन में काफी अकेलापन है। पहले संयुक्त परिवार होते थे। तब माता-पिता के पास समय हो या न हो, किन्तु घर के अन्य सदस्यों की भी बच्चों के जीवन में अहम भूमिका थी।
आज एकांकी परिवारों का चलन है। सभी का जीवन बहुत ही व्यस्त है। सभी जीवन की भाग-दौड़ में लगे हैं। इस भाग-दौड़ की जिंदगी में बचपन अकेला होता जा रहा है। अतः प्रत्येक माता-पिता का दायित्व है कि अपने बच्चों के साथ मिल-जुलकर रहते हुए उनकी रुचियों और आदतों के बारे में जानें और उनके सर्वांगीण विकास के लिए सदैव तत्पर रहें। बच्चों को कदापि अकेला न छोड़ें और उन्हें उपेक्षित न करें, नहीं तो उनके विकास का मार्ग अवरुद्ध हो सकता है। वह अपनी राह से भटक कर, गलत दिशा में भी जा सकते हैं। बाहर का माहौल बच्चों के लिए किसी भी नजर से सुरक्षित नहीं है। बाहर का माहौल उन्हीं बच्चों को अधिक आकर्षित करता है जो बच्चे अंदर से अकेले होते हैं क्योंकि वह माता-पिता से खुलकर बात नहीं कर पाते। बच्चों के खेल-कूद या किसी भी एक्टिविटी में प्रत्येक अभिभावक को रुचि लेनी चाहिए और उनमें अच्छे संस्कार, अच्छी आदतें डालने का प्रयास करना चाहिए। एक कहावत है कि कोई खिलौना बच्चे को न दिलाया जाये तो वह कुछ देर रोयेगा, लेकिन यदि बच्चे में अच्छे संस्कार न डाले जायें तो जीवन भर रोयेगा।
आधुनिक भौतिक सम्पन्नता के युग में वर्किंग कपल्स जिस प्रकार बच्चों को उपेक्षित कर उन्हें क्रैच आदि में, या घर में मेड के भरोसे छोड़ देते हैं इससे बच्चे में विपरीत और ध्वंसात्मक प्रवृति जन्म ले रही है जो उनके जीवन, हमारे समाज और राष्ट्र के लिए घातक है। अपने बच्चों के संतुलित विकास के लिए पर्याप्त समय निकाल कर उन्हें समय देना आवश्यक है। किसी भी आर्थिक या अन्य हानि से यह हानि बड़ी है। यदि एक बार बचपन अंधकार की ओेर अग्रसर हो गया तो उसे पुनः राह पर ला पाना बहुत ही मुश्किल है।
कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि आपके बच्चे आपकी नहीं सुनते, जिद्द करने लगते हैं। बात-बात पर बिगड़ जाते हैं। इस विषय में मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे समय में हमें बच्चों को समझाना चाहिए। आपसे बेहतर और उन्हें कोई नहीं समझा सकता। आपको संयम रखना चाहिए। आपकी थोड़ी सी असावधानी, आपकी उपेक्षा बच्चों को जिद्दी एवं आक्रोशित बना सकती है। बच्चे अपने माता-पिता से बेहद प्यार और दुलार चाहते हैं। आपके लिए पूरी दुनिया है लेकिन बच्चों के लिए, पूरी दुनिया उनके माता-पिता हैं। आपका प्यार-दुलार पाना उनका अधिकार है। आपका दायित्व है कि आप उनके अधिकार से उन्हें वंचित न करें।
बच्चों में जिज्ञासु प्रवृति होती है। वह सब कुछ जानना चाहते हैं। उन्हें नसीयत देने की बजाय उन्हें खेल-खेल में संस्कार और अच्छी आदतें सिखायें। हमारा इतिहास संस्कारों की सीख से भरा पड़ा है। उन्हें कभी खेल-खेल में ऐसी कहानियां सुनाते रहें। बच्चों के साथ अपना व्यवहार दोस्ताना रखें, ऐसा करने से बच्चे आपके साथ किसी भी विषय पर खुलकर बात कर सकेंगे।
