डायबिटीज को हिन्दी भाषा में मधुमेह भी कहते हैं। यह एक भयंकर रोग होने के साथ लाइलाज और आनुवांशिक है। डायबिटीज के रोगी भारत में ही नहीं विश्वभर में हैं। डायबिटीज हमारी पूरे जीवन को प्रभावित करता है। डायबिटीज में दो तरह के रोगी होते हैं पहले जिन्हें डायबिटीज है, दूसरा जिन्हें डायबिटीज होने की संभावना है। इन्हें हम प्री-डाइबिटीक कहते हैं।
पहली श्रेणी के रोगी को यह बीमारी उम्र भर रहती है, जो दवाओं और इंसूलिन के सहारे ही जीवित रहतेे हैंं।
दूसरी श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं जिन्हें डायबिटीज होने की संभावना रहती है किन्तु यदि अपनी जीवन शैली को थोड़ा बदला जाये तो इस बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है।
डायबिटीज को लाइलाज अवश्य माना गया है किन्तु यह रोग हमारी बदली जीवन शैली का ही परिणाम है।
डायबिटीज क्या है?
हमारे शरीर में शुगर की मात्रा निर्धारित है। जब शरीर में शुगर की मात्रा, निर्धारित स्तर से बढ़ जाती है तो डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य मानकों के अनुसार खाली पेट (लगातार आठ घंटे निराहार रहने के बाद) हमारे शरीर में 100 मि.ली. रक्त में 70-110 मि.ग्रा. शर्करा की मात्रा होनी चाहिए। इसे फास्टिंग शुगर भी कहते हैं। भोजन के बाद दो घंटे तक 120 से 140 तक होनी चाहिए। इसे पोस्ट पैंन्ड्रियल (Postprandial) कहते हैं। जब व्यक्ति के खून में पोस्ट पैंन्ड्रियल के दौरान शुगर की मात्रा 140 से ऊपर और 200 से कम हो तो यह प्री-डायबिटीक स्टेज कहलाती है और यदि शुगर की मात्रा 200 से ऊपर पहुंच जाये तो इसका अर्थ है कि व्यक्ति डायबिटीज का शिकार हो चुका है।
शुगर क्या है?
हम जो भोजन करते हैं उससे हमारे शरीर में शुगर, अर्थात शर्करा बनती है। यही शर्करा ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। यह एक प्रक्रिया है। यह शर्करा हमारे रक्त में मिल जाती है। रक्त द्वारा शर्करा कोशिकाओं तक पहुंचती है। कोशिकाओं में पहुंचकर ऑक्सीजन के साथ मिलकर यह ऊर्जा का निर्माण करती है। इस कार्य के लिए शर्करा को इन्सुलिन की आवश्यकता होती है। यदि शरीर में इन्सूलिन की कमी हो जाये तो यह हमारे शरीर में एकत्रित होने लगती है और कोशिकाओं तक नहीं पहुंच पाती। इन्सूलिन का निर्माण पैनक्रियाज के द्वारा होता है। इन्सूलिन एक प्रकार से चाबी का कार्य करती है जिसके द्वारा कोशिकाओं का द्वार खुलता है और फिर वह कोशिकाओं तक पहुंच कर अपना कार्य करती है। अग्नाश्य हमारी पाचन प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग है।
हमारे शरीर में अग्नाशय एक ऐसी ग्रंथि है जिसके बिना न तो भोजन के पश्चात शर्करा बन सकता है और न ही शर्करा ऊर्जा में परिवर्तित ही हो सकती है। भोजन के पश्चात रक्त में ग्लूूकोज की मात्रा बढ़ते ही पैक्रियाज से इन्सूलिन उत्पन्न होता है और शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है। यह रक्त के साथ मिलकर कोशिकाओं तक पहुंचाता है। और ऑक्सीजन के साथ मिलकर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। इस क्रिया को ही मैटाबोलिज्म कहते हैं। इंसूलिन की कमी के कारण जब यह बाधित होता है तो इस डायबिटीज को मेटाबोलिज्म डिस-आर्डर कहते हैं।
