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नाभि चिकित्‍सा पद्धति | Navel therapy

Vimla Sharma

Updated: Aug 2, 2022



नाभि शरीर का एक महत्‍वपूर्ण अंग हैं। शिशु गर्भावस्‍था के दौरान अपने जीवन चक्र सभी आवश्‍यकता नाभि के द्वारा पूरी करता हैा। जन्‍म के बाद इसके महत्‍व और कार्य को कैसे भुला सकते हैं। मृत्‍यु के तीन घंटे तक नाभि गर्म रहती है। नाभि के महत्‍व को न समझना ही हमारे अस्‍वस्‍थ होने की मुख्‍य वजह है।

 

नाभि शरीर का एक महत्‍वपूर्ण अंग हैं। आधुनिक चिकित्‍सा में इसके महत्‍व को नकार दिया गया है किन्‍तु शारीरिक दृष्टि से यह बहुत ही महत्‍वपूर्ण है। जन्‍म से पहले गर्भस्‍थ शिशु नाभि के द्वारा ही सभी पोषक तत्‍व ग्रहण करता है, और एक संपूर्ण शरीर के रूप में प्राप्‍त होता है। जन्‍म के बाद भी शरीर की सभी क्रियाएं नाभि पर आधारित हैं। खेल-कूद के दौरान नाभि का अपने स्‍थान से तिल भर भी हिल जाना अनेक समस्‍याएं पैदा कर सकता है।

पेट में कब्‍ज की शिकायत, दस्‍त, शरीर में दर्द, जोडों में दर्द, आंखों से कम दिखना ऐसी अनेक परेशानियां हैं जिन्‍हें नाभि चिकि‍त्‍सा के द्वारा दूर किया जा सकता है।




आधुनिक चिकित्‍सा में नाभि के महत्‍व को समझे बिना ऐलोपैथी दवाओं के द्वारा बीमारी का इलाज न करके उसे दबा दिया जाता है जिसे हम कहते हैं कि ‘अब आराम है’ किन्‍तु कुछ ही समय बाद यह किसी नये रूप में उभर कर हमारे सामने आ जाती है और हमारे जीवन में दवाओं का सेवन दिन-प्रति-दिन बढता ही चला जाता है।

यह विचार करने योग्‍य विषय है कि जब शिशु गर्भावस्‍था के दौरान अपने जीवन चक्र सभी आवश्‍यकता नाभि के द्वारा पूरी करता है फिर जन्‍म के बाद इसके महत्‍व और कार्य को कैसे भुला देते हैं। मृत्‍यु के तीन घंटे तक नाभि गर्म रहती है। नाभि के महत्‍व को न समझना ही हमारे अस्‍वस्‍थ होने की मुख्‍य वजह है। यही कारण है कि हमें नाभि की नियमित रूप से सफाई करनी चाहिए और नाभि का भी शरीर के अन्‍य अंगों की तरह विशेष ख्‍याल रखना चाहिए।



हमारा शरीर परमात्मा की अद्भुत देन है। गर्भावस्‍था के दौरान गर्भस्‍थ शिशु को माता के साथ जुडी हुई नाडी से ही पोषण मिलता है। गर्भधारण के नौ महीनों अर्थात 270 दिन बाद एक सम्पूर्ण बाल स्वरूप बनता है। नाभि के द्वारा सभी नसों का जुडाव गर्भ के साथ होता है। इसलिए नाभि, शरीर का एक अद्भुत भाग है।



नाभि के पीछे की ओर पेचूटी या navel button होता है जिसमें 72000 से भी अधिक रक्त धमनियां स्थित होती हैं। इसलिए नाभि के द्वारा की गई चिकित्‍सा महत्‍व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह पद्धति बहुत ही प्राचीन और कारगर है।



समस्‍याएं और समाधान

  • नाभि में गाय का शुध्द घी या तेल लगाने से बहुत सारी शारीरिक दुर्बलता का उपाय हो सकता है।

  • आँखों का शुष्क हो जाने, नजर कमजोर हो जाने पर रात को सोने से पहले 3 से 7 बूंदें शुद्ध घी और नारियल के तेल को नाभि पर डालें और हल्‍के हाथों से नाभि के आसपास गोलाई में मालिश करें।

  • त्‍वचा और बालों में चमक लाने और बाल झडने की समस्‍या से छुटकारा पाने के लिए उपरोक्‍त पद्धति ही अपनायें।

  • घुटने के दर्द होने पर सोने से पहले तीन से सात बूंद अरंडी का तेल नाभी में डालें और उसके आसपास डेढ ईंच में फैला देवें।

  • शरीर में कमपन्न होने पर रात को सोने से पहले तीन से सात बूंदें, सरसों कि तेल की नाभि में डालें और उसके चारों ओर डेढ ईंच में फैला देवें।




