सूर्य और पृथ्वी के बीच Communication ‘कम्यूनिकेशन’ है, ऐसा ही संवाद है प्रतिफल। और पृथ्वी और मनुष्य के बीच भी इसी प्रकार का संवाद है प्रतिफल Consideration। सूर्य, पृथ्वी और मनुष्य, इन तीनों के बीच निरंतर संवाद conversation कायम है। एक निरंतर डायलॉग है। लेकिन वह जो संवाद है, डायलॉग है, वह बहुत गुह्य है और बहुत आंतरिक है और बहुत सूक्ष्म है।
हम अक्सर यह देखते आये हैं कि अनेकों सभ्यताएं हमें खुदाई में मिलींं, जिनका अस्तित्व आज नहीं है, कभी वह पूर्ण रूप से विकसित थीं, किन्तु उनका संपूर्ण विनाश कैसे हुआ यह आज भी पहेली बना हुआ है। हम मिले अवशेषों के आधार पर केवल अनुमान ही लगा सकते हैं कि उनके साथ क्या हुआ होगा किन्तु हमारे पास कोई पुख्ता सबूत नहीं है। मंगल पर भी कभी जीवन था, यह प्रमाण मिलने आरम्भ हो गये हैं लेकिन मंगल पर जीवन का अंत किस प्रकार हुआ शायद यह नहीं जानते। कोई बडा भूकंप, महामारी कुछ सभ्यताओं केे अंत का कारण हो सकती है। पृथ्वी यह सब महाविनाश सूर्य पर हो रही हलचलों के कारण ही होते हैं। सूर्य हमें निरंतर प्रभावित करता है।
सूर्य हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित करता है, इस पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे। यह तो सभी जानते हैं कि सूर्य है तो हम हैं, पृथ्वी पर जीवन है, नहीं तो कुछ भी नहीं। वैज्ञानिक एक शब्द का प्रयोग करते हैं वह है Empathy ‘एम्पैथी’।
What is Empathy?
Empathy क्या है? वैज्ञानिक भाषा में Empathy ‘एम्पैथी’ का अर्थ है- जो एक से ही पैदा हो। उनके भीतर एक अंतर समानुभूति होती है। सर्वप्रथम हम Sun के बारे में कुछ बातें जान लेते हैं। सबसे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि वैज्ञानिक दृष्टि में सूर्य से समस्त सौर परिवार- मंगल, बृहस्पति, चंद्रमा, पृथ्वी को जन्म हुआ है। ये सब सूर्य के ही अंग हैं। सूर्य के ही अंश हैं। फिर पृथ्वी पर जीवन का जन्म हुआ- पौधों से लेकर मनुष्य तक। मनुष्य पृथ्वी का अंग है। यह तो आप जानते हैं कि मनुष्य पंचतत्वों (अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश) से मिलकर बना है जिसकी चर्चा हमने अपने पिछले अंक 'मुद्रा चिकित्सा' में कर चुके हैं।
पृथ्वी सूर्य का अंग है। अगर हम इसे ऐसा समझें कि एक मां है, उसकी बेटी है और उसकी एक बेटी है। उन तीनों के शरीर में एक ही रक्त प्रवाहित हो रहा है, उन तीनों के शरीर का निर्माण एक ही तरह के सेल्स से, एक ही तरह के कोष्ठों से होता है। सूर्य से पृथ्वी पैदा होती है। पृथ्वी से हम सब के शरीर निर्मित होते हैं। सूर्य हमारा महापिता है। सूर्य में जो भी घटित होता है, वह हमारे रोम-रोम में स्पंदित होता है। होगा ही। क्योंकि हमारा रोम-रोम भी सूर्य से ही तो निर्मित है। सूर्य हमें इतना दूर दिखाई पडता है, पर इतना दूर नहीं है। हमारे रक्त के एक-एक कण में और हड्डी के एक-एक टुकडे में सूर्य के अणुओं का वास है। हम सूर्य के ही टुकडे हैं। और यदि सूर्य से हम प्रभावित होते हों तो इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है। यह Empathy ‘एम्पैथी’ है, समानुभूति है।
