प्रकृति का अपना कर्म है- ओशो | Nature has its own action - Osho
- Vimla Sharma
- May 29, 2021
- 7 min read
Updated: Jul 29, 2022
प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति के गुणों के परवश कर्म करता है, ज्ञानी भी, अज्ञानी भी। और किसी का हठ इसमें कुछ भी नहीं कर सकता है। जैसे अज्ञानी भी मरता है, ज्ञानी भी मरता है और किसी का हठ इसमें कुछ भी नहीं कर सकता है। क्योंकि शरीर का गुणधर्म है कि जो पैदा हुआ, वह मरेगा। असल में जिस दिन पैदा हुआ, उसी दिन मरना शुरू हो गया है। जिसका एक छोर है, उसका दूसरा छोर भी है। इधर जन्म एक छोर है, मृत्यु दूसरा छोर है। ज्ञानी भी मरता है, अज्ञानी भी मरता है। और अगर कोई हठ करे कि मैं न मरूंगा, तो वह पागल है। हठ से कुछ भी न होगा। लेकिन एक सवाल उठ सकता है कि अगर ज्ञानी भी मरता है, अज्ञानी भी मरता है_ और अगर ज्ञानी भी परवश होकर जीता है और अज्ञानी भी परवश होकर जीता है, तो फिर दोनों में फर्क क्या है?
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि सभी प्राणी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात अपने स्वभाव के अनुरूप ही कर्म करते हैं। ज्ञानवान भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है, फि़र इसमें किसी का हठ क्या करेगा! इसका अर्थ भी स्पष्ट करें।
कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं समर्पण के लिए, सरेंडर के लिए। वही मूल सूत्र है, जहां से व्यक्ति अपने को छोड़ता और परमात्मा को पाता है। तो वे उस समर्पण के लिए कह रहे हैं कि प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति के गुणों के परवश कर्म करता है, ज्ञानी भी, अज्ञानी भी। और किसी का हठ इसमें कुछ भी नहीं कर सकता है। जैसे अज्ञानी भी मरता है, ज्ञानी भी मरता है और किसी का हठ इसमें कुछ भी नहीं कर सकता है। क्योंकि शरीर का गुणधर्म है कि जो पैदा हुआ, वह मरेगा। असल में जिस दिन पैदा हुआ, उसी दिन मरना शुरू हो गया है। जिसका एक छोर है, उसका दूसरा छोर भी है। इधर जन्म एक छोर है, मृत्यु दूसरा छोर है। ज्ञानी भी मरता है, अज्ञानी भी मरता है। और अगर कोई हठ करे कि मैं न मरूंगा, तो वह पागल है। हठ से कुछ भी न होगा। लेकिन एक सवाल उठ सकता है कि अगर ज्ञानी भी मरता है, अज्ञानी भी मरता है_ और अगर ज्ञानी भी परवश होकर जीता है और अज्ञानी भी परवश होकर जीता है, तो फिर दोनों में फर्क क्या है?
