व्यक्ति के जीवन में उतार-चढाव आते रहते हैं। यह जीवन है, परेशानियां, जीवन का हिस्सा हैं। किन्तु कुछ परेशानियां ऐसी होती हैं, जो जीवन का रुख ही बदल देती हैं। हमारे शास्त्रों में राशियाेें आदि का वर्णन मिलता है, उन्हीं के अनुसार व्यक्ति का जीवन चलता है। ग्रह-नक्षत्र, जीवन को पूर्ण रूप से प्रभावित करतेे हैं। बुरे प्रभाव को रोकने के लिए राशि अनुसार रत्न धारण करने का विधान है। जिनसे ग्रहों के बुरे प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
ज्योतिष मजाक या मनोरंजन का विषय नहीं है अपितु एक ऐसा गंभीर विषय है जो सामने वाले व्यक्ति के संपूर्ण जीवन पर प्रभाव छोड़ता है। ज्योतिषी का पद किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति से कहीं अधिक सम्माननीय होता है। ज्योतिषी के द्वारा कहा गया एक-एक शब्द जातक के संपूर्ण जीवन को प्रभावित करता है। अतः सिर्फ स्वयं के सम्मान और प्रभाव के लिये किसी के जीवन से संबन्धित फलादेश लापरवाही में नही करनी चाहिए।
ज्योतिर्ष शास्त्र में प्रतिकूल समय में उपाय के लिए मूलतः तीन माध्यम रत्न, मंत्र और दान बताए गए हैं। इन उपायों को करवाने का एक निश्चित सिद्धान्त है जो निम्न प्रकार से है-
रत्नः रत्न मूलतः तब धारण कराया जाता है जब कोई ग्रह जातक को अनुकूल प्रभाव दे रहा हो, यदि संबन्धित ग्रह की शक्ति कमजोर हो रही हो, अर्थात अनुकूल प्रभाव प्रदान करने के लिए कमजोर ग्रह का रत्न धारण करवाया जाना चाहिए।
मंत्रः मंत्र का प्रयोग तब किया जाता है जब कोई ग्रह अनुकूल और प्रतिकूल दोनों प्रकार का मिश्रित प्रभाव दे रहा हो। मंत्रों की शक्ति से अनुकूल प्रभाव का असर बढ़ जाता है और प्रतिकूल प्रभाव नष्ट हो जाता है।
दानः जब कोई ग्रह जातक पर प्रतिकूल प्रभाव प्रदान कर रहा हो तो संबन्धित ग्रह की वस्तुओं का दान किया जाना चाहिए।
अतः जातक को रत्न धारण कराना अत्यधिक जिम्मेवारी का कार्य होता है। हाथ का सूक्ष्मता से निरीक्षण करवाने के पश्चात् ही जातक को रत्न धारण करना चाहिए। रत्न धारण करने की भी एक निश्चित विधि होती है। सर्वप्रथम रत्न को साधारण जल से धोएं। फिर गंगाजल से धोएं। अब रत्न को धारण करने वाले दिन से एक दिन पहले रात को कच्चे दूध में भिगोकर रख दें। अगले दिन पुनः गंगाजल से धोकर रत्न को पूजा के स्थान में रखकर रोली और चावल चढ़ाएं और दीपक दिखाएं। अब यदि जो भी रत्न धारण कर रहे हैं उस रत्न का मंत्र पढ़कर संबन्धित उंगली में रत्न धारण करें।
ग्रहों के अनुसार रत्न और उन्हें धारण करने के नियमः
सूर्यः सूर्य के लिए 3 रत्ती का माणिक रत्न, अनामिका उंगली में स्वर्ण धातु में जड़वाकर रविवार के दिन अथवा पुष्य नक्षत्र में धारण करना चाहिए।
सूर्य के उपरत्न लाल रक्तमणि तथा रक्ताशम हैं।
चन्द्रः चन्द्र के लिए 7 रत्ती का मोती, कनिष्ठा उंगली में चांदी की धातु में जड़वाकर शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को अथवा रोहिणी नक्षत्र में धाारण करना चाहिए।
चन्द्र का उपरत्न मून स्टोन है।
मंगलः मंगल के लिए 5 रत्ती का मूँगा अनामिका उंगली में स्वर्ण या ताँबे की धातु में मंगलवार के दिन और सूर्योदय के समय धारण करना चाहिए।
मंगल का उपरत्न रातरतुवा है।
बुधः बुध के लिए 5 रत्ती का पन्ना कनिष्ठा उंगली में स्वर्ण या कांसे की धातु में बुधवार के दिन अथवा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में धारण करें।
बुध का उपरत्न फिरोजा हैं।
गुरुः गुरु के लिए 5 रत्ती का पुखराज, तर्जनी उंगली में स्वर्ण धातु में जड़वाकर गुरुवार के दिन अथवा गुरुपुष्य नक्षत्र में धारण कराएं।
गुरु का उपरत्न सुनहला है।
शुक्रः शुक्र के लिए 2 कैरेट का हीरा मध्यमा उंगली में सोने या चांदी की धातु में जड़वाकर शुक्रवार के दिन अथवा मृगशिरा नक्षत्र में धारण करना चाहिए।
शुक्र के उपरत्न जर्कन तथा ओपल हैं।
शनिः शनि के लिए 3 रत्ती का नीलम मध्यमा उंगली में पंचधातु या लोहे की धातु में शनिवार के दिन अथवा श्रवण नक्षत्र में धारण करना चाहिए।
शनि के उपरत्न नीली या कटैला है।
राहुः राहु के लिए 5 रत्ती का गोमेद, मध्यमा उंगली में पंचधाातु या सीसा की धातु में शनिवार के दिन अथवा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में धारण करना चाहिए।
राहु का उपरत्न अम्बर या तुरसावा है।
