धर्म एक संस्कृत शब्द है। धर्म का अर्थ बहुत व्यापक है। जो धारण करने योग्य है, वही धर्म है। पृथ्वी समस्त प्राणियों को धारण किए हुए है। इसका मतलब धर्म का अर्थ है कि जो सबको धारण करे अर्थात धारयति- इति धर्मः!। अर्थात जो सबको संभाले, वही धर्म है और वही धार्मिक है।
आज के आधुनिक समय में धर्म की परिभाषा क्या है? जो आज के पब्लिक प्रतिनिधि स्टेज पर जाकर धर्म की परिभाषा जनता को समझाते हैं क्या वास्तव में यही धर्म है? क्या इसी धर्म के लिए हजारों-लाखों लोगों का खून बहाया जा रहा है? कोई भी धर्म यह नहीं कहता। यदि किसी भी धर्म में इस प्रकार की व्याख्या दी गई है, तो वह धर्म है ही नहीं। वह एक मिशन हो सकता है किन्तु उसे धर्म कहना सरासर गलत होगा। आज के अराजकता भरे माहौल में धर्म-धर्म सुनने को तो मिल रहा है वास्तव में धर्म वह है ही नहीं।
किसी भी मुसीबत में फंसे व्यक्ति, जीव-जंतु आदि की मदद करना धर्म हो सकता है। सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है।
जब सभी यह जानते हैं तो क्यों लोग धर्म के आधार पर बंट जाते हैं और राजनेताओं के द्वारा ठगे क्यों जातेे हैं। अब समय काफी बदल गया है। अधिक पुरानी बात नहीं है किन्तु पहले राजनीति को सामाजिक सेवा के लिए अपनाया जाता था इसलिए लाल बहादुर शास्त्री जैसे अनेकों राजनेता हुए। लाल बहादुर शास्त्री जी महान व्यक्तित्व थे। वह इतने वर्षों देश की सेवा के लिए राजनीति में रहे किन्तु स्वयं के लिए कोई धन अर्जित नहीं किया। यह है राजनेता की परिभाषा।
आज राजनीति एक बड़ा व्यवसाय बन चुका है। जिसमें स्वयं को लाभ पहुंचाने की एवज में राजनेता कुछ भी कर गुजरता है। जनता की भी यही सोच है तभी तो ऐसे राजनेताओं का व्यवसाय फलफूल रहा है। आम जनता को चाहिए कि वह अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर सोचे। अपनी सोच बदले। यहां जनता को जागरूक होना चाहिए। राजनीति का स्तर दिन प्रति दिन गिरता जा रहा है। ऐसे माहौल में जो अच्छे मकसद से राजनीति में आना चाहते हैं या आये हैं उनके लिए परेशानियां अधिक बढ़ रही हैं।
हमारा कर्तव्य ही सर्वोपरि धर्म है। इसलिए जनता को अपना निजी स्वार्थ न देखते हुए अपने धर्म को नहीं भूलना चाहिए। परोपकार ही धर्म है। किसी भी जीवन की हत्या या जीवन लेना धर्म हो ही नहीं सकता। जब मनुष्य को अपनी जान देने तक का अधिकार नहीं है तो उसे दूसरे की हत्या करने या जान लेने का अधिकार कैसे हो सकता है? ऐसा करने के बाद फिर हम कहते हैं कि हम धर्म की रक्षा कर रहे है। क्या यह उचित है?
साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जैसे- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, ‘धारण करने योग्य’ सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिये। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं।
यतोभ्युदयनिः श्रेयससिद्धिः स धर्मः।
अर्थात धर्म वह अनुशासित जीवन क्रम है, जिसमें लौकिक उन्नति तथा आध्यात्मिक परमगति अर्थात विद्या दोनों की प्राप्ति होती है।
धर्म एक संस्कृत शब्द है। धर्म का अर्थ बहुत व्यापक है। जो धारण करने योग्य है, वही धर्म है। पृथ्वी समस्त प्राणियों को धारण किए हुए है। इसका मतलब धर्म का अर्थ है कि जो सबको धारण करे अर्थात
धारयति- इति धर्मः!।
अर्थात जो सबको संभाले, वही धर्म है और वही धार्मिक है।
सवाल उठता है कि भारत के राजनीति क्षेत्र में कौन सबको संभाल रहा है? कौन स्वयं के स्वार्थों और सुख-सुविधाओं और आराम को छोड़ कर सबके लिए जी रहा है। जो स्वयं को इस प्रकार प्रस्तुत कर रहा है वही धार्मिक है और यही धर्म है।
महाभारत के वनपर्व (313/128) में कहा है
धर्म एव हतो हन्ति धर्माे रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्माे न हन्तव्यो मा नो धर्माे हतो{वधीत्।।
मरा हुआ धर्म, मारने वाले का नाश, और रक्षित धर्म रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी न करना चाहिए, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले।
आधुनिक समय में जिसे हम धर्म कहते हैं वह केवल एक सम्प्रदाय है न कि धर्म। धर्म मानव के लिए है उसे मनुष्य ने ही बनाया है न कि मनुष्य धर्म के लिए। अस्तित्व में पहले मनुष्य आया, जीवन-जंतु आए, न कि पहले धर्म आया। जब मानव सभ्यता जीवित रहेगी तभी धर्म रहेगा। जिस प्रकार धर्म के नाम हिंसा या अराजकता होती है। देशों में भयानक युद्ध होते हैं, परमाणु युद्ध होते हैं तो क्या इससे जीवन सुरक्षित रहेगा?
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