top of page

Planning a family? READ THIS | फैमिली प्लान कर रहे हैं तो इसे पढें

Vimla Sharma

Updated: Sep 20, 2021



गर्भधारण करना जीवन का एक बडा निर्णय है। माता-पिता बनने के लिए माता-पिता का मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से तैयार होना आज बहुत ही आवश्यक है। यदि आप माता-पिता बनने का फैसला कर रहे हैं तो कुछ बातों पर अवश्य विचार करें। शिशु, ईश्वर की देन हैं किन्तु निर्णय आपका है। नये जीवन को उज्जवल भविष्य देना भी आपकी ही जिम्मेदार है। आज जीवनयापन ही मुद्दा नहीं है, इसके अलावा भी अहम खर्चे हैं जो माता-पिता को करने होते हैं। इसलिए माता-पिता मिल कर सभी मुद्दों पर चर्चा करें, पारिवारिक खुशियों के लिए यह बेहद अहम् पडाव है।


 

‘मां’ ये शब्द बड़ा अनमोल है। माँ शब्द ही नहीं बल्कि ये हमारे जीने का आधार है। माँ के बिना नवजीवन असंभव है। किसी के भी जीवन में भी माँ, सर्वश्रेष्ठ और सबसे महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि कोई भी उसके जैसा सच्चा और वास्तविक नहीं हो सकता। माँ हमेशा हमारे अच्छे और बुरे समय में साथ रहती है। माँ के बिना जीवन की उम्मीद नहीं की जा सकती अगर माँ न होती तो किसी का अस्तित्व ही न होता। कहते हैं कि इस नाम में भगवान खुद वास करते हैं। यही वजह भी है माता-पिता की जिम्मेदारियां और बढ जाती हैं। जब नवजात शिशु इस दुनिया में आता है तो सबसे ज्यादा खुशी, माँ को होती है जैसे मानो की दुनिया की सबसे कीमती चीज उन्हें मिल गयी हो। वह प्रसव के अपने सारे कष्ट भूल जाती है।


मां के लिए गर्भधारण का निर्णय, जीवन का एक अहम् निर्णय है। माता-पिता बनने के लिए माता-पिता का मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप तैयार होना आज बहुत ही आवश्यक है। आप जब भी माता-पिता बनने का फैसला करें, तो बहुत से पहलू हैं जिनपर विचार करना बेहद आवश्यक है। शिशु, ईश्वर की देन हैं किन्तु निर्णय आपका है। नये जीवन को उज्जवल भविष्य देना भी आपकी ही जिम्मेदार है। आज मेडिकल पर अच्छी खासी रकम खर्च हो जाती है। अब केवल जीवनयापन ही मुद्दा नहीं हैं, इसके अलावा भी अहम जिम्मेदारियां हैं जिन्हें निभाना आवश्यक है। पहले संयुक्त परिवार होते थेे जिससे सभी समस्याओं और जिम्मेदारियों का निर्वाह आसानी से हो जाता था, किन्तु अब ऐसा नहीं है। इसलिए पहले इन जिम्मेदारियों केे लिए आर्थिक, मानसिक और शारीरिक रूप से स्वयं को तैयार करना भीा आवश्यक है। माता-पिता मिल कर सभी मुद्दों पर चर्चा करें, फिर प्लान करें। पारिवारिक खुशियों के लिए यह बेहद अहम् पडाव है, तभी आप खुशहाल जीवन की कल्पना कर पायेंगे।

मां को चाहिए कि जब भी गर्भधारण का फैसला करें तो सबसे पहले अपने भीतर एक सकारात्मक सोच को पैदा करें और साथ-साथ अपने स्वास्थ्य पर खासतौर पर ध्यान दें। इस समय पर की जाने वाली लापरवाही, आने वाले समय के लिए बहुत ही मुश्किलें पैदा कर सकती है। इन मुश्किलों से बचने के लिए जरुरी है कि आप अपने आज पर खासतौर पर ध्यान दें जिससे भविष्य में होने वाली परेशानियों को टाला जा सके। आइए जानते हैं कि किन-किन बातों का ध्यान रखकर स्वस्थ रूप से गर्भधारण किया जा सकता है।



अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा स्वस्थ रहे तो गर्भधारण के समय कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखें।

गर्भधारण से पहले अपने डॉक्टर से सलाह करें

  • अपने मासिक चक्रों के बारें में जान लें।

  • सेक्स से जुड़े मिथकों के बारें में जरा भी न सोचें।

  • अपने आपको तनाव से दूर रखें।

  • डॉक्टर से सलाह जरुर करें।

इन जांचाेें के द्वारा भविष्य की परेशानियों का अंदाजा शुरुआत में लगाया जा सकता हैै। इस जांच को प्री-कंसेप्शन टेस्ट कहते हैं। अपने डॉक्टर से प्रीनेटल विटामिन जिसमें खासतौर फॉलिक एसिड के बारें में जरुर जांच करवा लें, क्योंकि फॉलिक एसिड, जन्म से जुड़ी समस्याओं से जुड़ा होता है। इसकी कमी होने पर गर्भधारण में दिक्कतें हो सकती हैं।


अपने मासिक चक्रों के बारें में जान लें-

आप अपने मासिक चक्रों के बारें में कितना जानती है? इस बात की पुष्टि कर लें क्योंकि यह गर्भधारण से पहले आपके लिए मददगार साबित होगा। इससे इस बात का पता लगता है कि महीने के किस दिन महिला में सबसे ज्यादा अंडोत्सर्जन होता है। जिसे ओव्यूलेशन कहा जाता है, ओव्यूलेशन गर्भधारण का सबसे सही वक्त माना जाता है। जब भी कंसीव करने का प्लान करें तो महीने के उस समय में करें जब ओव्यूलेशन सबसे अधिक हो। यह हर महिला में एक समान नहीं होता है, यह किसी भी महिला के मासिक चक्र पर निर्भर करता है।


सेक्स से जुड़े मिथकों, अंधविश्वासों के बारें में न सोचेः

  • स्वस्थ तरीके से गर्भधारण (Getting Pregnant) करने के लिए यौन संबंध से जुड़े मिथकों, अंधविश्वासों से दूर रहें।

  • परिवार में या सहेलियों के बीच कई सलाह आपको यूं ही मिल जायेंगी। लेकिन आप इस तरह की सुनी-सुनाई बातें और अंधविश्वासों से दूर रहें। कोई भी भ्रम हो तो उसे अपने डॉक्टर से चर्चा करें।

  • अपने आपको तनाव से दूर रखें।

  • तनाव किसी भी गर्भधारण में बाधा डालने का काम करता है। गर्भधारण के समय तनाव लेने से इसका सीधा असर गर्भस्थ शिशुु में देखने को मिलता है। इसलिए गर्भधारण से पूर्व अपने आप को पूरी तरह से तनाव रहित रखें जिससे कि आप स्वस्थ रूप से गर्भधारण कर पायें।


गर्भकाल नौ माह का होता है। साधारणतः गर्भ के चार मास के बाद गर्भस्थ शिशु के अंग-प्रत्यंग, हृदय आदि प्रकट हो जाते हैं। उसमें चेतना शक्ति का विकास होने के साथ-साथ इच्छाएं भी पैदा होती हैं। उस समय माता में जो संस्कार डाले जाते हैं, जिस वातावरण में मां रहती है, उससे गर्भस्थ शिशु प्रभावित होता है। उस समय मां को अच्छी शिक्षा, सदुपदेश, अच्छे साहित्य और सफल और महान व्यक्तियों के बारे में पढ़ना और सुनना चाहिए। गर्भस्थ मां को महान लोगों के बारे में पढ़ना चाहिए जिससे बच्चे में सकारात्मक विचार और सोच आ सके।

छठे माह से गर्भस्थ शिशु में मानसिक विकास होना शुरू हो जाता है। इसलिए इस समय से ही मां को सकारात्मक ज्ञान देने वाली पुस्तकों का अध्ययन आरम्भ कर देना चाहिए।