फर्क है, और बड़ा फर्क है। अज्ञानी हठपूर्वक प्रकृति के गुणों से लड़ता हुआ जीता है। हारता है, पर लड़ता जरूर है। ज्ञानी जानकर कि प्रकृति के गुण काम करते हैं, लड़ता नहीं, इसलिए हारता भी नहीं, और साक्षीभाव से जीता है। मृत्यु दोनों की होती है, ज्ञानी की भी, अज्ञानी की भी। अज्ञानी कोशिश करते हुए मरता है कि मैं न मरूं, ज्ञानी बांहें फैलाकर आलिंगन करता हुआ मरता है कि मृत्यु स्वाभाविक है। इसलिए अज्ञानी मरने की पीड़ा भोगता है, ज्ञानी मरने की कोई पीड़ा नहीं भोगता। अज्ञानी मरने से भयभीत, कांपता हुआ मरता है, ज्ञानी आनंद से पुलकित, नए द्वार से नए जीवन में प्रवेश करता है। दोनों मरते हैं।
प्रकृति के क्रम के अनुसार, प्रकृति के गुण के अनुसार दोनों के जीवन में सब कुछ वही घटता है। अज्ञानी भी जवान होता है प्रकृति के गुणों से , ज्ञानी भी जवान होता है। अज्ञानी समझ लेता है कि मैं जवान हूं और ज्ञानी समझता है कि जवानी एक फेज है, यात्रा का एक पड़ाव है, आया और गया। फिर जवानी छूटती है, तो दुखी होता, पीडि़त होता, परेशान होता। ज्ञानी- छूटती है, तो जैसे सांझ सूरज डूब जाता है, ऐसी जवानी डूब जाती है, वह आगे बढ़ जाता है।
ज्ञानी और अज्ञानी में जो फर्क है, वह इतना ही है कि अज्ञानी जो होने ही वाला है, उससे भी व्यर्थ लड़कर परेशान होता है। ज्ञानी जो होने ही वाला है, उसे सहज स्वीकार करके परेशान नहीं होता है। प्रकृति के गुण दोनों पर एक-सा काम करते हैं, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रकृति ज्ञानी और अज्ञानी को नहीं देखती, प्रकृति का अपना कर्म है, अपनी व्यवस्था है, अपने गुणधर्मों की यात्रा है। प्रकृति वैसी ही चलती रहती है। वह कभी नहीं देखती, देखने का कोई सवाल भी नहीं है।
कृष्ण यह कह रहे हैं, इसलिए हठधर्मी व्यर्थ है। क्यों वे अर्जुन से कह रहे हैं, अर्जुन थोड़ी हठधर्मी पर उतारू है। वह कहता है कि मैं यह क्षत्रिय-वत्रिय होना छोड़कर भागता हूं। मैं युद्ध बंद करता हूं। यह मैं नहीं करूंगा। वह कहता है कि मैं लोगों को नहीं मारूंगा। कृष्ण यह कह रहे हैं कि मरना जिसे है, वह मरता है_ तू नाहक हठधर्मी करता है कि तू नहीं मारेगा, या तू मारेगा_ ये दोनों ही हठधर्मियां हैं। जो मरता है, वह मरता है_ जो नहीं मरता, वह नहीं मरता है।
कृष्ण का गणित बहुत साफ है। वे यह कह रहे हैं कि तू इसमें व्यर्थ हठधर्मी न कर। तू सिर्फ एक पात्र हो जा इस अभिनय का और जो परमात्मा से तेरे ऊपर गिरता है, उसे होने दे। और जो प्रकृति से होता है, उसे होने दे। तू इसमें बीच में मत आ, तू अपने को मत ला। ज्ञानी और अज्ञानी में उतना ही फर्क है। घटनाएं वही घटती हैं, रुख अलग हो जाता है_ बीमारी आ जाती है, तो अज्ञानी छाती पीटकर रोता है कि बीमारी आ गई। ज्ञानी स्वीकार कर लेता है कि बीमारी आ गई। शरीर का धर्म है कि वह बीमार होगा, नहीं तो मरेगा कैसे! नहीं तो वृद्ध कैसे होगा! शरीर एक बड़ा संस्थान है, एक संघात है, उसमें करोड़ों जीवाणुओं का जोड़ है। उतनी बड़ी मशीनरी चलेगी, खराब भी होगी, वह सब होगा। इतनी