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सर्दियों में शरीर की मालिश है जरूरी | Body massage is necessary in winter

Vimla Sharma

Updated: Jun 13, 2021


मनुष्य का शरीर, पांच तत्वों से मिलकर बना है। शरीर में दोष भी इन्हीं पांच तत्वों के कम होने से या तत्वों में परस्पर तालमेल न होने के कारण होते हैं। सर्दियों में तेज व ठंडी हवाएं त्‍वचा को रूखा बना देती हैं। त्‍वचा को चमकदार और कोमल बनाने के लिए हम तरह-तरह के ब्रांडेड बॉडी लोशन का प्रयोग करते हैं। यह इन्‍सटेंट तो लाभ पहुंचाते हैं किन्‍तु अप्रत्‍यक्ष रूप से यह त्‍वचा के लिए हानिकारक ही हैं। इसके स्‍थान पर हमें देशी व आयुर्वेदिक उपायों को अपनाना चाहिए। प्राकृतिक चिकित्सा में ‘मालिश’ का महत्वपूर्ण स्थान है। मालिश के महत्व को आयुर्वेद के ग्रंथों में भी स्वीकार किया गया है। आयुर्वेद में व्यायाम के साथ-साथ तेल मालिश की अनेक विधियां मिलती हैं। मालिश से शरीर का रक्त संचार ठीक होता है। आप मालिश के बारे में कुछ न जानते हों फिर भी यदि नित्य मालिश करते हैं तो आपको ताज़गी की अनुभूति होती है।

 

सर्दियों में तेज व ठंडी हवाएं त्‍वचा को रूखा बना देती हैं। त्‍वचा को चमकदार और कोमल बनाने के लिए हम तरह-तरह के ब्रांडेड बॉडी लोशन का प्रयोग करते हैं। यह इन्‍सटेंट तो लाभ पहुंचाते हैं किन्‍तु अप्रत्‍यक्ष रूप से यह त्‍वचा के लिए हानिकारक ही हैं। इसके स्‍थान पर हमें देशी व आयुर्वेदिक उपायों को अपनाना चाहिए। यह त्‍वचा का रूखापन स्‍थायी रूप से समाप्‍त कर त्‍वचा को कोमल और स्‍वस्‍थ बनाते हैं। इसके अतिरिक्‍त सर्दियों में कई प्रकार की शारीरिक परेशानियां भी होती हैं जैसे जोडों और मांस-पेशियों में दर्द और जकडन। इस प्रकार की परेशानियों को ऐलोपैथी दवाओं के द्वारा तुरंत आराम पाया जा सकता है किन्‍तु यह स्‍थायी उपचार नहीं है। एलोपैथी दवाइयां अधिक लेने से साइड इफेक्‍ट अधिक हैं। वैसे तो शरीर की मालिश हर मौसम में की जा सकती है जिससे जोडों में दर्द और मांस-पेशियों में जकडन जैसी परेशानियों से काफी हद तक बचा जा सकता है किन्‍तु मालिश का सर्दियों में महत्‍व बढ जाता है।



सर्दियों में मालिश हर वर्ग के व्‍यक्ति को करनी चाहिए। बच्‍चों को, बूढों कों, महिलाओं और पुरूषों और युवा वर्ग, सभी को मालिश नियमित रूप से करन चाहिए। मालिश से शारीरिक थकान कम होती है तथा त्‍वचा कोमल और शरीर तरोताजा महसूस करता है।



नीचे हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे कि मालिश कब, कैसे, और किस प्रकार करनी चाहिए तथा इसके क्‍या-क्‍या लाभ हैं-

मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है। शरीर में दोष भी इन्हीं पांच तत्वों के कम होने से या तत्वों में परस्पर तालमेल न होने के कारण होते हैं। बीमार होने पर भी मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा होती है कि वह जल्द से जल्द स्वस्थ हो जाए। इसी कारण वह अधिकतर एलोपैथी चिकित्सा ही अपनाता है। अंग्रेजी दवाइयों से शरीर शीघ्र स्वस्थ्य तो हो जाता है लेकिन इसके लाभ कम और साइड इफेक्ट अधिक हैं। इसके अलावा एलोपैथी दवाइयां बीमारी को समूल नष्ट करने में सक्षम नहीं हैं।



