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Vimla Sharma

शिव का स्वरूप हैंं रूद्राक्ष | Rudraksha is the form of Shiva

Updated: Sep 25, 2021



पुराणों में रुद्राक्ष की महत्ता का बखान मुक्त कंठ से किया गया है। वैसे तो यह एक प्रकार का फल है किन्तु धार्मिक दृष्टि से यह बहुत ही कल्याणकारी और मानव जाति के लिए बहुत ही शुभ है। स्वयं भगवान विष्णु जी ने अपने श्रीमुख से कहा है कि जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता है वह अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। वह जीवन-मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाता है। उसे भूत, पिशाच तक नहीं सताते। इसकी व्याख्या महाशिव पुराण, देवी भागवत पुराण और स्कन्ध पुराण में मिलती है। रुद्राक्ष को साक्षात शिव का स्वरूप माना गया है।

 

रूद्राक्ष मानव जाति के लिए बहुत ही कल्याणकारी है। इसलिए रूद्राक्ष को जब भी धारण करें, पूरे विधि-विधान से ही धारण करें तभी आप रूद्राक्ष की उर्जा और गुणों का लाभ उठा पायेंगे। जिस प्रकार सनातन धर्म में रत्न या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के कुछ नियम निर्धारित हैं ठीक वैसे ही रूद्राक्ष को धारण करने के भी कुछ नियम हैं। जैसे यदि संभव हो तो रूद्राक्ष को साेेेेने चांदी की धातु में ही धारण करें। रूद्राक्ष की पवित्रता का पूरा ध्यान रखें।



रूद्राक्ष धारण करने के पश्चात मांस-मदिरा का सेवन न करें। रूद्राक्ष पहनकर किसी के जन्म या मरण के संस्कारों में न जायेंं। अंतेष्टि और प्रसूता के घर जाने से बचें। रजोवृति के समय भी इसे धारण न करें। सात्विक जीवन व्यतीत करें।


रूद्राक्ष को शिव का स्वरूप माना गया है इसलिए इसे सोमवार के दिन, किसी अच्छे मुहर्त में धारण किया जा सकता है। रुद्राक्ष धारण करने के लिए शुभ मुहूर्त या दिन का चयन पहले कर लें। धारण करने से एक दिन पूर्व रुद्राक्ष को दूध में डुबाकर रखें। फिर प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होने के बाद ओम नमः शिवाय मंत्र का मन ही मन जप करते हुए रुद्राक्ष को पूजास्थल में रखकर पंचामृत से स्नान करायें फिर गंगाजल से पवित्र करके अष्टगंध एवं केसर मिश्रित चंदन का लेप लगाकर धूप-दीप और पुष्प अर्पित कर भगवान शिव का ध्यान करते हुए ओम नम: शिवाय का जाप करते हुए रूद्राक्ष धारण करें। रूद्राक्ष में दिव्य तरंगों और उर्जा का समावेश है, इसका पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए पूरी श्रृद्धा और विश्वास से ही धारण करें।



मुखों के आधार पर रुद्राक्ष कई प्रकार के होते हैंं। रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक होते हैं। जिनकी विशेषताओं का वर्णन हम नीचे करेंगे।


एक मुखी रुद्राक्ष

महाशिव पुराण में एक मुखी रुद्राक्ष को परम कल्याणकारी और भगवान शिव का साक्षात् रूप माना गया है। एक मुखी रुद्राक्ष को सांसारिक सुखदाता और मुक्तिदाता भी कहा गया है। कहा जाता है कि एक मुखी रुद्राक्ष को देखने मात्र से ही ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाती है।

देवी भागवत पुराण में एक मुखी रुद्राक्ष का विशेष रूप से वर्णन है। देवी भागवत पुराण में एक मुखी रुद्राक्ष को साक्षात् शिव का स्वरूप माना गया है। जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और पवित्र मन से धारण करता है। उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।



महाशिव पुराण में दो मुखी रुद्राक्ष को देव-देवेश्वर का स्वरूप माना गया है। इन्हें पहनने वाला व्यक्ति गो-हत्या के पापों से मुक्त हो जाता है और उसे विचारों की शुद्धि होती है और उसका मन देव कार्याें में लगता है।

स्कंद पुराण मेें दो मुखी रुद्राक्ष को भगवान शिव-गौरी का स्वरूप कहा गया है।

तीन मुखी रुद्राक्ष

महाशिव पुराण में तीन मुखी रुद्राक्ष को त्रिदेवों के रूप में स्वीकार किया गया है। जो व्यक्ति विद्या और धन दोनों की कामना रखते हैं उन्हें तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

देवी पुराण में तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि का स्वरूप माना गया है। देवी पुराण में कहा गया है कि यह रुद्राक्ष व्यक्ति में ऊर्जा प्रवाह करता है।


चार मुखी रुद्राक्ष

महाशिव पुराण में चार मुखी रुद्राक्ष को ब्रह्मा का स्वरूप माना गया है। इसलिए इसे धारण करने से ब्रह्म हत्या का पाप दूर हो जाता है। चार मुखी अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का दाता। इसे देखने या छूने मात्र से ही व्यक्ति उपरोक्त चीजों का प्राप्त कर लेता है।

स्कन्द पुराण में चार मुखी रुद्राक्ष में भी ब्रह्मा का स्वरूप माना गया है।

पांच मुखी रुद्राक्ष

महाशिव पुराण में कहा गया है कि पांच मुखी रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र के रूप में हैं। यह पापों का नाश करने वाला है। देवी भागवत पुराण में कहा गया है कि पांच मुखी रुद्राक्ष भगवान रुद्र का स्वरूप है। इसे धारण करने वाला सभी पापों से मुक्ति पा यश और कीर्ति पाता है।


