नवरात्रि श्री दुर्गा देवी का उत्सव है जिन्होंने महिषासुर के विनाश के लिए अवतार लिया था। नौ दिनों तक नवरात्रोत्सव की पूजा करना, श्री दुर्गा देवी के अविरल नंद दीप के माध्यम से घट रूपी ब्रह्मांड में, आदिशक्ति अर्थात ज्योतिरूप में मां दुर्गा की पूजा करना है। आदि शक्ति श्री दुर्गा देवी जीवन के लिए परिपूर्णता का प्रतीक हैं। श्री दुर्गादेवी को समस्त लोकों की माता कहा जाता है। संसार की माता होने के नाते वह हम सबकी माता हैं और बालकों के पुकारने से दौड़ी चली आती है।
..................................................
नवरात्रि मां दुर्गा, मां शेरों वाली, मां शक्ति का उत्सव है। जिस प्रकार प्रत्येक मां अपने बच्चों की रक्षा और पालन-पोषण के लिए तत्पर रहती है, वैसे ही मां दुर्गा हर रूप में अपने बच्चों की रक्षा करती हैं। मां ने सदा ही अनेकों रूपों में अवतार लेकर अपने भक्तों की राक्षसों से रक्षा की है।
नवरात्रि श्री दुर्गा देवी का उत्सव है जिन्होंने महिषासुर के विनाश के लिए अवतार लिया था। नौ दिनों तक नवरात्रोत्सव की पूजा करना, श्री दुर्गा देवी के अविरल नंद दीप के माध्यम से घट रूपी ब्रह्मांड में, आदिशक्ति अर्थात ज्योतिरूप में मां दुर्गा की पूजा करना है। आदि शक्ति श्री दुर्गा देवी जीवन के लिए परिपूर्णता का प्रतीक हैं। श्री दुर्गादेवी को समस्त लोकों की माता कहा जाता है। संसार की माता होने के नाते वह हम सबकी माता हैं और बालकों के पुकारने से दौड़ी चली आती है।
नवरात्रि देवी का व्रत है। इस व्रत में नौ दिन व्रतस्थ रह कर देवी की श्रद्धा पूर्वक पूजा की जाती है।
जब भी संसार में तामसी, राक्षसी और क्रूर लोग प्रबल होते हैं और सात्विक और धर्मपरायण सज्जनों पर अत्याचार करते हैं, तो देवी, धर्म की स्थापना के लिए बार-बार अवतार लेती हैं। नवरात्रि में देवी तत्व सामान्य से 1000 गुना अधिक कार्यरत रहता है। देवीतत्व का अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए नवरात्रि में 'श्री दुर्गादेव्यै नमः' यह जप अधिक से अधिक करना चाहिए।
इस लेख में नवरात्रि व्रत, कैसे करें, इस विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है।
नवरात्रि में सर्वप्रथम घट स्थापना की जाती हैं।
कलश स्थापना
सर्वप्रथम शुद्ध देशी घी का एक दीपक जलायें। अग्नि की ज्योति मां का ही एक साक्षात् रूप है। मन ही मन भगवान गणेश जी का ध्यान करें। दीपक जलाने के पश्चात एक साफ और स्वच्छ चौकी लें। चौकी पर लाल कपडा बिछायें। चौकी के दायें ओर, हल्दी मिले चावलों से अष्टदल कमल बनायें। तत्पश्चात एक मिट्टी या तांबे का कलश लें। कलश में मौली बांधे। कलश पर सिंदूर से स्वास्तिक बनायें। कलश में जल, गंध, फूल, दूब, अक्षत, सुपारी, पंचपल्लव, पंचरत्न या सिक्का आदि डालें। साथ ही मन ही मन कलश में डाली जाने वाली हर वस्तु का नाम लेकर 'समर्पयामी' कह कर नाम मंत्र बोलें। इसके बाद कलश पर आम के 9 या 11 पत्ते रखें। ध्यान रहे कि पत्ते कटे-फटे नहीं होने चाहिए। इसके पश्चात पत्तों पर जटावाला, कच्चा नारियल स्थापित करें। नारियल स्थापित करने से पहले नारियल की अतिरिक्त जटाओं को हटा दें। नारियल पर स्वास्तिक बनायें। माता की छोटी चुन्नी लपेटें। मौली बांधें। इसके पश्चात ही नारियल को कलश पर स्थापित करें। पुष्प अर्पित करें।
इसके बाद माता रूप में विराजमान फोटो या मूर्ति को स्नान या गंगाजल छिडक कर स्नान करायें। तत्पश्चात नये व शुद्ध वस्त्र धारण करायें। मां के सोलह सिंगार करें। सुहाग की हर सामग्री मां को अर्पित करें।