बच्चे कोमल स्वभाव के होते हैं। छोटी सी भी ठेस उन्हें निराश कर सकती है। लगभग सभी बच्चे कुशाग्र बुद्धि के होते हैं, जब उनके सवालों को सही जवाब समय पर मिलते हैं, जब वह आपके उत्तर से संतुष्ट होते हैं तो उनमें और अधिक जानने की प्रवृति बढ़ती जाती है। लेकिन इसके विपरीत यदि बच्चे बिगड़े पारिवारिक माहौल के कारण या माता-पिता की व्यस्तता के कारण अभिभावकों से खुलकर बात नहीं कर पाते तो वह धीरे-धीरे दब्बू या संकुचित स्वभाव के हो जाते हैं। बच्चों की आलोचना करने से बचें। उन पर दोषारोपण न करें।
बच्चे माता-पिता की कार्यशैली का अनुकरण करते हैं। बच्चों में सामाजिक रूप से व्यक्तित्व विकास, अभिभावकों की ही देन होती है। बच्चों में सामाजिक व व्यक्तित्व विकास के लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं-
बच्चों में ज्यादा टीवी या मोबाइल पर लगे रहने की प्रवृति अभिभावकों से ही आती है। इसलिए आप बच्चों के सामने इनका कम-से-कम प्रयोग करें, और बच्चों को समय दें।
बच्चों के संगी-साथियों पर नज़र रखें। उनके दोस्तों से बातचीत करें। जिससे आप जान सकें कि आपका बच्चों कैसी संगति में है। इसके लिए कभी-कभी बच्चों के दोस्तों को घर पर खाने पर बुलायें या कोई छोटा-मोटा कार्यक्रम जिनमें बच्चों के नजदीकी दोस्त या संगी साथी ही हो। यह कार्यक्रम अनौपचारिक होना चाहिए।
छुटिटयों में बच्चों को बाहर घुमाने ले जायें। बच्चों को म्यूजियम, चिडि़याघर जैसी जगहों पर ले जायें।
बच्चे सहजता में कई चीज़े स्वयं ही सीख जाते हैं। उन्हें दादा-दादा, नाना-नानी या घर के बुर्जुगों के पास बैठने का अवसर दें। उन्हें घर के बुर्जुगों की देखभाल की आदत डालें। जीवन के अनुभव किताबों में नहीं मिलते।
बच्चों को अपने दैनिक कार्य स्वयं करने की आदत डालें। आत्मनिर्भर होने से बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है। बच्चों को आत्मनिर्भर बनने में मदद करें, उनकी बैसाखियां न बनें।
बच्चों को निरंतर अच्छी आदतों के लिए नवीनतम जानकारी देते रहें। उन्हें बतायें कि पहले और अब के समय में क्या अंतर आया है। किन्तु हमारे संस्कृति व रीति-रिवाज आज भी वही हैं। बुर्जुगों को सम्मान और इज्जत देना हमारी परंपरा है। समय-समय पर परिवार में मांगलिक कार्य जैसे पूजा आदि कराते रहें। माता-पिता द्वारा रूचिपूर्वक किये गये कार्य एवं बच्चों के प्रति अन्य आत्मीय व्यवहार बच्चों के व्यक्तित्व विकास में मददगार है।
बच्चों को मेहमान नवाजी सिखायें। बच्चों से घर आये मेहमानों की खातिदारी में मदद लेंA यही छोटी-छोटी बातें बच्चों को संस्कारी बनाती हैं। एक बेहद ही आवश्यक जानकारी कि आप कभी भी पारिवारिक या रिश्तेदारों आदि से मनमुटाव जैसी बातें बच्चों से शेयर नहीं करें। यह बच्चों के लिए बेहद घातक है। बच्चों को इन सब बातों से दूर रखें।
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