प्राकृतिक चिकित्सा में ‘मालिश’ का महत्वपूर्ण स्थान है। मालिश के महत्व को आयुर्वेद के ग्रंथों में भी स्वीकार किया गया है। आयुर्वेद में व्यायाम के साथ-साथ तेल मालिश की अनेक विधियां मिलती हैं। मालिश से शरीर का रक्त संचार ठीक होता है। आप मालिश के बारे में कुछ न जानते हों फिर भी यदि नित्य मालिश करते हैं तो आपको ताज़गी की अनुभूति होती है।

अधिकांश लोग यही समझते हैं कि स्वास्थ्य के लिए अधिक से अधिक दूध, मलाई, मक्खन या पौष्टिक भोजन खाना और दवाएं हज़म करना ही जरूरी है। उनकी यह धारणा निराधार है। हमें जीवन में व्यायाम, मालिश और योगासनों को विशेष महत्व देना चाहिए। श्रमहीन जीवन रोगी होता है। इसलिए पर्याप्त श्रम करना, उचित और लाभप्रद भोजन करना अच्छे जीवन के लिए जरूरी है।




शारीरिक दर्द से मालिश का संबंध:

  • शारीरिक दर्द के निवारण में मालिश, नाडि़यों के अवरोधों को हटाकर जादू के समान काम करती है लेकिन यह लाभ तभी संभव है जब उचित तेल और मालिश ठीक प्रकार से की जाएं। सामान्य रूप से सरसों या तिल के तेल से मालिश की जा सकती है।

  • मालिश करना एक कला है। यदि मालिश की और तुरंत दर्द शांत हो जाए तो यह न समझें कि रोग ठीक हो गया क्योंकि जब मालिश का प्रभाव समाप्त हो जाएगा तब दर्द पुनः होने लगेगा। ऐसी अवस्था में फिर मालिश की जरूरत होगी। जैसे रोग की अवस्था में आधे-आधे घंटे बाद या पच्चीस-पच्चीस मिनट बाद डॉक्टर रोगी को दवाएं देते हैं, उसी प्रकार मालिश व भोजन सुधार से धीरे-धीरे रोग कम होगा वैसे स्वस्थ व्यक्ति को दिन में एक बार तो मालिश करनी ही चाहिए।



  • शरीर के विभिन्न अंगों में दर्द के निवारण के लिए क्रियाएं भी भिन्न-भिन्न होती हैं। अपने महत्व के कारण तेल मालिश, सनातन धर्म के प्रायः सभी संस्कारों से जोड़ी गई है। भारत में प्रायः प्रसव के बाद ही जच्चा स्त्री की 40-50 दिन तक मालिश करने का रिवाज रहा है। लेकिन नई रोशनी में यह प्रचलन घटा है। पूर्व के प्रदेशों में अभी भी बच्चा स्त्री के प्रसव के बाद विशेष प्रकार की मालिश करायी जाती है।

  • छोटे बच्चों में छह वर्ष तक उसी प्रकार मालिश और उबटन करना आवश्यक है। इससे बच्चे सुंदर, स्वस्थ बनते हैं और अंगों में आगे चलकर अनावश्यक बाल भी नहीं उगते हैं। सर्दियों में शरीर की मालिश करना बेहद आवश्‍यक है क्‍योंकि इससे शरीर में रक्‍त संचार बढता है साथ ही इम्‍यूनिटी सिस्‍टम भी बेहतर होता है।



  • तेल मालिश के लिए आपको 25 ग्राम तेल लें। समतल साफ धूल रहित फर्श पर बिछाने के लिए कोई गद्दा या मोटा कंबल लें। बिछौना ऐसी जगह बिछायें जहां ठंडी हवा के झोंके न आते हों। जाड़े के मौसम में कमरा बंद करके मालिश करें। मालिश के बाद शरीर को सूखे या गीले तौलिये से भली-भांति रगड़-रगड़कर तेल पोंछ लें या गुनगुने पानी से नहा लें।



मालिश के समय बरती जाने वाली सावधानियां:

  • आयुर्वेद के अनुसार पंचकर्म उपचार, वमन, तेज बुखार, गंभीर रोग या कफ ग्रस्त अवस्था में तेल मालिश और व्यायाम नहीं करना चाहिए।

  • मालिश, भोजन के तीन घंटे बाद जब भी समय हो कभी भी रात या दिन में सुविधानुसार की जा सकती है।

  • तेल मालिश से पहले शरीर को गीले तौलिए से रगड़कर पोंछकर साफ कर लें। इसके बाद तेल में अंगुलियों को डुबो-डुबोकर नाक, कान, नाभि, सिर और पैरों के तलवों में तेल लगा लें। फिर गर्दन, कंधों, कोहनियों, कमर, घुटनों, टखनों आदि सब जोड़ों पर अच्छी तरह लगा लें।