एक अन्य बर्तन में खेतडी बोने के लिए उसमें साफ मिट्टी लें, मिट्टी में गेहूं या जौ डालकर बो दें। अनाज डालने के पश्चात जल छिडकें। खेतडी मां शाकम्बरी का स्वरूप है।
चौकी पर हल्दी मिले चावलों से स्वास्तिक बनायें। उस अखण्ड ज्योति स्थापित करें। दीपक को बायीं ओर स्थपित करें। यह अखण्ड ज्योति लगातार नवरात्रि में नौ दिनों तक प्रज्जवलित रहनी चाहिए। अखण्ड ज्योति आप अपने सामर्थ्य के अनुसार सरसों के तेल, तिल के तेल या फिर शुद्ध देशी घी से जला सकते हैं।
मां को पुष्प अर्पित करें। फल मिष्ठान अर्पित करें।
नवरात्रि के प्रत्येक दिनों के अनुसार मां के नौ रूपों जैसे प्रथम रूप शैलपुत्री, दि्वतीय ब्रह्मचारिणी, तृतीय चंद्रघंटा, चतुर्थ श्री कुष्मांडा, पंचम स्कंदमाता, षष्ठम श्री कात्यायनी, सप्तम श्री कालरात्रि, अष्टम श्री महागौरी, नवम श्री सिद्धिरात्रि की आराधना व पूजा करें।
शैलपुत्री
आदिशक्ति शैलपुत्री मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री और भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं। हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया। नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है।
नवरात्रि के प्रथम दिन इनकी पूजा करने से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है। जिससे साधक को मूलाधार चक्र जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्धियां स्वत: ही प्राप्त हो जाती हैं।
श्री ब्रह्मचारिणी
मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप श्री ब्रह्मचारिणी जी का है। यहां ब्रह्मचारिणी से तात्पर्य तपश्वारिणी से है। इन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। नवरात्रि के दूसरे दिन इनकी पूजा, आराधना का विधान है।
इनकी आराधना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। इन्हें ‘उमा’ नाम से भी पुकारा जाता है।
श्री चंद्रघटा
आदिशक्ति श्री दुर्गा जी का तृतीय स्वरूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है। इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा गया। नवरात्रि के तीसरे दिन श्री चंद्रघंटा की पूजा व अर्चना की जाती है।
इनके पूजन मात्र से मनुष्य का स्वत: ही मणिचक्र जाग्रत हो जाता है। और सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
श्री कुष्मांडा
आदि शक्ति श्री दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप श्री कुष्मांडा है। इन्होंने अपने उदर से अंड अर्थात ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की थी। नवरात्रि में इनका पूजन करने से अनाहत चक्र जाग्रति की सभी सिद्धि स्वत: ही प्राप्त हो जाती हैं। मां के पूजन से मनुष्य के सभी रोग शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
मां कुष्मांडा सूर्यमण्डल के भीतर निवास करती हैं। इनका तेज अवर्णनीय और अलौकिक है।
श्री स्कंदमाता
श्री स्कंदमाता आदिशक्ति श्री दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। श्री स्कंदमाता कुमार कार्तिकेय की माता भी हैं। नवरात्रि के पांचवे दिन श्री स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इनके पूजन से विशुद्ध चक्र जाग्रत हो जाता है। विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने से मृत्युलोक में साधक को परमशांति और सुख की अनुभूति होती है। उनके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। स्कंदमाता ही शैलपुत्री हैं। भगवान शिव से विवाह के पश्चात स्कंद नाम की पुत्र की प्राप्ति हुई, इस कारण इन्हें स्कंदमाता कहा गया।