सूर्य और पृथ्वी के बीच Communication है, ऐसा ही संवाद है प्रतिफल। और पृथ्वी और मनुष्य के बीच भी इसी प्रकार का संवाद, प्रतिफल Consideration है। सूर्य, पृथ्वी और मनुष्य, इन तीनों के बीच निरंतर संवाद conversation कायम है। एक निरंतर डायलॉग है। लेकिन वह जो संवाद है, डायलॉग है, वह बहुत गुह्य गहरा है और बहुत ही आंतरिक और बहुत सूक्ष्म है। उसके संबंध में कुछ बातें समझनी आवश्यक हैं।
अमरिका के Tree Ring Research Center ‘ट्री रिंग रिसर्च सेंटर’ के अनुसार यदि आप कोई पेड कोटें तो वृक्ष के तने में आपको बहुत से रिंग मिलेंगे। बहुत से Circle वर्तुल दिखाई पडेंगे। फर्नीचर पर जो सौंदर्य मालूम होता है वह उन्हीं Circle वर्तुलों के कारण ही हैं। पचास वर्षों में यह रिसर्च केंद्र, के Professor Douglas जो Tree Ring Research Center के डायरेक्टर हैं, उनके अनुसार वृक्षों में जो Circle वर्तुल, चक्र से ही आंकी जाती है। प्रतिवर्ष एक Ring रिंग वृक्ष में निर्मित होता है। वृक्ष की कितनी उम्र है उन Ring रिंग के आधार पर ही जानी जाती है। Douglas खोज करते-करते वहां पहुंच गये जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने पाया कि हर ग्यारहवें वर्ष में Ring रिंग जितना बडा होता है उतना फिर कभी बडा नहीं होता। ग्यारवां वर्ष, वही वर्ष है जब Sun पर सर्वाधिक गतिविधियां होती हैं। हर ग्यारहवें वर्ष में Sun में एक रिदम, एक लयवद्धता है, हर ग्यारह वर्ष पर Sun बहुत सक्रिय हो जाता है। यह Radio activity बहुत ही तीव्र होती है। सारी पृथ्वी पर उस वर्ष Radio activity से अपनी रक्षा के लिए सभी वृक्ष मोटा रिंग बनाते हैं।
उपरोक्त तथ्यों से साफ है कि जब वृक्ष सूर्य को लेकर इतने संवेदनशील हैं तो ऐसा नहीं है कि मनुष्य का सूर्य पर प्रभाव ही न पडे। क्या मनुष्य चित्त में भी इस प्रकार की कोई परत या Layer होगी? क्या मनुष्य के शरीर में भी ऐसा कोई सूक्ष्म होगा।
Sun पर बडे परिवर्तन हर नब्बे वर्षों में होते हैं जिसका प्रभाव पृथ्वी पर भी पडता है और पृथ्वी में कंपन होते हैं। पृथ्वी पर भूकंप आते हैं। मनुष्य प्रभावित न हो, ऐसा संभव ही नहीं है। इससे मनुष्य भी प्रभावित होता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि Sun नब्बे वर्षों में 45 वर्ष जवान रहता है, और अगले 45वें वर्षों में ढलना आरम्भ हो जाता है। जो सूर्य के आरम्भ के 45 वर्षों में जब सूर्य जवान होता है, उस अंतराल पर जो बच्चा पैदा होता है, उसका स्वस्थ अन्य से बेहतर होता है।
वैज्ञानिक को लगता है कि जब Sun अपनी चरम अवस्था में होता है तो पृथ्वी पर बीमारियां कम से कम होती हैं लेकिन जब सूर्य उतार पर होता है तब पृथ्वी पर सर्वाधिक बीमारियां होती हैं। यह अंतराल 45 वर्षों का होता है। मनुष्य इन सब से अछूता नहीं है। जब सूर्य 90 वर्षों का Circle वर्तुल पूरा होता है तो पृथ्वी की घडी भी डगमगा जाती है। जब सूर्य पर उत्पात होता है तो पृथ्वी भी डगमगा जाती है। पृथ्वी को एक इंच भी हिलाने के लिए महाशक्ति की आवश्यकता है। जब महाशक्तियां पृथ्वी के पास से गुजरती हैं तो पृथ्वी कंपित हो जाती है। उस पर हर जीवन प्रभावित कंपित होता है। यह कंपन इतने सूक्ष्म होते हैं कि जिन्हें हम पकड नहीं पाते।
