हमें अपनी जि़ंदगी में कुछ ‘खिचाव’ झेलने के लिए बनाया गया है। यह हमारे नियंत्रण में है कि हम अधिक ‘परेशानी’ को अपने से दूर रखें, पर अधिक तनाव को दूर रखना मुश्किल है- या फि़र हम इसे ‘सेहतमंद दवाब’ भी कह सकते हैं - यह हानिकारक भी हो सकता है।
जब रिश्तों की बात आती है, तो शायद इस पर एक किताब लिखी जा सकती है। मुझे एक अवसर मिला और मैंने उस समय रिश्तों को बनाये रखने के लिए बहुत मेहनत की। फलस्वरूप में काफी तनाव में भी रही। ऐसे समय में कभी-कभार अच्छे इरादे, ज्ञान तथा जानकारी खिड़की से बाहर उड़ जाते हैं।
हम सब के लिए तनाव एक सच्चाई है। इससे हम परिस्थिति के हिसाब से कैसा व्यवहार करते हैं उस पर प्रभाव पड़ता है और यह एक दूसरा नज़रिया भी है। देखते हैं कि तनाव का हमारे दूसरों के साथ रिश्तों पर क्या प्रभाव पड़ता है।
सबसे पहले, तनाव के बारे में कुछ सीधी और सरल बातें करते हैं। अगर आपकी अलमारी में कुछ किताबें हैं जो इस विषय पर आधारित हैैं ‘तनावरहित जीवन कैसे जीयें’ यानि तुम इस प्रकार की किताबें पढ़ते हो तो एक काम करो कि उनको कूड़े में फेंक दो क्योंकि तनावरहित हम रह नहीं सकते, यहां तक कि उसके बारे में सोचना भी गलत है।
हमें मनुष्य की तरह काम करने के लिए दवाब तथा कोई उत्साहित करने वाली वस्तु की ज़रूरत होती है। एक खिंचने वाले रबड़ बैंड की कल्पना करें। रबड़ बैंड स्वयं वह काम नहीं करता जिसके लिए उसको बनाया गया है। रबड़ बैंड तभी काम करता है जब उसे खींचा जाता है, वर्ना वह सिर्फ व्यर्थ ही है। पर अगर रबड़ बैंड को उसकी सीमा से ज्यादा खींचते हैं तो वह कमजोर होने लगता है। ऐसा जब होता है, तो शायद वह उचट कर आप पर ही लग सकता है। पर आमतौर पर रबड़ बैंड ऐसा करता नहीं है। यही नियम आप पर और मुझ पर लागू होता है। हमें अपनी जि़ंदगी में कुछ ‘खिचाव’ झेलने के लिए बनाया गया है। यह हमारे नियंत्रण में है कि हम अधिक ‘परेशानी’ को अपने से दूर रखें, पर अधिक तनाव को दूर रखना मुश्किल है- या फिर हम इसे ‘सेहतमंद दवाब’ भी कह सकते हैं । यह हानिकारक भी हो सकता है।
औसतन, मनुष्य में एक ही दिमाग होता है। जब तुम किसी इंसान से मिलते हो, शायद तुम उससे इसके बारे में पूछो, पर यह सच है- हालांकि, तुम्हारा दिमाग परिस्थिति के मुताबिक तुम्हारी प्रतिक्रिया पर नियंत्रण रख लेता है। यदि हम दिमाग की आंतरिक प्रणाली पर अध्ययन करें तो हमें दिमाग के मुख्य तीन अलग-अलग भाग दिखेंगे।
तर्कशील दिमाग
कभी-कभार दिमाग के इस भाग को नियो कॉर्टेक्स या ‘उच्च दिमाग’ कहते हैं। यह आपकी पैदाइश के समय भी पूरा विकसित नहीं होता।
भावनात्मक दिमाग
दिमाग का यह भाग हमारे शरीर के लिम्बिक का ही एक हिस्सा है। इसे ‘मध्य दिमाग’ भी कहते हैं।
प्राथमिक दिमाग
दिमाग के इस भाग को सरीसृप दिमाग या ‘निचला दिमाग’ भी कहा जाता है, यह हमारी लड़ाई-झगड़े, हमारा जवाब, तथा हमारा खाने की ओर आकर्षण पर नियंत्रण रखता है।
जब कार्य पटरी पर चला रहा होता है, तब ज्यादा व्यस्त नहीं होता है, ग्राहक भी अच्छा व्यवहार करते हैं, बॉस भी तुम्हें अच्छी तरह से समझते हैं तथा बच्चे भी अच्छी तरह व्यवहार करते हैं तो हम ज्यादातर परिस्थितियों में बिना बहस किये अच्छा व्यवहार करते हैं। इस परिस्थिति में छोटी सी हलचल जैसे कि परेशान कर देने वाला ग्राहक तुम्हारे खुशनुमा व्यवहार को चिड़चिड़ा बना सकता है, पर जब तुम थके होते हो, भूखे होते हो, परेशान कर देने वाले ग्राहकों की लंबी कतार से जूझते हो, उसी समय तुम्हें पता लगता है कि तुम्हारे काम में बड़ा बदलाव आया है, चालीस मिनट एक दम थमे हुए जाम में फंस गये- तो तुम एकदम से परेशानी के ज़ोन में आ जाते हो। तुम्हारी काबिलियत में बदलाव आने लगता है, तुम चीजों को जिस नज़रिये से देखते हो वह धीरे-धीरे धुंधला होने लगता है।
बच्चे का गंदा कमरा गुस्से का एक नया ही मुद्दा बन जाताा है। जब तुम्हारे पति ने दुबारा अपना टूथब्रश कमरे में ही छोड़ दिया क्योंकि वह अपने दांत घर में घूमते हुए साफ़ करते हैं, अब तुम्हें काफी जल्दी गुस्सा आ जाता है। यह है सोचने वाली बात। जब तुम एक तनावपूर्ण स्थिति में अपना व्यवहार करते हो, तो तुम सुरक्षित कहां रह सकते हो। प्राथमिक दिमाग इस समय बहुत अच्छी तरह कार्य करेगा। यहां तक कि तुम्हें किसी और स्थान की तलाश नहीं करनी पड़ेगी।
तुम शायद नहीं चाहते कि तुम हर समय खतरे के बारे में सोचते रहोः ‘ताज्जुब की बात है कि अगर कोई व्यक्ति मेरी ओर चाकू लेकर दौड़ा आ रहा हो तो क्या मेरा उससे कोई पारिवारिक दुश्मनी है, या फिर वह मुझे बस ऐसे ही मारने आ रहा है?’ नहीं! तुम्हारा दिमाग तुम्हें लड़ाई करने के लिए या भागने के लिए तैयार कर देता है, तब क्या करोगे जब तुम ट्रैफिक जाम में फंस जाते हो या कोई दूसरा चालक तुम्हारे आगे आकर तुम्हें दूसरी लेन में खिसका देता है? पर जब बॉस तुम्हारी छः महीने के दौरान की गई मेहनत की तारीफ़ करते हैं तो तुम्हारा प्राथमिक दिमाग काम नहीं आता। तुम्हारी लड़ाई का या भागने का व्यवहार तुम्हें इस स्थिति में शायद कुछ ऐसा करने के लिए मजबूर कर दे जो कि पूरी तरह से आपत्तिजनक हो।
इस स्थिति में तुम्हारा तर्कशील दिमाग कमान संभालेगा और जब तुम्हारा प्राथमिक दिमाग काम कर रहा होता है तो तुममे शायद ही चीज़ की समझ रहती है या अपनी समझ होती है।
तर्कशील बनें और खुशनुमा सोच रखें।
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