  • गालों पर मुंहासे या पिंपल्‍स होने पर नीम का तेल तीन से सात बूंद नाभी में उपरोक्त तरीके से डालें।

नाभि में तेल क्‍यों डाला जाता है यह प्रश्‍न पैदा होता है तो इसके निम्‍न लिखित कारण हमारे प्राचीन पद्धति में बताये गये हैं।

हमारी नाभि को मालूम रहता है कि हमारी कौनसी रक्तवाहिनी सूख रही है, इसलिए वो उसी धमनी में तेल का प्रवाह कर देती है।

आपको याद होगा जब बचपन में हमारे छोटे बहन या भाई के पेट में दर्द की समस्‍या होती थी तो हमारी दादी या नानी उसके पेट हींग का पानी लगाने को बोलती थीं। और पानी या तैल का मिश्रण हींग के पानी को बच्‍चे की नाभि और उसके आसपास लगाया जाता था जिससे बच्‍चे को गैस की समस्‍या से आराम मिलता था। हींग बहुत ही तीखी और तेज होती है उसे बच्‍चे को खिलाना हा‍निकारक हो सकता है इसलिए नाभि के द्वारा ही हींग को बच्‍चे के शरीर में पहुंचाया जाता है।

इस प्रकार ही हम नाभि पर विभिन्‍न प्रकार के तेलों के प्रयोग से चिकित्‍सा करते हैं जो बहुत ही कारगार और रामबाण उपाय है।



नाभि खिसकने के लक्षण

  • पेट में मरोड होना

  • पेट में कब्‍ज या दस्‍त लग जाना

  • भूख न लगना

  • पेट में नीचे की ओर तेज दर्द होना



कैसे जांचे क‍ि नाभि खिसक गई है?

नाभ‍ि की जांच के लिए पेट का खाली पेट होना आवश्‍यक है। इसलिए नाभि की जांच खाली पेट ही करें।

समतल फर्श पर चटाई बिछा कर सीधेे लेट जायें। पैरों को सीधा रखें। सिर के नीचे तकिया या अन्‍य कोई चीज न रखें। एक हाथ जमीन पर ही सीधा रखें। दूसरे हाथ केे पाेेेेेेरों को नाभि पर रखें और स्‍पंदन की जांच करें। जिस ओर नाभि का स्‍पंदन महसूस हो, नाभि उस ओर ही खिसकी हुई है।

नाभि‍ चिकित्‍सा पद्धति में योगासनों का भी विशेष महत्‍व है। कई ऐसे आसन हैं जो नाभि चिकित्‍सा में मदद करते हैैं।




नाभ‍ि की जांच या चिकित्‍सा पद्धति के लिए पेट का खाली पेट होना आवश्‍यक है।

खाली पेट जमीन पर चटाई बिछाकर सीधा लेट जायें। दोनों पैैैैैैरो और हाथों को सीधा रखें। किसी अन्‍य व्‍यक्ति की मदद से अपने दोनों पैरों को जमीन से लगभग 2 फुट ऊपर उठवायें। पैरों को हवा में छोडने के पश्‍चात स्‍वयं उन्‍हें जितना देर संभव हो हवा में रोकने का प्रयास करें। फिर धीरे-धीरे जमीन पर वापिस ले आयें। इस क्रिया को 2 से 3 बार दोहरायेंं। उपरोक्‍त विधि से नाभि की जांच करें। नाभि चिकित्‍सा के पश्‍चात, चटाई पर बैठ जायें और उसी स्‍थान पर बैठकर थोडा कुछ खा लें। नाभि चिकित्‍सा के पश्‍चात कुछ भी खाना इसलिए आवश्‍यक है क्‍योंकि अधिकतर नाभि खाली पेट होने पर ही अपने स्‍थान से हिलती है।




1 comentário


krishnsinghchandel
10 de jul. de 2022

नाभी चिकित्सा हमारे आयर्वेद व हमारे देश की घरोहर है परन्तुं दुःख इस बात का है की हम हमारी अमूल्य घरोहर को सम्हालना त दूर की बात है हम स्वयं इसे अवैज्ञानिक व तर्कहीन उपचार कहते नही थकते थे । परन्तु इसकी उपयोगिता पर कुढारधात आधे अधूरे अधखचरा श्रानीयों ने आधी अधुरी जानकारियां देकर जनसामान्य को गुमराह ही नहीं किया बल्कि मुख्यधारा के चिकित्सकों के लिए विरूद्ध आलोचना का द्वार खोल दिया । नाभी चिकित्सा की प्रमाणित जानकारी की अवश्यकता जिन्हें भी हो हम भेज सकते है ताकि इस सस्ती सुलभ उपचार का लाभ जन सामान्य उठा सके ।

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