जीवन की सभी अवस्थायें कब बीत जाती हैं पता ही नहीं चलता, किन्तु जब हम वृद्धावस्था में प्रवेश करते हैं तो हमें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इससे हम हमेशा आशंकित भी रहते हैं फलस्वरूप हमारा स्वभाव बदलने लगता है। तनाव हमें घेर लेता है। इस उम्र में ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि इस उम्र में लोग अधिकतर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके होते हैं। बच्चे बड़े हो जाते हैं, वह अपने करियर बनाने में व्यस्त रहते हैं या फिर अपने परिवार की जिम्मेदारियों में। हमारे पास समय तो होता है किन्तु काम नहीं होता। जिससे समय कटता ही नहीं है। हम चाहते हैं कि बच्चे हमें समय दे, वह चाहते हुए भी ऐसा शायद नहीं कर पाते। सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चों का अच्छा व्यवसाय या नौकरी हो, वह अपनी जिंदगी में खुश रहें जब यह सब होगा तो समय कहां होगा? स्वयं ही सोचिए।
भारत में चिकित्सा पद्धतियों और निरंंतर मजबूत होती अर्थव्यवस्था के कारण मृत्यु दर में काफी कमी आई है। परिणामस्वरूप भारत में वृद्धों लोगों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। वृद्धावस्था में शारीरिक क्षमता, युवावस्था के मुकाबले कम हो जाती है। शरीर में कई बदलाव आने आरम्भ हो जाते हैं। इस उम्र में व्यक्ति को कई प्रकार की मानसिक और शारीरिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है। वैसे तो इस अवस्था से घबराने की कोई वजह नहीं हैं। जैसे जीवन की अन्य अवस्थाएं हैं उनमें से वृद्धावस्था भी एक अवस्था ही है। जब हम अन्य अवस्थाओं में जीवन का आनन्द लेते हैं तो हमें इस अवस्था को भी पूरे उल्लास के साथ अपनाना चाहिए। हमें मायूस नहीं होना चाहिए।
यदि वृद्धावस्था का दूसरे पहलू पर विचार करें तो यदि सब कुछ ठीक रहे तो इस अवस्था से बेहतर अन्य कोई अवस्था है ही नहीं, वृद्धावस्था को बचपन की बेफिक्री की तरह जीयें। बच्चों के साथ खेलें। स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए योग करें। खान-पान पर विशेष ध्यान दें। यदि आपके पास फाइंनेशल कोई इश्यू नहीं है तो स्वयं को सामाजिक कार्यो में व्यस्त करें। यात्रओं पर जायें। घूमें-फिरें। इस उम्र में वे सब कार्य करें, जिन्हें आप परिवार की जिम्मेदारियों के कारण नहीं कर पाये थे। अपनी वे सभी इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करें। मैं तो यह कहूंगी कि ईश्वर ने आपको अपनी जिंदगी पुनः जीने का अवसर दिया है, इसलिए सब चिंताओं को छोड़ कर इस अवस्था का भी पूरी तरह से आनन्द लें।
अधिकतर देखा गया है कि इस उम्र पर आते-आते हमारे बुजुर्ग आर्थिक रूप से भी काफी कमजोर हो जाते हैं, तो परिवार के सदस्यों को चाहिए कि वे उनकी आवश्यकताओं को पूरा ख्याल रखें और जो व्यक्ति इस उम्र पर नहीं पहुंचे है या पहुंचने वाले हैं तो बच्चों के भविष्य को संवारने के साथ-साथ अपनी वृद्धावस्था को अवश्य प्लान करें। यह बच्चों का भविष्य संवारने से भी अधिक आवश्यक है। जो ऐसा नहीं कर पायें हैं उन्हें भी निराश होने की आवश्कता नहीं है। आज तकनीकि विकास इतना हो चुका है कि आपके सामने अनेकों विकल्प मौजूद हैं। महिलाएं हों या पुरुष सभी में कोई न कोई हुनर अवश्य होता है। उदाहरण के लिए लिए आप यदि अच्छे पढे लिखे हैं तो अपना ऐसा कोई व्यवसाय कर सकते हैं जिसमें शारीरिक दौड़-भाग कम करनी पड़े। करियर के लिए युवाओं को मार्ग दर्शन की आवश्यकता होती ही है, उनकी कांउसलिंग करें, ट्यूशन पढ़ा सकते हैं। ट्रेनिंग स्कूल खोल सकते हैं। ऐसे कई विकल्प हैं जिन्हें आप अपना सकते हैं।