बड़ी मशीन अभी पृथ्वी पर दूसरी कोई नहीं है, जितनी आदमी के पास है। इतनी कांप्लेक्स, इतनी जटिल मशीन भी कोई नहीं है, जितना अभी आदमी है। आप कोई छोटी-मोटी घटना नहीं हैं। वह तो आपको कुछ करना नहीं पड़ता, इसलिए आपको कुछ पता नहीं चलता कि कितनी बड़ी मशीन काम कर रही है चौबीस घंटे। मां के पेट में जिस दिन पहले दिन गर्भाधान हुआ था, उस दिन से काम शुरू हुआ_ और जब तक लोग चिता पर न चढ़ा देंगे, तब तक जारी रहेगा। चिता पर इसलिए कह रहा हूं कि जिनको हम कब्र में गाड़ते हैं, तो गाड़ने के बाद भी बहुत दिन तक काम जारी रहता है मशीन का। आत्मा तो जा चुकी होती है। मुर्दों के भी नाखून बढ़ जाते हैं, बाल बढ़ जाते हैं कब्र में। मशीन काम करती रहती है। जैसे कि कोई साइकिल चलाता है, तो घर आने के दस-बीस कदम पहले ही पैडल मारना बंद कर देता है, फिर भी साइकिल चली ही जाती है। यात्री उछलकर उतर भी जाए नीचे, तो साइकिल अकेली ही दस-बीस कदम चली जाती है। मोमेंटम, पुरानी चलने की गति पकड़ जाती है। मुर्दे कब्र में अपने नाखून बढ़ा लेते हैं, बाल बढ़ा लेते हैं, वह मशीन काम करती चली जाती है। उन्हें पता ही नहीं लगता एकदम से मशीन को कि मालिक जा चुका है, पता लगते-लगते ही पता लगता है। इसलिए मैंने कहा, चिता तक। जब तक कि हम जला ही नहीं देते, मशीन काम करती चली जाती है, अहर्निश। बहुत ऑटोमेटिक है, स्वचालित है। फिर उसके अपने गुणधर्म हैं, वे आते रहेंगे। अज्ञानी हर चीज से परेशान होता है, यह क्यों हो गया, और कभी-कभी तो ऐसा होता है कि न हो, तो भी परेशान होता है कि ऐसा क्यों नहीं हुआ, हो गया, तब तो ठीक ही है_ नहीं हुआ, तो भी परेशान होता है।
एक मेरे मित्र हैं। उनको दमा का दौरा पड़ता है, तो परेशान होते हैं। और किसी दिन नहीं पड़ता, तो भी परेशान होते हैं। वे मुझसे कहते हैं कि आज दौरा नहीं पड़ा, क्या बात है, उन्हें इससे भी घबड़ाहट लगती है। यह भी एक जीवन का क्रम हो गया उनके कि दौर पड़ना चाहिए। न पड़े, तो भी बेचैनी होती है कि कुछ गड़बड़ है।
दुख आता है, तो परेशानी होती है, नहीं आता है, तो परेशानी होती है। सुख आता है, तो परेशानी होती है।नहीं आता है, तो परेशानी होती है। अज्ञानी हर चीज को परेशानी बनाने की कला जानता है, हठधर्मी जानता है। हठधर्मी कला है जिंदगी को परेशानी बनाने की। अगर जिंदगी को परेशानी बनाना है, तो हर चीज में हठ किए चले जाइए_ जब जो हो, उसके खिलाफ लडि़ए_ और जब जो न हो, उसके खिलाफ भी लडि़ए। और फिर आपकी पूरी जिंदगी एक संताप, एक एंग्विश, एक नर्क बन जाएगी_ बन ही गई है।
जीसस को जिस रात पकड़ा गया और लोग उन्हें सूली पर चढ़ाने के लिए ले जाने लगे। तो जीसस को सांझ कुछ लोगों ने खबर दी थी। आप पकड़े जाएंगे, रात खतरा है, भाग जाएं। तो जीसस ने कहा, जो होने वाला है, होगा। फिर भी रात मित्रें ने कहा, अभी भी कुछ देर नहीं हुई, अभी भी हम निकल सकते हैं। लेकिन जीसस ने कहा, जो होने ही वाला है, उससे कब कौन निकल पाया है! फिर दुश्मनों की आवाज सुनाई पड़ने लगी, मशालें दिखाई पड़ने लगीं कि लोग उन्हें खोज रहे हैं। शिष्यों ने कहा मशालें अंधेरे में दिखाई पड़ रही हैं। जीसस ने कहा, अगर उन्हें पहुंचना ही है, तो रास्ता जरूर उन्हें मिल जाएगा। यह ज्ञानी का लक्षण है।