जैसे मनुष्य को बुखार चढता है तो 98 डिग्री हमारी सीमा है, यदि बुखार नब्बे डिग्री कम हो जाये तो हम समाप्त हो जायेंगे और यदि 110 डिग्री से ऊपर चले जायें तो भी खत्म हो जायेंगे। दोनों सीमाओं से इधर उधर हुआ तो समाप्त हो जायेगा। इस प्रकार ही हमारी देखने, सुनने की भी सीमा है। हमारी सभी इंद्रियां एक दायरे के भीतर ही कार्य करती हैं।
ज्योतिषयों का मानना है कि हमारे चारों ओर ऊर्जाओं के क्षेत्र हैं, Energy fields हैं जो हमें पूरे समय प्रभावित करती हैं। अध्ययनों के आधार पर, अंतरिक्ष में फैली ऊर्जाओं के अध्ययन के आधार पर, जितना हम जानते हैं वह अंतरिक्ष की संपूर्ण ऊर्जाओं का एक प्रतिशत भी नहीं है। हमने जो मानव निर्मित उपग्रह अंतरिक्ष में छोडे हैं, उनसे जो संदेश आये हैं उन्हें बताने के लिए हमारे पास शब्द तक नहीं हैं और न उन्हें समझने के लिए हमारा विज्ञान अभी इतना विकसित ही है। यह सभी ऊर्जाएं मानव जीवन को प्रभावित करती हैं।
साधारणत: सभी यह सोचते हैं कि सूर्य, अग्नि का एक निष्क्रिय गोला है। जब कि सच यह है कि यह सक्रिय है। जो प्रतिपल तरंगों में रूपांतरित होते रहते हैं। तरंगों का जरा भी रूपांतरण के पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करता है। पृथ्वी पर यूं ही कुछ घटित नहीं होता, जो भी घटित होता है, सूर्य से प्रभावित होता है। जब सूर्य ग्रहण होता है तो सभी पक्षी, चौबीस घंटे पहले ही गीत गाना बंद कर देते हैं। ग्रहण के समय सारी पृथ्वी मौन हो जाती है। पक्षी गीत गाना बंद कर देते हैं, जानवर भयभीत हो जाते हैं, बंदर वृक्षों को छोड पर जमीन पर आ जाते हैं। बंदर जो हर समय उछल-कूद करता है वह भी मौन हो जाता है।
मनुष्य बीमार तभी होता है जब उसके और उसके जन्म के साथ जुडे नक्षत्रों का ताराम्य टूट जाता है। पाइथागोरस का मानना है कि प्रत्येक नक्षत्र या ग्रह या उपग्रह जब अंतरिक्ष में यात्रा करते हैं, उनकी यात्रा से एक विशेष ध्वनि उत्पन्न होती है। प्रत्येक नक्षत्र की गति, एक विशेष ध्वनि पैदा करती है और प्रत्येक नक्षत्र की अपनी एक ध्वनि है। इन सभी ध्वनियों का एक तालमेल है। जिसे विश्व की संगीतबद्धता, हार्मनी है। जब कोई मनुष्य जन्म लेता है तो उस जन्म के क्षण में इन नक्षत्रों के बीच जो संगीत व्यवस्था होती है वह मनुष्य के प्राथमिक, सरलतम, संवेदनशील चित्त पर अंकित हो जाती है। वही उसे जीवनभर स्वस्थ और अस्वस्थ रखती है।
Cosmic chemistry कहती है कि पूरा ब्रह्माण्ड एक शरीर है। उसमें कोई भी चीज अलग-अलग नहीं है। सब संयुक्त है, इसलिए तारा कितनी भी दूर क्यों न हो, वह भी जब बदलता है तो हमारे हृदय की गति बदल जाती है। सूरज चाहे कितने भी फासले पर क्यों न हो, जब वह अधिक उत्तप्त होता है तो हमारे खून की धाराएं भी बदल जाती हैं। पृथ्वी का जीवन सूर्य की प्रत्येक गतिविधि से प्रभावित होता है।
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