श्री कात्यायनी
मां कात्यायनी, मां दुर्गा का ही स्वरूप हैं। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर मां ने पुत्री रूप में महर्षि कात्यायन के यहां जन्म लिया, इस कारण यह मां कात्यायनी कहलायीं।
मां कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रत हो जाता है। और साधक को धर्म, धैर्य, अर्थ, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है। उसके शोक, रोग, संताप, भय आदि सर्वदा के लिए नष्ट हो जाते हैं।
श्रीकालरात्रि
आदि शक्ति श्री कालरात्रि मां दुर्गा का सातवां स्वरूप हैं। ये काल को नाश करने वाली हैं। इसलिए इन्हें कालरात्रि कहा गया। मां के इस स्वरूप के पूजन से चित्त भानु चक्र जाग्रत होता है।
इनका स्वरूप काले रंग का भयावह है। इस देवी के बाल सदैव बिखरे हुए, कंड में बिजली से भी तेज चमकती माला, नेत्र सूर्य से भी तेज चमकते हुए हैं। इनके तीन नेत्र हैं। नाशिका से सांस छोडने पर अग्नि की भयंकर लपटें निकलती हैा। इनका यह स्वरूप भक्तों के शत्रुओं का दमन करने के लिए है।
श्री महागौरी
महा गौरी पूर्णत: गौर वर्ण हैं। यह भी मां दुर्गा का ही स्वरूप हैं। नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की पूजा व अर्चना की जाती है। साधक को इनकी आराधना करने के लिए अपना चित्त सोम चक्र में स्थिर करके करनी चाहहिए। महागौरी की आराधना से सोमचक्र जाग्रत होता है। इनकी कृपा से अलौकिक शक्तियां प्राप्त होती हैं। इनकी कृपा से सभी असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। महागौरी शंत प्रवृति की हैं। हिमालय में कडी तपस्या के समय इनके शरीर पर मिट्टी की परतें जम गयी थीं। जिन्हें स्वयं भगवान शिव ने गंगाजल से साफ किया था। जिनसे उनके सभी अंग गौर वर्ण से खिल उठे। तभी से इनका नाम महागौरी प्रसिद्ध हुआ।
श्री सिद्धिदात्री
मां दुर्गा का नौंवा स्वरूप श्री सिद्धिदात्री का है। ये सभी सिद्धियों की दाता हैं, इसलिए इन्हें सिद्धिदात्री कहा गया। नवरात्री के नौंवे दिन श्री सिद्धिदात्री की पूजा व अर्चना की जाती है। इनकी साधना से साधक का निर्वाण चक्र जाग्रत होता है। जिससे साधक को सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। साधक के लिए सृष्टि में कुछ भी अगम्य नहीं रहता। भगवान शिव ने इनकी पूजा-अर्चना करके सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं, तभी से वे अर्धनारीश्वर कहलाये। यह देवी कमल पर विराजमान हैं।
नवरात्रि के प्रत्येक दिन दुर्गा सप्तशती, देवी भागवत का पाठ करें। मां की आरती करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। तामसिक अर्थात प्याज, लहसुन, मांसाहारी भोजन का सेवन वर्जित है।
नौ दिनों तक प्रतिदिन कुंवारी कन्याओं का पूजा करें और उसे भोजन कराएं। कुंवारी कन्याओं की तुलना सुवासिनी से की जाती है। सुवासिनी का अर्थ है प्रकट शक्ति। उपहार स्वरूप कुछ राशि या वस्तु अवश्य दें। नवरात्रि पर्व अपनी क्षमता और शक्ति के अनुसार मनाना चाहिए। देवी की मूर्ति के विसर्जन के समय, बोए गए अनाज के पौधे देवी को अर्पित करते हैं। महिलाएं पौधों को अपने सिर पर 'शाकंभरी देवी' के रूप धारण कर के उनका विसर्जन करें।
देवी से प्रार्थना करें
हे देवी, हम शक्तिहीन हो गए हैं, हम अनंत भोग भोगकर माया में लिप्त हो गए हैं। मां तू ही है जो हमें बल देती है। आपकी शक्ति से हम आसुरी प्रवृत्तियों का नाश कर सके।
Comments