गर्भवती स्त्री जैसा सोचती है, जैसा संवाद करती है, जैसे उसके मन में विचार आते हैं, जैसे वातावरण में वह रहती है, जैसा सुनती या बोलती है, उसका प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है। वह वातावरण गर्भस्थ शिशु के चेतन व अवचेतन मन मस्तिष्क पर अपनी छाप छोड़ जाता है और वह सदैव के लिए मन-मस्तिष्क पर अंकित हो जाता है। यदि संस्कार प्रक्रिया द्वारा मानवीय मूल्यों की छाप, मां के गर्भ में ही उसके अवचेतन में अंकित हो सके, तो सदैव उसमें विद्यमान रहेंगी और जन्म के पश्चात् उन मूल्यों का पालन बच्चे के स्वभाव का अंग बन जायेगा। भविष्य में ये मूल्य उसके सोचने के ढंग और कार्यों को निर्देशित करेंगे और उसके भावी जीवन में अपना प्रभाव अवश्य दिखायेंगे। इसलिए एक गर्भवती मां को हमेशा सबके साथ विनम्रता,करुणा, दया, अहिंसा, प्रेम व सदभावना से रहना चाहिए। गर्भकाल के दौरान इन आचार-विचारों का पालन करके एक उत्तम संतान को पैदा कर सकती हैं। इसलिए ही तो कहते हैं कि स्त्री समाज की भी जननी है। जैसे हम गर्भावस्था में अपने आचार-विचार रखेंगे वैसी ही संताने होंगी। और फिर वैसा ही समाज भी तैयार होगा। इसलिए वही करें जैसा आप अपना, परिवार और समाज का भविष्य चाहती हैं। मां बनना एक बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी है। मां के साथ ही पिता की भी स्वस्थ शिशु के प्रति जिम्मेदारी है। पिता को चाहिए कि पिता धूम्रपान व शराब का सेवन न करे। ऐसा करने पर गर्भस्थ शिशु में विकृतियां आ सकती हैैंं। ऐसे कई उदाहरण आपको समाज में या अपने आसपास देखने को मिल जायेंगे। यदि विकृत बच्चे केे माता-पिता के खान-पान आदि पर ध्यान दें तो संभव है आपको वजह स्वयं ही मिल जायें। स्वस्थ बच्चे के लिए माता-पिता दोनों को ही चाहिए कि वह अपने आचार-विचार व खान-पान सात्विक ही रखें।


गर्भाधान मनुष्य के नवनिर्माण के लिए है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जब माता-पिता अपने शरीर और मन को शुद्ध और पवित्र बनाकर एक दिव्य आत्मा का आह्वान करते हैं तो नौ माह पश्चात् मां एक नवजीवन को जन्म देती है। बच्चे को जन्म देना एक बहुत बड़ा तप है। आप सृष्टि का सृजन कर रहे हैं। यह जीवन का सर्वश्रेष्ठ और सर्वोतम परोपकार है।

गर्भधारण भारतीय संस्कृति में 16 संस्कारों में एक संस्कार है। जिसे गर्भाधान संस्कार कहते हैं। यह संस्कार कुल की वृद्धि और सृष्टि की निरन्तरता के लिए होता है। माता-पिता की सोच, परम्परा, प्रवृत्तियों का प्रभाव संतान पर अवश्य पड़ता है। संतान भी माता-पिता के अनुरूप ही होती है। आधुनिक भाषा में इसे जीन्स कहते हैं।

शास्त्रकारों का मानना है कि संस्कार प्रक्रिया के द्वारा वंशागत, पैतृक और माता-पिता के रज-वीर्य के प्रभावों को बदला भी जा सकता है। जैसे प्राचीन समय में राक्षस हिण्यकश्यप का पुत्र भक्त प्रहलाद हुए। ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं कि बुरे स्वभाव के माता-पिता के बच्चे, अच्छे संस्कारों के कारण अपने कुल और परिवार का नाम रोशन करते हैं।


अच्छे संस्कारों से मानव के वंशानुगत प्राप्त परंपराओं को बदलकर उसे जैसा चाहे बनाया जा सकता है। टार्जन एक अच्छा उदाहरण है। जो था तो एक मानव किन्तु किसी कारणवश वह जंगली पशुओं की भांति ही रहने, खाने, पीने व विचरण करने लगा। भारतीय ऋषियों ने मानव नवनिर्माण का स्वप्न संस्कारों के माध्यम से लिया। बच्चे की परिस्थितियों को बदलने से ही उसे उन्नत बनाया जा सकता है। अतः गर्भाधान संस्कार ऐसी प्रक्रिया है, जिसके प्रयोग से हम मनचाही संतान पैदा करने में सक्षम हो सकते हैं।