यदि बात करें महिलाओं की तो वह तो हुनर का खजाना हैं। सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, कुकिंग ऐसे कई कार्य हैं जिन्हें वह अपना कर स्वयं को व्यस्त और सक्रिय रख सकती हैं। इस प्रकार आपमें आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, जो हर उम्र के व्यक्ति के लिए बेहद आवश्यक है।
यदि घर के सदस्यों की बात करें तो परिवार के सदस्यों को चाहिए कि वह उम्र के इस पड़ाव पर, स्वयं उनकी देखभाल करने का प्रयास करें, उनके लिए समय निकालें। यदि हम समय से थोड़ा सा पीछे जायें और अपने बचपन के बारे में सोचें जब माता-पिता हमारी देखभाल किया करते थे, उसे समय यदि हमारे माता-पिता ने हमें बोडिंग आदि में छोड़ दिया होता तो हमें कितनी तकलीफ होती। जिस प्रकार बचपन को माता-पिता के प्यार और दुलार की आवश्यकता होती है ठीक इस प्रकार ही उम्र के इस पड़ाव पर अपनों के अपनत्व और देखभाल की आवश्यकता होती है। हमेें उनकी भावनाओं और आवश्कताओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिएं। हमें घर के बुर्जुगों की देखभाल इसलिए भी करनी चाहिए क्योंकि परिवार के सदस्य, अपने बुर्जुगों की आवश्यकताओं और आदतों को अच्छी से तरह से जानते और समझते हैं। यदि परिवार के सदस्य धनोपार्जन या करियर की भाग-दौड़ के कारण उन्हें पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं तो घर के बच्चों को बुर्जुगों की जिम्मेदारियों को संभालने में सम्मिलित करें। इससे बच्चों में संस्कार आयेंगे, बच्चे परिवार से जुड़ेंगे, उनमें भावनात्मक विकास और लगाव पैदा होगा और घर के बुर्जुगों को भी खुशी होगी।
वृद्धावस्था में होने वाले बदलाव और समाधानः
उम्र बढ़ने के साथ विभिन्न प्रकार की बीमारियों, दवाओें के अधिक प्रयोग से, होने वाले दुष्परिणाम की संभावनाए बढ़ती हैं। प्राकृतिक और रक्षात्मक क्षमता में गिरावट के कारण आने के कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है। अधिक समय तक अस्वस्थ रहने के कारण चक्कर आना, भ्रमित होना, ऊंचा सुनाई देना, धुंधला दिखाई देना जैसी बीमारियां हो सकती हेैं। इस उम्र में लीवर और किडनी में रक्तप्रवाह कमजोर होने लगता है। जिससे शारीरिक बदलाव और कमजोरी आने लगती है। इसलिए हमें निम्न बातों का ख्याल रखना चाहिए।
स्वचिकित्सा करने का प्रयास न करें।
कुछ सामान्य बीमारियों में कभी-कभार दवाइयों की आवश्यकता नहीं होती, यदि दवा लेने की आवश्यकता हो भी तो बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी दवा न लेे।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ आंखों से कम दिखाई देना आरम्भ हो जाता है यदि आपके साथ ऐसा है तो अपने पास चश्में के दो सेट रखें। यदि एक चश्मा टूट जाता है या कोई खो जाता है तो दूसरा सेट आपको होने वाली परेशानियों से बचायेगा।
