हमारे वेदों में रूद्राक्ष और तुलसी आदि को दिव्य औषधीयों की माला धारण करने का विधान है। इसके पीछे वैज्ञानिक मान्यता यह है कि होंठ और जीभ का प्रयोग कर उपांशु जप करने से साधक की कंठ धमनियों को सामान्य से अधिक कार्य करना पडता है जिसके परिणाम स्वरूप कंठमाला, गलगंड आदि रोग होने की आशंका बढ जाती है। इसके बचाव के लिए गले में उपरोक्त माला पहनी जाती है। किन्तु तुलसी और रुद्राक्ष की मालाओ को गले में साथ – साथ नहीं किया जा सकता। इस बात को अगर थोडा आधुनिक भाषा में समझा जाय तो इस प्रकार है की रुद्राक्ष से निकलने वाली उर्जा को मल्टी डायमेंशनल और तुलसीजी की माला से निकलने वाली उर्जा को यूनी डायमेंशनल माना जा सकता है, इसलिए दोनों मालाओं को एकसाथ धारण करना लाभकारी नहीं होगा। मतलब अगर कोई आदमी शुद्ध, एकदम असली रुद्राक्ष अपने गले में धारण करे तो वह रुद्राक्ष उसे हर क्षेत्र में लाभ पहुचायेगा जैसे धन, विद्या, बीमारी, फर्जी मुकदमे, दुष्टों से रक्षा, भगवान् की भक्ति आदि – आदि ।
*******
हमारे वेदों में रूद्राक्ष और तुलसी आदि को दिव्य औषधीयों की माला धारण करने का विधान है। इसके पीछे वैज्ञानिक मान्यता यह है कि होंठ और जीभ का प्रयोग कर उपांशु जप करने से साधक की कंठ धमनियों को सामान्य से अधिक कार्य करना पडता है जिसके परिणाम स्वरूप कंठमाला, गलगंड आदि रोग होने की आशंका बढ जाती है। इसके बचाव के लिए गले में उपरोक्त माला पहनी जाती है।
रुद्राक्ष को साक्षात शिव का स्वरूप माना गया है।
पुराणों में रुद्राक्ष की महत्ता का बखान मुक्त कंठ से किया गया है। वैसे तो यह एक फल है लेकिन धार्मिक दृष्टि से यह बहुत ही कल्याणकारी और मानव जाति के लिए बहुत ही शुभ है। स्वयं भगवान विष्णु जी ने अपने श्रीमुख से कहा है कि जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता है वह अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। वह जीवन-मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाता है। उसे भूत, पिशाच तक नहीं सताते। इसकी व्याख्या महाशिव पुराण, देवी भागवत पुराण और स्कन्ध पुराण में मिलती है।
रूद्राक्ष की माला एक से लेकर चौदहमुखी रूद्राक्षों से बनाई जाती है। जिसमें 26 दानों की माला सिर पर, 50 दानों की माला हृदय पर, 16 दानों की माला मणिबंध पर धारण करने का नियम है। 108 दानों की माला धारण करने से अश्वमेघ यज्ञ का फल और समस्त मनोकामनाओं में सफलता मिलती है। धारक को शिवलोक की प्राप्ति होती है, पुण्य मिलता है, ऐसा पदमपुराण और शिवपुराण में वर्णन मिलता है।
सनातन धर्म में गले में तुलसी या रूद्राक्ष की माला पहनने का विधान है। इसके कई कारण और लाभ हैं। सभी कारण वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं।
शिव पुराण में कहा गया है कि
यथा च दृश्यते लोके रूद्राक्ष: फलद: शुभ:।
न तथा दृश्यते अन्या च मालिका परमेश्वरि।।
अर्थात विश्व में रूद्राक्ष की माला की तरह अन्य दूसरी मालाएं फलदायी और शुभ नहीं हैं।
श्रीमद्देवीभागवत् में वर्णन मिलता है-
रूद्राक्षधारणाच्च श्रेष्ठं न किचदपि विद्यते।
अर्थात विश्व में रूद्राक्ष धारण करने से बढकर श्रेष्ठ कोई दूसरी वस्तु नहीं है।