गर्भाधान संस्कार का विवाह से विशेष संबंध है। यह विवाह ही है जो भावी पीढ़ी के जन्म का कारण बनता है। यदि हमारी सामाजिक परम्पराओं में विवाह नामक संस्था न होती तो हमारी दशा पशुओं जैसी ही होती। इसलिए भारतीय ऋषियों ने गर्भाधान संस्कार से पूर्व विवाह को आवश्यक माना है।

गर्भाधान संस्कार इस संसार में नई आत्मा के प्रवेश का एकमात्र मार्ग है। नारी जन्मदात्री मां होती है। वह शिशु की प्रथम शिक्षिका भी होती हैं वीर, साहसी, एवं सर्वथा उन्नतिशील संतान का सृजन हो, इसके लिए प्रत्येक नारी के व्यावहारिक जीवन में अन्तर्बाह्य पवित्रता बनाये रखने के लिए संस्कारों का बड़ा महत्व है।

स्वस्थ शरीर व स्वस्थ मन का गर्भाधान पर विशेष प्रभाव पड़ता है। तभी तो चरक जैसे आयुर्वेदाचार्य ने कहा कि जैसी संतान की आवश्यकता हो, स्त्री गर्भकाल के दौरान वैसे ही विचार, वातावरण व्यवहार और कथाप्रसंग में रहे। दम्पत्ति जैसी संतान चाहते हैं गर्भवती स्त्री स्वयं को वैसेे ही वातावरण में रखे।

यदि गर्भाधान पूर्ण वैदिक रीति से किया जाये तो जैसी संतान की कामना हो, पति-पत्नी स्वयं को वैसे ही वातावरण में रखें। गर्भाधान के बाद घर में वातावरण शुद्ध हो, कलह-क्लेश न हो, तो निश्चित ही आपको इच्छित संतान प्राप्त होगी।


कैसे रखें गर्भस्थ शिशु को सुरक्षित?

गर्भावस्था में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ये कठिनाइयां कई प्रकार की होती है। कुछ वे होती हैं जो प्रथम मास से तीन माह तक ही रहती हैं और कुछ वे होती हैं जो संतानोत्पत्ति तक रहती हैं। यदि थोड़ी सी सावधानी बरती जाए तो कुछ हद तक ये परेशानियां कम हो सकती हैं।

सावधानी बरतने के बाद भी यदि परेशानी बनी रहती है तो उसका उपचार आवश्यक हो जाता है। संतान होना एक बात है और संतान स्वस्थ, निरोगी रहे यह अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए क्या सावधानियां रखी जाए, यहां जानकारी देने का प्रयास किया गया है-

गर्भकाल में आने वाली समस्याएं

  • गर्भकाल में उच्च रक्तचाप रहने संभावना अधिक रहती है। पैरों में सूजन आ जाती है। इसके उपचार के लिए प्रोटीनयुक्त औ संतुलित भोजन करना चाहिए।

  • खून की कमी को पूरा करने के लिए हरे पत्तेदार सब्जियां, तथा ऐसे फलों का सेवन अधिक करना चाहिए जिनमें लौह तत्व अधिक हो। जैसे पके टमाटर, काली मिर्च, गाजर, किशमिश, अनार, अंगूर, आदि अधिक खाने चाहिए।

  • यदि गर्भावस्था में अफारा, गैस या कब्ज की शिकायत हो तो आप संतुलित और हल्का भोजन करें। तथा प्रतिदिन सुबह हल्के गुनगुने पानी में नींबू का रस मिलाकर पीयें। भोजन करने के बाद वज्रासन में बैठें। अत्यंत लाभकारी है।

  • गर्भावस्था में सिरदर्द होने पर तुलसी के पत्तों का रस नाक में डालने से लाभ मिलता है। इसके अलावा अदरक की हल्की चाय पी सकती हैं। कोई भी एलोपैथिक या अन्य दवाई अपने डॉक्टर की सलाह के बिना न लें। एलोपैथी दवाइयों से आराम तो जल्द मिल जाता है किन्तु यह बच्चे और मां की सेहत को अधिक प्रभावित करती हैं।

