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महिलाओं को समानता का अधिकार | Right to equality for women

Vimla Sharma

Updated: Oct 10, 2021



देश को आजाद हुए 70 वर्ष हो चुके हैं किन्तु महिलाओं के अधिकारों के प्रति समाज की सोच अभी भी नहीं बदली है। समाज का एक विशेष वर्ग महिलाओं की योग्यता को देखकर शायद डरा हुआ है तभी तो वह महिलाओं को समान अवसर देने के पक्ष में नहीं है। आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी मेहनत और योग्यता दर्ज करा चुकी हैं। वह एवरेस्ट तक फतह कर चुकी हैं। अंतरिक्ष में जा चुकी हैं। ऐसा कोई क्षेत्र ही नहीं बचा है जहां उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज न कराई हो। यह सब उसने कडे संघर्ष के बाद पाया है। उन्हें समान अधिकार मिलने ही चाहिए जो उन्हें दिये नहीं जाते। आज भी देश की संसद में महिला आरक्षण बिल लंबित है।

 

आज समाज में महिलाओं की भागेदारी हर क्षेत्र में दिख रही है। वह घर और बाहर, हर क्षेत्र में अपनी मेहनत और संघर्ष के बल पर अपना लोहा मनवा रही हैं। किन्तु समाज में एक वर्ग ऐसा भी है जिन्हें महिलाओं की उपलब्धियां पच नहीं रही हैं। यह सोच कोई नई नहीं है यह सोच हमारे समाज में प्रारम्भ से ही रही है। हाल ही में लंबे समय से लंबित सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन की मांग पर सुनवाई कर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को नोटिस दिया और कहा है कि हमें समाज में सच्ची समानता लानी होगी। लेकिन इस विषय पर समाज का एक वर्ग का तर्क है कि ऐसा करने की आवश्यकता ही नहीं है। उनका मानना है कि महिलाएं शारीरिक रूप से पुरुषों के मुकाबले कमजोर होती है। इसलिए समानता तो हो ही नहीं नहीं सकती। महिलाओं को हर क्षेत्र में पुरुषों के संरक्षण की आवश्यकता है।



यह सोच ही बिल्कुल निराधार है। जब आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर हर क्षेत्र में कार्य करने में सक्षम हैं। महिलाएं सेना में परीक्षाएं पास करके ही पहुंची हैं। उन्हें भी कठिन ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। वह भी पुरुषों के साथ युद्धों के मैदान में लड़ रही हैं, तो फिर उन्हें समान सुविधाएं और अवसर क्यों नहीं दिये जा सकते। वास्तव में सुप्रीम कोर्ट का फैसला काबिले तारीफ है।



किसी भी क्षेत्र में महिलाओं की समानता की बात इसलिए की जाती है क्योंकि आज भी हमारे समाज की रूढि़वादी सोच के कारण महिलाओं को किसी भी क्षेत्र में समान अवसर नहीं दिये गये। उन्हें हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी देने और प्रोत्साहि‍त करने के लिए महिलाओं को संरक्षण की नहीं, आरक्षण की आवश्यकता है। यदि बात करें अपनी संसद की, जहां देश के लिए कानून बनाये जाते हैं वहां भी यह मुद्दा राजनीति का शिकार हो रहा है। भारतीय राजनीति में आजादी के 70 वर्षों के बाद भी महिलाओं की भागीदारी बहुत ही कम है। महिलाएं आज भी मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। हमारा समाज पुरुष प्रधान है। आज आवश्यकता है कि इस विषय पर विश्लेषण किया जाये ताकि उन कारणों तक पहुंचा जा सके कि हमारे समाज की महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए इतना संघर्ष क्यों करना पड़ रहा है । भारत की संसद, जहां देश के कानून बनते हैं, वहां भी राजनीति के चलते महिलाओं को पहुंचने ही नहीं दिया जा रहा। आजादी के 70 वर्षों बाद भी महिला आरक्षण विधेयक पारित नहीं हो सका है।