रूद्राक्ष मानव जाति के लिए बहुत ही कल्याणकारी है। इसकी महिमा का बखान वेदों और पुराणों में भी किया गया है। स्वयं विष्णु भगवान ने अपने श्रीमुख से कहा है कि जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता है या रुद्राक्ष से माला जाप करता है, उसे जीवन-मृत्यु के बंधनों से मुक्ति मिलती है। वह अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। इसलिए रूद्राक्ष को जब भी धारण करें, पूरे विधि-विधान से ही धारण करें तभी आप रूद्राक्ष की उर्जा और गुणों का लाभ उठा पायेंगे। जिस प्रकार सनातन धर्म में रत्न या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के कुछ नियम निर्धारित हैं ठीक वैसे ही रूद्राक्ष को धारण करने के भी कुछ नियम हैं। जैसे यदि संभव हो तो रूद्राक्ष को सोने चांदी की धातु में ही धारण करें।
रुद्राक्ष धारण करने के लिए शुभ मुहूर्त या दिन का चयन पहले कर लें। धारण करने से एक दिन पूर्व रुद्राक्ष को एक दिन पहले दूध में डुबाकर रखें। फिर प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होने के बाद ओम नमः शिवाय मंत्र का मन ही मन जप करते हुए रुद्राक्ष को पूजास्थल में रखकर पंचामृत से स्नान करायें फिर गंगाजल से पवित्र करके अष्टगंध एवं केसर मिश्रित चंदन का लेप लगाकर धूप-दीप और पुष्प अर्पित कर भगवान शिव का ध्यान करते हुए ओम नम: शिवाय का जाप करते हुए रूद्राक्ष धारण करें। रूद्राक्ष में दिव्य तरंगों और उर्जा का समावेश है, इसका पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए पूरी श्रृद्धा और विश्वास से ही धारण करें।
रूद्राक्ष की पवित्रता का पूरा ध्यान रखें इसलिए इसे धारण करने के पश्चात मांस-मदिरा का सेवन न करें। इसे धारण करने के बाद किसी के जन्म या मरण के संस्कार में न जायें। अंतेष्टि और प्रसूता के घर जाने से बचें। रजोवृति के समय भी इसे धारण न करें, सात्विक जीवन व्यतीत करें।
तुलसी की माला
तुलसी का हिन्दू संस्कृति में अत्यंत धार्मिक महत्व है। इसके सर्वरोगसंहारक गुणों के कारण ही स्वास्थ्य और दीर्घायु मिलती है। अपनी प्रबल विद्युत शक्ति के कारण तुलसी की माला धारण करने से शरीर की विद्युत शक्ति नष्ट नहीं होती और धारक के चारों ओर चुंबकीय मंडल विद्यमान होने के कारण आकर्षण व वशीकरण शक्ति आती है। उसके यश, कीर्ति, सुख, सौभाग्यवादि बढते हैं।
माला में तुलसी की गंध व स्पर्श से ज्वर, जुकाम, सिरदर्द, चर्मरोग, रक्तदोष आदि रोगों से भी लाभ मिलता है और संक्रमण बीमारी तथा अकाल मृत्यु नहीं होती। ऐसी धार्मिक मान्यता है।
तुलसीमालिकां धृत्वां यो भुक्ते गिरिनंदिनी। सिक्थेसिक्थे स लभते वाजपेफलाधिकम्।।
स्नानकाले तु यस्यांगे दृश्यते तुलसी शुभा। गंगादिसर्वतीर्थेषु स्नातं तेन न संशय:।।
-शालग्राम पुराण
अर्थात तुलसी की माला भोजन करते समय शरीर पर होने से अन्य यज्ञों का पुण्य मिलता है। जो कोई तुलसी की माला धारण करके स्नान करता है, उसे गंगा आदि के समस्त पुण्य सरिताओं में स्नान किया हुआ समझना चाहिए।
तुलसी जी कृष्ण प्रिया है और रुद्राक्ष में भगवान शिव का वास है, तो फिर इनकी मालाओ को गले में साथ – साथ नहीं किया जा सकता। इस बात को अगर थोडा आधुनिक भाषा में समझा जाय तो इस प्रकार है की रुद्राक्ष से निकलने वाली उर्जा को मल्टी डायमेंशनल और तुलसीजी की माला से निकलने वाली उर्जा को यूनी डायमेंशनल माना जा सकता है, मतलब अगर कोई आदमी शुद्ध, एकदम असली रुद्राक्ष अपने गले में धारण करे तो वह रुद्राक्ष उसे हर क्षेत्र में लाभ पहुचायेगा जैसे धन, विद्या, बीमारी, फर्जी मुकदमे, दुष्टों से रक्षा, भगवान् की भक्ति आदि – आदि
Comments