तेल मालिश की विधि:

  • तेल लगाकर नस-नाडि़यों और मांस-पेशियों की रगड़ाई व सुताई की जाती है। मालिश के समय शरीर के अंगों को थपथपाते हैं, मसलते हैं, हथेलियों से ठोकते हैं। मुक्कों से हल्के-हल्के ठोकते हैं। हाथ की कटोरी बनाकर थपकी देते हैं और जोड़ों को घुमाते हैं। नसों में कंपन देते हैं।

  • तेल मालिश क्रम से ही करनी चाहिए। प्रारम्भ में पैरों की उंगलियों से मालिश आरंभ करते हैं, फिर पैरों के तलवों की उंगलियों से एड़ी तक मालिश करते हैं। इसके बाद पैरों के गट्टों से ऊपर जांघ तथा कमर तक की नसों व मांसपेशियों की मालिश करते हैं। इसके बाद पेट और सीने की मालिश करते हैं। और अंत में पीठ की मालिश करने से पूर्व शरीर को गीले और फिर सूखे तौलिये से रगड़कर पोंछकर साफ कर लेते हैं।

  • तेल मालिश के लिए न तो गरम, न ठंडा अर्थात ऐसा वातावरण चाहिए, जहां पसीना न आता हो। मालिश, शरीर की एक सर्वोत्तम खुराक है।



  • आयुर्वेद में सिर नाक, कान, नाभि, गुदा, हाथ की हथेलियां और पैर के तलवों में तेल लगाने तथा तेल मालिश करने का विशेष महत्व है। ये अंग महत्वपूर्ण इसलिए हैं क्योंकि इन जगहों में शरीर को स्वस्थ रखने वाले चेतना स्थल हैं। सनातन धर्मावलंबी सिर, नाक, कान, गाल, हाथ व पैरों के चेतन-स्थलों के रहस्य से परिचित थे। इसी कारण आशीर्वाद स्वरूप माता-पिता गुरुजनों उनके सिर पर चेतना स्थलों पर हाथ रखकर उन्हें आशीष दिया करते थे। चेतना स्थलों के महत्व के कारण बालकों के कान, नाक लोग छिदवाया करते थे।



  • वर्तमान समय में शरीर के विभिन्न अंगों में विशेष रूप से हाथों की हथेलियों, चरणों के तलवों और सिर, चेहरे तथा कानों के आस-पास में ऐसे बिंदुओं और स्थलों की खोज जा चुकी है, जिन पर मालिश या दवाब देने से शरीर के विभिन्न अंग और रक्तस्रावी ग्रंथियां सक्रिय होकर ठीक से काम करने लगती हैं और इससे आरोग्य व स्वास्थ्य प्राप्त होता है।


पांव की मालिशः

  • तेल की मालिश पांवों से आरम्भ में करनी चाहिए। पहले पांवों की अंगुलियों पर, उसके बाद बारी-बारी पांवों की अंगुलियों की मालिश करें।

टांग की मालिशः

  • पहले टांगों पर तेल लगाकर थोड़ा रगड़े अपने पूरे हाथ को टांग के आकार के अनुरूप रखकर मांसपेशियों पर दवाब डालते हुए उनका मर्दन करें। ऐसा चार-पांच करें। रोगी की टांग की मालिश लिटाकर करें। एक टांग की मालिश करने के बाद दूसरी टांग की मालिश करें। जांघ और कमर की मालिश भी बहुत आवश्यक होती है।

हाथ की मालिशः

  • हाथों पर तेल लगाकर दोनों हथेलियों को आपस में रगड़ें। हाथ की ऊपरी भाग को दूसरे हाथ के अंगूठे से मसले। गांठे, घुमायें, जोड़ों को चलायें तथा दूसरे हाथ की मदद से हाथ की प्रत्येक अंगुली को पकड़कर झटका दें। कलाई को दूसरे हाथ की मदद से गोलाकार मसलें।

बाजू की मालिशः

  • बाजू पर तेल लगाकर मलें और रगड़ें। एक लय के साथ हाथ चलाएं। दूसरे हाथ की अंगुलियों को चूड़ी का आकार देकर पूरी बाजू की मरोड़-मरोड़ कर मालिश करें। कोहनी को गोलाकार तरीके से मालिश करें, गांठों को घुमाएं, जोड़ों को चलाएं।