इस निराशाजनक स्थिति से बाहर निकलने के लिए महिलाओं को स्वयं ही आगे आना चाहिए। चुनाव के समय बड़े-बड़े आश्वासन दिये जाते हैं किन्तु वही ‘ढाक के तीन पात’ वाली स्थिति बनकर रह जाती है। जब तक महिलाएं स्वय सशक्त नहीं बनेंगी, महिलाओं के मुद्दों पर राजनीति को दरकिनार करके एकजुट नहीं होंगी तब तक स्थिति को बदलना आसान नहीं है।

अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुकी हिलेरी क्लिंटन का इस विषय पर कहना है कि ‘’जब तक महिलाओं की आवाज नहीं सुनी जायेगी तब तक सच्चा लोकतंत्र नहीं आ सकता। जब तक महिलाओं को समान अवसर नहीं दिये जाते तक सच्चा लोकतंत्र स्थापित नहीं हो सकता।’’



भारत में महिलाओं की संख्या पहले से बढ़ी है। महिला और पुरुषों की औसत संख्या लगभग बराबर ही है। किन्तु फिर भी महिलाओं की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। वह आज भी घर की चारदिवारी और घर के बाहर, दोनों ही जगह मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रही है। जब भी हम समानता की बात करते हैं तो समानता के लिए समान अवसर दिये जाना आवश्यक है। संसद में महिलाओं की संख्या पर चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं। महिलाओं की यही स्थिति लगभग सभी क्षेत्रों में है। अभी तक महिलाओं ने जिस भी क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है उसके पीछे कड़ा संघर्ष छिपा है। फिर भी महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया है।

हमारे समाज में शिक्षा का स्तर निरंतर बढ़ रहा है किन्तु न जाने क्यों हमारा समाज रूढि़वादी सोच से बाहर नहीं निकल पा रहा है। बड़े शहर हों या कोई छोटा, महिलाओं को समाज की नजरों का शिकार होना पड़ता है, उसे ताने सुनने पड़ते हैं] उसे हतोत्साहित कर डराया जाता है। ऐसे में घर की मांओं को चाहिए कि वह परिस्थितियों को समझें, जो अवसर उन्हें नहीं मिल सके वह अपनी बेटियों को दिलाने में उनका सहयोग करें। उनके सहयोग के बिना उनके लिए यह राह आसान नहीं है। बच्चियों को समझें, उन्हें प्रोत्साहित करें। उनके लिए समय निकालें।



महिलाएं किसी भी क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सक्षम है। जब हर क्षेत्र में महिलाओं की संख्या बढ़ेगी तो परिस्थितियां भी बदलेंगीं। यही उम्मीद की जा सकती है। आज वह समय है जब महिलाएं घर की चारदिवारी से निकल कर अपना भविष्य बनायें। कानून ने उन्हें कुछ अधिकार दिये हैं वह उनके बारे में जानकारी रखें। जागरूक बनें। घर की जिम्मेदारियों को निभाने के बाद अपने प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों को अनदेखा न करें। अपनी मां, बहन, पत्नी की पहचान के अलावा भी अपनी स्वयं की पहचान बनायें। अपनी स्थिति को मजबूत बनायें। आत्मनिर्भर बनें, जिससे उन्हें पैसों के लिए दूसरे पर निर्भर न होना पड़े। आत्मनिर्भरता हमें कई बंधनों से स्वयं भी मुक्त कर देती है, इससे परिवार और समाज में सम्मान बढ़ता है, भागीदारी बढ़ती है। बातों को अहमियत दी जाती है।



जब अहमियत दी जायेगी तो अवसर भी बढ़ेंगे। समाज को जितनी आवश्यकता पुरुषो के सहयोग की है उससे कहीं अधिक महिलाओं के साथ की भी है। महिलाएं परिवार, समाज के लिए एक पिलर की तरह हैं जिस पर हमारा समाज, परिवार और देश टिका है। महिलाओं की स्थिति जितनी मजबूत होगी, उस देश की स्थिति और मजबूत होगी। विदेशों के मुकाबले आज भी भारतीय महिलाएं पुरुषों पर निर्भर हैं। वह अपने निर्णय तक स्वयं नहीं ले पातीं। यही कारण है कि समानता के अधिकारों से आज भी वंचित हैं। महिलाओं को चाहिए कि वह इस पर विचार करें। अपनी बच्चियों को सशक्त बनायें, उनका साथ दें और अपना संघर्ष जारी रखें।



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