  • पीलिया की स्थिति में शरीर व आंखों का रंग पीला हो जाता है। यह रोग यकृत (लीवर) में खराबी के कारण होता है। गर्भावस्था में पीलिया होने पर अपने आहार में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा को बढ़ा दें। बी-कॉम्प्लैक्स और ग्लोकोज की मात्रा दिन में तीन बार लें। डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।

  • मिर्गी की बीमारी होने पर मरीज का शरीर थरथरा कर अकड़ जाता है। गर्दन एक ओर घूम जाती है, मुंह से झाग निकलने लगते हैं और दांत जम जाते हैं। ऐसी स्थिति होने पर डॉक्टर की सलाह पर पोटेशियम ब्रोमाइट एवं ल्यूमीनाल औषधि का सेवन कर सकते हैं।

  • गर्भावस्था के दौरान पेचिश, दूषित जल और दूषित भोजन के कारण होती है। इस दौरान गर्भवती मां को खट्टे, चटपटे, मसालेदार भोजन नहीं करना चाहिए। ताजे मट्ठे में भुना हुआ जीरा डालकर पीयें। इसमगोल को दही के साथ लेने से आराम मिलेगा। पानी भरपूर पीयें।

  • एक मां को चाहिए कि आधुनिकता के नाम वह गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान शराब का सेवन न करेें।

गर्भावस्था में लगाये जाने वाले टीके

आधुनिक चिकित्सा के अनुसार शिशु को सुरक्षित और जन्म होने के बाद भी रोगों से बचाने के लिए टीके लगवाना अत्यंत आवश्यक है। इनमें चार महीने से सात महीने के बीच में दो टेटनस के टीके लगवाने चाहिए। दोनों टीकों में कम से कम छह माह का अंतर होना अत्यंत आवश्यक है।

गर्भ गिरने की आशंका

गर्भ प्रायः 280 दिन के बाद पूर्ण शिशु बनकर जन्म लेता है। कई बार गर्भ गिरने की आशंका बढ़ जाती है। इससे बचने के लिए कुछ सावधानियों और औषधियों की आवश्यकता होती है। इसलिए गर्भवती महिला व परिवार को चाहिए कि वह नियमित रूप से अपने चिकित्सक की सलाह और दवाइयां समय पर लेती रहें। अपना ख्याल रखें। गर्भावस्था के दौरान थोड़ी सी शंका होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें या डॉक्टर से मिलें।


आपके भावी खुशहाल जीवन के लिए शुभकामनाएं




Read this (इन्‍हें पढें)-


बच्‍चों का हेल्‍दी भोजन कैसे दें? | https://www.merivrinda.com/post/how-to-give-children-healthy-food

बच्‍चों को प्रतिभाशाली बनायें | https://www.merivrinda.com/post/make-children-talented

नारी जननी ही नहीं, निर्माता भी | https://www.merivrinda.com/post/naari-janni-hi-nhin-nirmata-bhi-hai

बच्‍चों के जीवन में पिता की भूमि‍का | https://www.merivrinda.com/post/role-of-father-in-children-life

गर्भपात, एक मूक चीख | https://www.merivrinda.com/post/abortion-a-silent-scream

बच्‍चों में बढती नकारात्‍मक प्रवृति | https://www.merivrinda.com/post/negativity-in-children

कॉरेनटाइन में बच्‍चों की बोरियत दूर करें | https://www.merivrinda.com/post/do-not-let-children-get-bored-in-quarantine

फैमिली प्‍लान कर रहे हैं तो इसे पढे | https://www.merivrinda.com/post/family-planning

युवा और उनकी समस्‍याएं | https://www.merivrinda.com/post/youth-and-their-problems

कॉलिक संक्रमण या शिशु का रोना? | https://www.merivrinda.com/post/colic-infection-or-baby-crying


Commentaires


Post: Blog2_Post

Subscribe Form

Thanks for submitting!

©2021 Meri Vrinda, All rights reserved.

bottom of page