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सभी ध्वनियां दो वस्तुओं के आघात से ही पैदा होती हैैं। उनके लिए पारिभाषित शब्द है आहत नाद। हाथों को टकराओ, ताली बजती है। दो पत्थरों को टकराओं, आवाज होती है। ओंकार अनाहत नाद है। ओंकार दो वस्तओं के टकराने से पैदा नहीं होता, वह एक ताली की आवाज है। शब्द नहीं ओंकार का रहस्य कह सकते, क्योंकि अर्थातीत है क्योंकि शब्दों के तो अर्थ होते हैं। ध्वनि भी नहीं कह सकते क्योंकि सभी ध्वनियां आघात से पैदा होती हैं। ओंकार अनाहत है।
गुरू नानक ने कहा है- इक ओंकार, सतनाम।
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सत्य का एक ही नाम है, वह है ओंकार। ओंकार में भारत की सारी खोज समा जाती है। इक ऐसे छोटे से शब्द में भारत की अनंत काल का सारा रहस्य समाया हुआ है। जिसने इस एक शब्द को समझ लिया उसने सब समझ लिया। जो इस एक शब्द से वंचित रह गया, वह कुछ भी समझ ले, उसका कोई भी मूल्य नहीं। इसलिए इस एक शब्द को बहुत ध्यान से समझने की कोशिश करना। पहले कुछ प्राथमिक बातें, पहली बात, ओंकार को शब्द कहना शब्द कहना ठीक नहीं। मजबूरी है, इसलिए इसे शब्द कहते हैं। लेकिन ओंकार कोई शब्द नहीं है, क्योंकि सभी शब्दों को कोई न कोई अर्थ है। किन्तु ओंकार को कोई अर्थ नहीं है।
ओंकार अर्थातीत है। शब्दों में तो अर्थ होता है। ओंकार का कोई अर्थ नहीं है, बल्कि ओंकार शुद्ध ध्वनि है। लेकिन इसे ध्वनि कहना भी मजबूरी है। बहुत ध्वनियां हैं जगत में। सभी ध्वनियां दो वस्तुओं के आघात से ही पैदा होती हैैं। उनके लिए पारिभाषित शब्द है आहत नाद। हाथों को टकराओ, ताली बजती है। दो पत्थरों को टकराओं, आवाजी होती है। ओंकार अनाहत नाद है। ओंकार दो वस्तओं के टकराने से पैदा नहीं होता, वह एक ताली की आवाज है। शब्द नहीं कह सकते, क्योंकि अर्थातीत है क्योंकि शब्दों के तो अर्थ होते हैं। ध्वनि भी नहीं कह सकते क्योंकि सभी ध्वनियां आघात से पैदा होती हैं।
ओंकार अनाहत है। वह आघात से पैदा नहीं होता। तीसरी बात- तुम जिस ओंकार का पाठ करते हो, जिस ओंकार की रट लगाते हो, जिस ओंकार का जाप करते हो। नानक या दादू उस ओंकार की बात नहीं कर रहे। क्योंकि तुम जिसकी रट लगाओगे, वह आहत नाद हो जायेगा। वह भी कंठ की टकराहट होगी। तो ओंकार का जाप कोई कर नहीं सकता। ओंकार के जाप के लिए तैयार हो जाओ तुम। जाप एक दम उतरता है। इसलिए ओंकार को जाप नहीं कह सकते। ज्ञानियों ने उसे अजपा कहा है। क्योंकि उसका जाप नहीं किया जा सकता।
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ओंकार---ओंकार का जो जाप तुम करते हो वह तो तुम्हारे कंठ की ही टकराहट है। वो तुम्हारा ही पैदा किया हुआ है। वह तुम्हारी संतान है। यहां जिस ओंकार की चर्चा हो रही है, उसकी हम सब संतानें हैं। तुम अपने पिता के पिता नहीं बन सकते। जब तुम ओंकार को जपते हो तो अपने पिता को पैदा करने की कोशिश कर रहे हो। तब पिता के पिता बनने की चेष्टा में लगे हो। कोई साधक ओंकार को जप नहीं सकता। जपने के द्वारा केवल अपने भीतर उस व्यवस्था को निर्मित करता है जिसमें अजपा उतर आये। सारी साधनाएं सिर्फ निमंत्रण हैं।
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