भोजन करने के पश्चात जब इन्सूलिन का निर्माण कम होता है तो शर्करा कोशिकाओं तक नहीं पहुंच पाती और शरीर में ही एकत्रित होने लगती है और एक बीमारी का रूप ले लेती है।
प्रकृति हो या हमारा शरीर वह स्वयं ठीक होने का प्रयास करता है, किन्तु उसकी भी कुछ सीमाएं है, हमारा शरीर लगातार स्वयं से लड़कर हमें बीमारियों से बचाने का प्रयास करता है किन्तु हमारी जीवन शैली और लापरवाही के कारण ही हम इस प्रकार की भयंकर बीमारियों के शिकार हो ही जाते हैं। हम दूसरे कारणों को दोष अवश्य देते हैं किन्तु ऐसी परिस्थितियों के हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं।
डायबिटीज का मुख्य कारण विलासिता या श्रमहीन जीवन और विकृत आहार है। अधिक समय नहीं हुआ है। लगभग 50 वर्ष पहले जीवन ऐसा नहीं था जैसा कि आज है। आज आराम की हर सुविधा मौजूद है। खाना बनाने से लेकर घर के हर काम के लिए मशीन मौजूद है। लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार हुआ है। जिसके कारण लोगों का घर में हो या फिर घर के बाहर, शारीरिक श्रम कम हुआ है। पहले कही आसपास जाना होता था तो या तो पैदल जाया जाता था या फिर साइकिल के द्वारा। कारण, बाइक आदि बहुत ही कम लोगों के पास होती थीं। लोगों की आमदनी कम थी, इसलिए घर के सभी कार्य घर की महिलाएं ही मिलजुल कर लिया करती थींं। भोजन अधिकतर नीचे बैठकर, चूल्हे पर या स्टोव पर बनाया जाता था, कपड़े हाथ से धाेेेेये जाते थे, बर्तन हाथ से धोये जाते थे। कहने का अर्थ है कि हम जितनी भी कैलोरी भोजन के द्वारा लेते थे वह सब प्रतिदिन के दैैैैैनिक कार्यों को करने में ही खर्च हो जाती थी जिससे व्यायाम आदि की आवश्यकता ही नहीं होती थी। किन्तु जैसे-जैसे व्यक्ति की औसत आय में वृद्धि हुई है वैसे जीवन स्तर में भी सुधार हुआ है।
आज अधिकतर घरों में सुख-सुविधाओं की हर वस्तु मौजूद है। कहीं पैदल जाने की आवश्यकता ही नहीं, घर में कोई न कोई ट्रांसपोर्ट का साधन होता ही है। घर के कार्यों के लिए कपड़े धोने के लिए वॉशिंग मशीन, बर्तन मांजने के लिए डिश वॉशर, मसाला पीसने के लिए मिक्सर, घर की साफ-सफाई के लिए वैक्यूम क्लीनर जैसे उपकरण मौजूद हैं। ये उपकरण शारीरिक श्रम को काफी हद तक कम देते हैं। कुल मिलाकर हमारा जीवन विलासिता पूर्ण हो गया है। इसके अलावा औसत आय के कारण हमारा खान-पान भी बदला है। पहले व्यक्ति दाल-रोटी खाकर ही खुश रहता था किन्तु आज आय दिन की पार्टियां, जंक फूड जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं जो हमारे जीवन पर सीधा प्रभाव डाल रहे हैं। इसलिए कहना गलत न होगा कि विलासिता पूर्ण जीवन ही डायबिटीज का कारण है।
दवाओं के माध्यम से इस बीमारी का इलाज संभव नहीं है। बेहतर और आदर्श जीवन शैली को अपना कर ही इस रोग को हराया जा सकता है।
डायबिटीज के लक्षण
बार-बार पेशाब आना
शरीर में आलस्य, कमजोरी और सैक्स में अरूचि होना