पेट की मालिशः

  • पेट की मालिश पेट को ढीला रखकर करें। जिस समय पेट की मालिश करेें, उस समय पेट पूरी तरह खाली होना चाहिए। पेट की मालिश बहुत ही सावधानीपूर्वक होनी चाहिए।



छाती की मालिशः

  • छाती में फेफड़े तथा हृदय होते हैं। सबसे पहले तेल लगाकर छाती की मालिश करें। हल्की-हल्की मुक्कियां मारें और कंपन दें।

सिर और गर्दन के पीछे की मालिशः

  • सिर की मालिश जोर से नहीं, आराम से करनी चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि सिर में तेल इस प्रकार लगाएं कि तेल बालों की जड़ों में जाए। सिर की मालिश बैठकर करनी चाहिए। यदि व्यक्ति कमजोर है तो उसे लिटा भी सकते हैं। सिर की मालिश पीछे खड़े होकर करनी चाहिए। तेल, सिर के तालू पर डालें उसके बाद उंगलियों से सिर को सहलायें। इसके बाद हथेलियों से सारे सिर पर घर्षण दें और हल्के हाथ से बालों में चलायें।



पीठ की मालिशः

  • सबसे पहले पीठ पर तेल लगायें फिर मालिश शुरू करें। पीठ के ऊपरी भाग को नीचे से ऊपर की ओर मालिश हृदय की तरफ होनी चाहिए।

  • उपरोक्त क्रियाओं का प्रयोग दो या तीन बार करें।

विभिन्‍न प्रकार के तेल और उनके लाभ

तिल का तेल

आयुर्वेद के अनुसार, सर्दियों के दौरान तिल का तेल अच्‍छा माना जाता है। यह हल्‍का होता है और त्‍वचा में आसानी से अवशोषित हो जाता है। यह पोषक तत्‍वों से भरपूर होता है तथा इसमें हीलिंग के गुण भी होते हैं। ति‍ल के तेल में एसपीएफ 6 के प्राकृतिक सनस्‍क्रीन गुण होते हैं इसलिए सर्दियों में तिल के तेल की मालिश अधिक फायदा पहुंचाती है।

जैतून का तेल

जैतून के तेल में कई प्रकार के विटामिन और मिनरल्‍स होते हैं, जो सर्दियों में प्राकृतिक मॉइश्‍चराइजर के रूप में कार्य करते हैं। त्‍वचा के अत्‍यंत शुष्‍क होने की स्थिति में या खुजली से छुटकारा पाने के लिए, जैतून के तेल में कुछ बूंदें नीबू के रस की मिलाएं यह एंटीऑक्‍सीडेंट का कार्य करती हैं जो फ्री-रैडिकल्‍स को रोकने में मदद करती हैं।



बादाम का तेल

बादाम का तेल आसानी से त्‍वचा में समा जाता है। यह बेहद हल्‍का होता है और स्किन को मॉइश्‍चराइज करता है।

कोकोनट / नारियल का तेल

नारियल का तेल भी हल्‍का ही होता है। इसमें चिपचिपाहट नहीं होती। कोकोनट ऑयल स्किन के लिए बहुत ही अच्‍छा होता है। इसमें फंगल इन्‍फेक्‍शन और बैक्‍ट्रीरियल संक्रमण से बचाने की क्षमता होती है। नारियल के तेल में आयरन भी होता है और मालिश से शरीर में ब्‍लड सर्कुलेशन अच्‍छा होता है।

अलसी का तेल

यह प्राकृतिक मॉइश्‍चराइजिंग तेल ओमेगा-6 फैटी एसिड से भरपूर होता है। जो दिल और त्‍वचा को स्‍वस्‍थ रखता है। यह त्‍वचा की रंगत को निखारता है। सर्दियों में अलसी के तेल की मालिश से त्‍वचा में नमी बरकरार रहती है। आप मॉइश्‍चराइजर लोशन के तौर पर भी इसका प्रयोग कर सकते हैं।



सरसों का तेल

सरसों का तेल भारत में बडे पैमाने पर उपयोग किया जाता है। तेल में मॉइश्‍चराइजिंग गुण त्‍वचा को नरम और चमकदार बनाने का कार्य करते हैं। सरसों का तेल सर्दियों के दौरान मालिश के लिए सर्वश्रेष्‍ठ तेलों में माना जाता है।

यदि संभव हो तो सभी प्रकार की मालिश में अरेबियन ऑयल का प्रयोग भी कर सकते हैं। अरेबियन ऑयल में कई प्रकार की लाभदायक जड़ी-बूटियां का प्रयोग किया जाता है जो जादू की तरह असर करती हैं।



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