केतुः केतु के लिए 5 रत्ती का लहसुनिया, मध्यमा उंगली में पंचधातु या सीसे की धातु में जड़वाकर गुरुवार के दिन अथवा गुरु पुष्य नक्षत्र में धारण करना चाहिए।
केतु के उपरत्न मार्का और एलेग्जण्ड्राइट है।
ज्योतिष शास्त्र में मंत्रोें के महत्त्व को रत्न तथा दान से अधिक बताया गया है। जहाँ पर रत्न तथा दान कार्य नहीं कर पाते वहां पर मंत्र कार्य करते हैं। मंत्रोें का महत्त्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि मंत्र संबन्धित ग्रह का प्रभाव बढ़ाने के साथ-साथ उस ग्रह के अशुभ प्रभाव को शुभ प्रभाव में बदलने में सक्षम होते हैं।
इसलिए मंत्रोें का प्रयोग जातक के लिए ग्रह की शुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार की प्रवृत्तियों के उपाय में कार्य करता है। साधारण स्थिति में असर प्राप्त करने के लिए ग्रहों के मूल मंत्रोें एवं विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए ग्रहों के बीज मंत्रोें का उच्चारण किया जाना चाहिए। किसी भी मंत्र की कम से कम एक माला करना अनिवार्य होता है। एक माला में 108 मनके होते हैं। अर्थात एक बार में किसी भी मंत्र का 108 बार उच्चारण करना अनिवार्य है।
ग्रहों के मूल मंत्र
सूर्यः- ऊँ सूर्याय नमः - 6000 मंत्र 40 दिनाें में
चन्द्रः- ऊँ चन्द्राय नमः - 11000 मंत्र 40 दिनों में
मंगलः- ऊँ भौमाय नमः – 10000 मंत्र 40 दिनों में
बुध:- ऊँ बुधाय नमः - 16000 मंत्र 40 दिनों में
गुरुः- ऊँ गुरवे नमः - 19000 मंत्र 40 दिनों में
शुक्रः- ऊँ शुक्राय नमः – 16000 मंत्र 40 दिनों में
शनिः- ऊँ शनिचराय नमः - 23000 मंत्र 40 दिनों में
राहुः- ऊँ राहवे नमः - 18000 मंत्र 40 दिनों में
केतुः- ऊँ केतवे नमः - 18000 मंत्र 40 दिनों में
दान
किसी भी ग्रह का दान उस स्थिति में कराना चाहिए जब संबन्धित ग्रह जातक के लिए प्रतिकूल प्रभाव दे रहा हो। परन्तु ग्रह का दान बताते समय सूक्ष्मता से ज्योतिर्षीय गणना करना आवशयक है। यदि अनुकूल असर दे रहे ग्रह का दान करा दिया गया तो जातक के लिए यह दान द्यातक भी हो सकता है। ग्रह के दान का सीधा सा उद्देश्य यह होता है कि संबन्धित ग्रह के असर को कम किया जाए। अतः दान के वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि उक्त ग्रह प्रतिकूल प्रभाव ही दे रहा हो। प्रत्येक ग्रह की दान की जाने वाली वस्तुएं निर्धारित हैं। जिस ग्रह की जो वस्तु होती है वह वस्तु संबन्धित ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है अतः उक्त वस्तु के माध्यम से ग्रह का दान करके ग्रह के असर को कम किया जाता है। प्रत्येक ग्रह की दान की जाने वाली वस्तुएं निम्नलिखित हैं।
ग्रहों के अनुसार दान की जाने वाली वस्तुएं
सूर्यः लाल चन्दन, माणिक्य, तांबा, गेहूँ, गुड़, लाल कमल का फूल।
चन्द्रः चांदी, मोती, दूध, चावल, बरसाती, जल, सफेद कपड़ा, सफेद फूल, कपूर।
मंगलः तांबा, लाल मूंगा, लाल सिंदूर, बंदर, शहद, मसूर की लाल दाल, कनेर का फ़ूल, लाल कपड़ा।
बुधः कांस्य, पन्ना, कागज, हरा कपड़ा, केला, मूली, पालक, मूंगा की हरी दाल, तोता।
गुरुः सोना, पुखराज, हल्दी, पीला कपड़ा, पीला फूल, पीपल का वृक्ष।
शुक्रः दही, हीरा, सफेद गाय, इत्र।
शनिः लोहा, नीलम, उड़द की दाल, सरसों का तेल, काले तिल, काला कपड़ा, भैंस, चमड़े का जूता, सांप, चमड़ा, पत्थर का कोयला।
राहुः नीला कपड़ा, गोमेद, नीले फूल, जौ, हाथी, लकड़ी के कोयले, मछली।
केतुः सात प्रकार के अनाज, लहसुनिया, नारियल, कंबल, बकरा, चितकबरा कुत्ता, श्मशान भूमि।
ग्रहों के अच्छे फल प्राप्त करने के लिए अन्य उपायः
सूर्यः आदित्य हृदय स्त्रोत या गायत्री मंत्र का पाठ करें। सूर्योदय के समय सूर्य को जल दें।
चन्द्रः शिावजी का सोमवार के दिन अभिषेक करें।
मंगलः हनुमान चालीसा अथवा सुन्दरकाण्ड़ का मंगलवार को पाठ करें।
बुधः भगवान विष्णु अथवा कृष्णजी की भक्ति करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
गुरुः शिवजी का पूजन करें।
शुक्रः दुर्गाजी का पूजन करें अथवा दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
शनिः हनुमान चालीसा अथवा सुन्दरकाण्ड़ का मंगलवार को पाठ करें और शनिदेव को तेल चढ़ाएं।
राहुः काल भैरव का पूजन करें।
केतुः गणेशजी की पूजा करें।
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