बार-बार प्यास लगना
त्वचा में चमक समाप्त हो जाने पर रूखापन आना
भूख अधिक लगना
अम्ल, कब्ज आदि की शिकायत रहना
मानसिक तनाव होना
बेहोशी होना
किडनी के रोग होना आदि।
डायबिटीज होने के प्रमुख कारण
बिगड़ी हुई जीवन शैलीः आज देर रात तक जागना और सुबह देर तक सोना, आम बात है। छोटे से लेकर व्यस्क सभी देर रात तक या तो टीवी के आगे बैठे रहते हैं या फिर मोबाइल पर लगे रहते हैं। इस कुछ न कुछ खाते ही रहते हैं जिनमें जंक फूड और कोल्ड ड्रिक अधिक होते हैं जो हमारे शरीर के पाचन तंत्र को बिगाड़ देते हैं। इस तरह की जीवन शैली द्वारा हम शरीर की जैविक घडी की अवहेलना करते हैं। जैविक घडी के अनुसार शरीर के विभिन्न अंगों को 12 भागों में बांटा गया है। 24 घंटे में किसी भी अंग में 2 घंटे ही प्राण उर्जा का प्रवाह होता है। जब प्राण उर्जा का प्रवाह होता है तो वह अंग अधिक सक्रिय होता हैैै। जब कोई भी कार्य प्रकृति के समय के अनुसार नहीं करते तो जैविक घडी गडबडा जाती है और धीरे-धीरे उर्जा का प्रवाह कम हो जाता है और शरीर के अंंग धीरे-धीरे निष्किय होने लगते हैं।
मानसिक तनाव: डायबिटीज की एक प्रमुख वजह मानसिक तनाव भी है। सभी छोटे हो या फिर बडे सभी जिंदगी दौड में शामिल हैं। हमारे पास पर्याप्त नींद के लिए समय नहीं है। जिससे हमारे शरीर की क्रियाएं ठीक से कार्य नहीं कर पातीं। हम न समय पर भोजन करते हैं और न ही समय पर सोते हैं। जिससे मानसिक तनाव पैदा होता है। 24 घंटे में 8 घंटे की नींद लेना आवश्यक है। सभी जल्दी से जल्दी अमीर बनना चाहते हैं, युवाओं पर सफल करियर का दवाब है। तनाव के कारण खुराक बढ जाती है, स्नायु तंत्र प्रभावित होता है। हमें शाम को सात बजे के बाद भोजन नहीं करना चाहिए किन्तु हम देर रात तक भोजन करते हैं जो सुबह तक पच नहीं पाता। पैनक्रियाज प्रभावित होने से शरीर में पर्याप्त रूप से इन्सूलिन नहीं बन पाता। इसलिए बिगडी हुई जीवन शैली को डायबिटीज होने का प्रमुख कारण माना गया है।
दवाओं का अधिक सेवन: दवाइयों का अत्यधिक सेवन भी डायबिटीज का एक बडा कारण है। हल्का सा बुखार होने पर हम आराम करने के बजाय दवाई लेना अधिक पसंद करते हैं। जिससे हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है।
शरीर में विटामिन डी की कमी होना: पहले के समय में घर खुले होते थे। पर्याप्त मात्रा में धूप, हवा और रोशनी आती थी किन्तु अब बहुमंजिला इमारतों का चलन है। लोगों में सहन शक्ति कम है। वह एअरकंडीशन कमरों से बाहर आना ही नहीं चाहते। शरीर को पर्याप्त धूप नहीं मिल पाती, शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है। जिसकी वजह से डायबिटीज होने का खतरा बढ जाता है।
बासी भोजन का अधिक प्रयोग: बासी भोजन ही डायबिटीज का प्रमुख कारण है। समय के अभाव या अन्य कारणों के कारण बचा हुआ भोजन माइक्रोवेव कर गर्म कर दुबारा खाने का चलन अधिक है। इसके अलावा पैक्ड और जंक फूड का भी चलन बढा हैैै। इनके प्रयोग से शरीर में शर्करा और अम्लता की मात्रा बढ जाती है तथा भोजन की पौष्टिकता बिल्कुल ही नष्ट हो जाती है। जिससे हमारे शरीर के पैंंक्रियाज, लीवर और किडनी प्रभावित होते हैं। जो डायबिटीज को जन्म देते हैं।