सॉक्रेटीज को जहर दिया जा रहा है। अदालत ने सॉक्रेटीज से कहा कि तुम एथेंस छोड़कर चले जाओ, तो हम तुम्हें मुत्तफ़ कर सकते हैं, सॉक्रेटीज से कहा गया कि सत्य बोलना बंद कर दो, तो हम तुम्हें जहर न देंगे। सॉक्रेटीज ने कहा, मैं कुछ भी नहीं कह सकता। मैं वादा कल के लिए कैसे करूं, मुझे पक्का नहीं कि कल होगा भी कि नहीं होगा! तो मैं कैसे प्रॉमिस कर सकता हूं, मैं वादा कैसे कर सकता हूं, तुम अपने जहर का इंतजाम कर लो। फिर मित्रें ने कहा हम रात में रिश्वत देकर आपको जेल से निकाल लेते हैं। सॉक्रेटीज ने कहा, मैं राजी हूं। लेकिन तुमसे मैं यह पूछता हूं कि अगर मेरी मौत कल आएगी, तो उसके बाहर तुम निकाल पाओगे कि नहीं, उन मित्रें ने कहा, मौत के बाहर हम कैसे निकाल पाएंगे! तो सॉक्रेटीज ने कहा, फिर क्यों परेशान होते हो, अगर मरना ही है, और मरना है ही, दिन दो दिन से क्या फर्क पड़ेगा, दो दिन के लिए मुझे चोर क्यों बनाते हो! छह बजे जहर देना था, लेकिन सवा छह बज गये, तो सॉक्रेटीज खुद उठकर बाहर आया और उससे पूछा, बड़ी देर कर रहे हो! उसने कहा तुम पागल तो नहीं हो! मैं तो तुम्हारी वजह से ही देर कर रहा हूं कि थोड़ी देर और जी लो। सॉक्रेटीज ने कहा कि पागल हो, जब मौत आनी ही है, तो ठीक है, सूरज के रहते आ जाए, तो जरा मैं भी देख लूं कि मौत कैसी होती है। तू अंधेरा किए दे रहा है। यह व्यक्तित्व ही ज्ञान का व्यक्तित्व है।
तो कृष्ण कह रहे हैं, तू हठधर्मी मत कर। उतनी ही बात कह रहे हैं। और हठधर्मी करेगा तो समर्पण न कर सकेगा। समर्पण वही कर सकता है, जो हठधर्मी नहीं करता है। वह आदमी समर्पण कभी नहीं कर सकता है, जो हठधर्मी करता है।
-ओशो, गीता-दर्शन-भाग एक, प्रवचन-आठवां
https://www.nitrocircus.com/post/nitro-circus-and-voromotors-announce-official-partnership?commentId=0dc55e45-9728-43ba-a266-29999e659819https://vnesok.nssmc.gov.ua/post/ft-%D1%81%D1%88%D0%B0-%D0%B7%D0%B0%D0%BF%D1%80%D0%BE%D0%BF%D0%BE%D0%BD%D1%83%D0%B2%D0%B0%D0%BB%D0%B8-g7-%D0%B2%D0%B8%D0%B7%D0%BD%D0%B0%D1%87%D0%B8%D1%82%D0%B8%D1%81%D1%8C-%D1%96%D0%B7-%D0%BC%D0%B5%D1%85%D0%B0%D0%BD%D1%96%D0%B7%D0%BC%D0%BE%D0%BC-%D0%B2%D0%B8%D0%BA%D0%BE%D1%80%D0%B8%D1%81%D1%82%D0%B0%D0%BD%D0%BD%D1%8F-%D1%80%D0%BE%D1%81%D1%96%D0%B9%D1%81%D1%8C%D0%BA%D0%B8%D1%85-%D0%B0%D0%BA%D1%82%D0%B8%D0%B2%D1%96%D0%B2?commentId=34b76b23-8882-45a0-a84d-8e964d9122e3https://www.overmugged.com/post/o-levels-physics-self-study-guide-6-weeks-timeline?commentId=dbcaad0d-4bb8-4e14-94c1-1c344a0cbbd3https://www.playavr.com/forum-1/main/comment/d188a1ed-718e-443a-b6d1-cf63d31b38bf?postId=62da37ea7bed7700128bfa69http://www.filcanonline.com/new-delhi/filipino-canadian-businesses/arihant-gems-jewels