घर से बाहर जाते समय अपने साथ हमेशा अपने आईडी कार्ड की फोटो कॉपी, घर के सदस्यों के फोन नंबर, और नाम और पता हमेशा साथ रखें। प्रयास करें कि अधिक उम्र के बुजुर्ग घर से न अकेले न निकलें।
घर के बाहर जाने से पहले अपने पर्स में पर्याप्त रुपये रखें। अपने फैमिली डॉक्टर का नाम व पता भी रखें।
कानूनी औषधारिकताः
घर के बुजुर्ग बच्चों के साथ बैठकर यह अवश्य तय करें कि उनके गंभीर रूप से बीमार पड़ने की अवस्था में घर का कौन-सा व्यक्ति इलाज की जिम्मेदारी लेगा, इस विषय में आप पहले ही घर में तय करके रखें।
80 वर्ष की उम्र के बाद जो बुजुर्ग घर में अकेले रहते हों उन्हें हरगिज अकेला न छोड़ें, घर में कुछ ऐसा सामंजस्य लाने का प्रयास करें जिससे उनकी देखभाल या उनके पास हमेशा कोई रहे। यदि ऐसा संभव न हो तो किसी भरोसेमंद केयर टेकर की व्यवस्था अवश्य करें।
वृद्धावस्था में महत्वपूर्ण जांच
ब्लडप्रेशर (हर वर्ष जांच करायें।)
थायरॉयड ग्रंथि की जांच
महिलाओं मेें की जाने वाली जांच
पैप स्मियर की जांच तीन वर्ष में एक बार अवश्य करायें।
स्त्री व पुरुष नियमित रूप से अपनी सभी जांच अवश्य करायें। नियमित रूप से आंखों की जांच अवश्य करायें।
योग और वृद्धावस्था
योग एक ऐसी पद्धति है जो आपको उम्र के हर पड़ाव पर लाभ ही पहुंचायेगी। योग हमें मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने में मदद करता है। योग हर उम्र के व्यक्ति को करना चाहिए। योग करने से रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है और शरीर स्वस्थ और तरोताजा महसूस करता है। योग करने से हार्मोन्स में संतुलन बना रहता है। मांस पेशियां मजबूत बनती हैं। योग के माध्यम से फेफड़ों की कार्य क्षमता बढ़ने लगती है। तनाव दूर होता है। यदि व्यक्ति युवा अवस्था से ही योग को अपनाता है तो वृद्धावस्था का प्रभाव शरीर पर कम या देर से होता है।
योगासन में सांस लेते हुए अपने हाथों को कान से होते हुए ऊपर की ओर ले जाएं। पैरों को जमीन पर समतल रखें। रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें। ऐसा करने से शरीर में मजबूती आती है और शारीरिक दर्द दूर होता है।
पर्वत आसन की मदद से मानसिक और शारीरिक तनाव को काफी हद तक दूर किया जा सकता है।
रात को सोने से पहल से और सुबह उठने पर सर्वप्रथम कुछ मिनट ध्यान अवश्य करें। इससे आप स्वयं को तनाव मुक्त महसूस करेेंगे।
सुबह और शाम सैर पर अवश्य जायें।
बैठते समय प्रयास करें कि आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें। कमर सीधी रखने से कई प्रकार की समस्याओं से मुक्ति मिलती है। यदि कमर दर्द है तो कमर दर्द दूर करने के लिए योग करें न कि दवाइयों से दूर करने का प्रयास करें। कुछ समय अपनी सांसों पर ध्यान दें, लंबी सांस लें और धीरे-धीरे छोड़ें इससे आपके शरीर में ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्र जायेगी जो आपको अन्य कई बीमारियों से दूर रखेगी।
यदि संभव हो तो यौगिक क्रियाएं किसी की साथ मिलकर या किसी के सहयोग से करें, अकेले मेें व्यायाम न करें।
योग को अपने जीवन का हिस्सा बनायें। योग के संबंंधित विषयों पर हम आने वालेेेे समय में चर्चा करेंगेे। इस उम्र पर स्वयं को स्वयं के लिए सक्रिय रखें। जितना आप आत्मनिर्भर और सक्रिय रहेंगे उतना अधिक जीवन का आनन्द ले पायेेंंगे।
शुभकामनाएं
मेरी वृंदा
Comments