थायरॉयड ग्रंथि का ठीक से काम न करना: थायरॉयड ग्रंथि हमारे शरीर की चयापय तंत्र को नियंत्रित करती है। जब थायरॉयड ग्रंथि ठीक से कार्य नहीं कर रही होती तो शरीर में मोटापा और डायबिटीज होने का खतरा बढ जाताा है।
डायबिटीज से बचने का सबसे सरल और आसान उपाय है- संतुलित भोजन और बेहतर दिनचर्या जो प्रकृति के नियमों के आधार पर अपनाई गई हो।
हम जितना प्रकृति से जुडे रहेंगे उतना ही स्वस्थ और निरोगी रहेंगे।
सर्वप्रथम हमारा यह जानना आवश्यक है कि हमें भोजन कैसा और कितनी मात्रा में करना चाहिए। यदि हम कम शारीरिक श्रम करते हैं तो हमारे शरीर को कम कैलोरी की आवश्यकता होगी। शरीर में कैलोरी की मात्रा हमारे वजन और शारीरिक श्रम के आधारित होनी चाहिए।
यदि किसी व्यक्ति का वजन 68 किलोग्राम है और शारीरिक श्रम कम करना होता है अर्थात ऑफिस आदि में कार्यरत है तो आपको 1500 कैलोरी प्रति दिन की आवश्यकता है।
यदि थोडा श्रम करते है तो 1650 कैलोरी/ दिन की आवश्यकता होगी।
यदि श्रम अधिक करना पडता है तो आपको प्रतिदिन 2400 कैलोरी की आवश्यकता होगी।
जब हमारे शरीर को प्रचुर मात्रा में कैलोरी नहीं मिलती तो हमारा शरीर स्वतः ही शरीर में जमा चर्बी का प्रयोग करने लगता है। यही कारण है कि यदि हम श्रम कम करते हैं तो कम कैलारी युक्त भोजन करना चाहिए।
कैलोरी क्या है?
कैलोरी क्या है, इस विषय पर हम चर्चा अपने पिछले लेख ‘मोटापा कैसे कम करें’ में कर चुके हैं।
प्रतिदिन जो कुछ भी हम खाते-पीते हैं उनमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज, फाइबर और पानी की मात्रा प्रमुख रूप से पाई जाती है। किन्तु उपरोक्त में से केवल कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा में ही कैलोरी पाई जाती है। विटामिन और खनिज के बगैर कोई भी खाद्य पदार्थ पोष्टिक नहीं हो सकता। भोजन के द्वारा ली गई कैलोरी, हमारे मेटाबोलिज़्म प्रक्रिया के द्वारा ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाती है। कार्बोहाइड्रेट हमारे भोजन में प्रमुख है। कार्बोहाइड्रेट अनाजों, सब्जियों, फलों, और मिल्क व मिल्क प्रोडक्ट में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। हमें प्रतिदिन लगभग 1500 कैलोरी लेनी चाहिए। जिसमें 800 कैलोरी कार्बोज से, 225 कैलोरी प्रोटीन से और 450 कैलोरी वसायुक्त पदार्थों में होती है। इसके अलावा, अनाजों, फलों और सब्जियों में भी कैलोरी पाई जाती है।
कार्बोहाइड्रेट भी दो प्रकार की होती है-
सिंपल कार्बोहाइड्रेट
कॉप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट
सिंपल कार्बोहाइड्रेट: सिंपल कार्बोहाइड्रेट में फाइबर बिल्कुल ही नहीं होता या फिर बहुत ही कम मात्रा में पाया जाता है। सिंपल कार्बोहाइड्रेट में शर्करा अधिक मात्रा में पाई जाती है, जो हमारे शरीर के रक्त में घुलकर शुगर लेवल को बढा देती है।
सिंपल कार्बोहाइड्रेट के स्रोत- चीनी, गुड, चोकर रहित आटा, मैदा, पैस्ट्री, बर्गर, पीजा, सफेद चावल, मैदा, कोल्ड ड्रिंक्स, चॉकलेट, रेडीमेड जूस, आलू इत्यादि।