छह मुखी रुद्राक्ष

महा शिव पुराण, देवी भागवत पुराण, और स्कंद पुराण में छह मुखी रुद्राक्ष को भगवान कार्तिकेय का स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति को सर्वदा शुभ लाभ प्राप्त होते हैं। यहां छह मुखी रुद्राक्ष को बायीं भुजा में बांधने का विधान है। यह रुद्राक्ष भी सभी पापों से मुक्ति दिलाने वाला है।

सात मुखी रुद्राक्ष

सभी पुराणों में सात मुखी रुद्राक्ष को अनंग का स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने वाला व्यक्ति भौतिक सुखों से संपन्न रहता है। गरीबी और दरिद्रता उसके पास भी नहीं भटकती। सात मुखी रुद्राक्ष को सौभाग्यशाली रुद्राक्ष कहा गया है। इसे पहनने से दुर्भाग्य सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है।



आठ मुखी रुद्राक्ष

आठ मुखी रुद्राक्ष को भैरव का स्वरूप माना गया है। यह व्यक्ति की अकाल मृत्यु से रक्षा करता है। यह धारण करने वाला मृत्यु के बाद शिव धाम को प्राप्त करता है। वह जीवन-मरण से मुक्त हो सद्गति को प्राप्त होता है।

देवी भागवत पुराण में आठ मुखी रुद्राक्ष को भगवान विनायक अर्थात भगवान गणेश जी स्परूप माना गया है। देवी भागवत पुराण के अनुसार आठ मुखी रुद्राक्ष को धारण करने वाला व्यक्ति संपन्न व्यक्ति बनता है। उसके पास किसी बात की कोई कमी नहीं रहती।

स्कंद पुराण में आठ मुखी रुद्राक्ष को विघ्न बाधाएं दूर करने वाला माना गया है। इसे सर्वगुणी रुद्राक्ष की संज्ञा दी गयी है।



नौ मुखी रुद्राक्ष

नौ मुखी रुद्राक्ष को कपिल मुनि और भैरव का स्वरूप है, ऐसी महा शिव पुराण में वर्णन है। इसे महेश्वरी देवी का स्वरूप भी माना गया है। इसे बायें हाथ में धारण करना चाहिए। इसे पहनने से बल और साहस की प्राप्ति होती है। कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति का मन स्वतः ही सद्कार्यों की ओर मुड़ जाता है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति को नवजीवन प्राप्त होता है।


दस मुखी रुद्राक्ष

महा शिव पुराण में दस मुखी रुद्राक्ष को भगवान नारायण का स्वरूप माना गया है। देवी भागवत पुराण में भगवान जनार्दन को स्वरूप माना गया है। यह ग्रह पीड़ानाशक है। इसे पहनने वाला व्यक्ति भूत पिशाच, प्रेतात्मा, ब्रह्म राक्षसों, सांप आदि के कुप्रभाव से रक्षा करता है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति के सर्व मनोरथ पूर्ण होते हैं।


ग्यारह मुखी रुद्राक्ष

ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने से चौतरफा विजय प्राप्त होती है। इस रुद्राक्ष को ग्यारह रुद्रों का स्वरूप माना गया है। इस रुद्राक्ष को चोटी में धारण करने का नियम है। इसे धारण करने से एक हजार अश्वमेघ यज्ञ, सौ वाजपेय यज्ञ और एक लाख गौ दान करने का पूण्य प्राप्त होता है। यह बहुत ही शक्तिशाली रुद्राक्ष है।


बारह मुखी रुद्राक्ष

इस रुद्राक्ष को भगवान सूर्य का स्वरूप माना गया है। बारह मुखी रुद्राक्ष को सिर पर धारण करने का विधान है। इसे धारण करने से व्यक्ति सूर्य के समान तेजस्वी हो जाता है। देवी भागवत पुराण में कहा गया है कि यदि बारह मुखी रुद्राक्ष को कानों में धारण कर लिया जाये तो व्यक्ति की हिंसक जीवों से रक्षा होती है और वह उसे कोई कष्ट नहीं सताता। इसे पहनने से यश-कीर्ति में वृद्धि होती है।


तेरह मुखी रुद्राक्ष

यह रुद्राक्ष सभी के लिए अत्यंत शुभकारी है। इसे धारण करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। महाशिव पुराण में इसे विश्वदेव, देवी भागवत पुराण में भगवान कार्तिकेय, और स्कन्ध पुराण में कामदेव का स्वरूप माना गया है। यह रुद्राक्ष समस्त सिद्धि दायक और मान-सम्मान दिलाता है। इसे धारण करने वाला व्यक्ति धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है।

चौदह मुखी रुद्राक्ष

देवी भागवत पुराण में कहा गया है कि चौदह मुखी रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रतीक है। देवता भी इसकी महत्ता का गुणगान करते नहीं थकते। वे इसकी पूजा भी करते हैं। इस रुद्राक्ष को केवल वही व्यक्ति धारण कर सकता है जो ब्रह्म तत्व को मानता हो और सदाचारी हो। इसे चोटी पर धारण किया जाता है। इसे धारण करने से निश्चित ही पुत्र रत्न की प्राति होती है। स्कन्ध पुराण में वर्णन है कि चौदह मुखी रुद्राक्ष श्री कंठ देव का स्वरूप है। यह समस्त परिवार के लिए कल्याणकारी है।




आप रूद्राक्ष किस उद्देेश्य की प्राप्ति के लिए धारण करना चाहते हैं, इसका निर्णय आप उपरोक्त रूद्राक्षोेंं के आधार पर आसानी से ले सकते हैं।


 


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