उपरोक्त खाद्य पदार्थों से शुगर लेवल तेजी से बढता है। इसलिए डायबिटीज के लोगों को इन चीजों को न खाने की सलाह दी जाती है।
कॉप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट: कॉप्लैक्स युक्त खाद्य पदार्थों में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। फाइबर युक्त भोजन करने से हम भोजन कम खाते हैं। इनमें शर्करा कम मात्रा में पाया जाता है। फाइबर युक्त भोजन करने से कब्ज की शिकायत नहीं रहती। कब्ज, डायबिटीज के प्रमुख कारणों में से एक है।
कॉप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट के स्रोत: मोटा अनाज, चोकर वाला आटा, छिलके वाली दालें आदि।
फाइबर का कार्य
फाइबर में कैलोरी नहीं होती।
फाइबर भी दो प्रकार के होते हैं- घुलनशील तथा अघुलनशील।
घुलनशील फाइबर फलों और सब्जियों के गूदे या जूस आदि में पाया जाता है। इनका सेवन करते ही यह रक्त में शीघ्र ही घुल जाता है।
अघुलनशील फाइबर अनाज और दालों में पाया जाता है। अघुलनशील फाइबर रक्त में घुलनशील नहीं है। यह हमारे शरीर में एक झाडू का काम करता है। यह हमारी रक्तवाहिनियों को साफ करता है। जिससे वह कोमल, साफ और लचीली रहती हैं। और रक्त संचार सुचारू रूप से हो पाता है।
यदि डायबिटीज के रोगी अघुलनशील फाइबर युक्त भोजन नियमित रूप से करते हैं तो उनकी रक्तवाहिनियां जल्दी खराब नहीं होंगी, और डायबिटीज में होने वाली परेशानियों से काफी हद बचे रहेंगे। फाइबर युक्त भोजन करने से शरीर में शर्करा की मात्रा भी स्वत: ही नियंत्रित रहती है। जिससे आंखों, पैरों, गुर्दों में होने वाली परेशानी से बचे रहते हैं।
डायबिटीज के रोगियों को कॉप्लैंक्स युक्त कार्बोहाइड्रेट युक्त और कम कैलोरी युक्त भोजन ही करना चाहिए।
भोजन में छिलके वाली दालें और सब्जियां-फल, चोकर वालाआटा, मोटा अनाज- चना, रागी, जौ, बाजरा, सोयाबीन आदि को मोटा पिसवा कर इनसे बनी रोटियों का ही सेवन करना चाहिए। बारीक पिसे आटे में चोकर न के बराबर होता है। और फिर वह सिंपल कार्बोहाइड्रेट की श्रेणी में आ जाता है। जो कि डायबिटीज के रोगियों के लिए बहुत ही हानिकारक है।
डायबिटीज के लोगों को सलाद आदि में कच्ची सब्जियां अधिक खानी चाहिए क्योंकि इनमें कैलोरी कम मात्रा में पाई जाती है और पौष्टिकता प्रचुर मात्रा में होती है।
डायबिटीज के रोगियों के लिए सूर्य मुद्रा और इंंद्र मुद्रा को नियमित रूप से काफी हद तक लाभ मिलता है। सूर्य मुद्रा करने से हमारे शरीर में अग्नि तत्व की बढोतरी होती है, जिससे शुगर की मात्रा संतुलित रहती है, और इंद्र मुद्रा शरीर में जल की मात्रा को संतुलित रखती है, जिससे रोगी को बार-बार मूत्र त्याग की समस्या से छुटकारा मिलता है। इन मुद्राओं का वर्णन हमने अपने लेख 'मुद्रा चिकित्सा' में किया हैैै'।
नोट: डायबिटीज से बचने के लिए साधारण और सरल उपाय जिन्हें अपना कर, हम स्वयं को सुरक्षित और पूर्णत: स्वस्थ रख सकते हैं , इसकी चर्चा हम अपने अगले लेख में करेंगे।
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