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इस पृथ्वी पर हर प्राणी को जीने का पूर्ण अधिकार है। वह छोटा हो या फिर बडा, किसी का जीवन नष्ट करने का अधिकार किसी को भी नहीं है। इस प्रकार ही माता-पिता को भी अपनी जीती जागती संतान की हत्या करवाने की छूट विश्व के किसी भी धर्म ने प्रदान नहीं की है। गर्भाधान के समय से ही भ्रूण एक मानव जीवन अंकुरण है। महात्मा गांधी नहीं ने इस कथन को दोहराते हुए कहा GOD ALONE CAN TAKE LIFE BECAUSE HE ALONE GIVES IT इसका अर्थ यह हुआ कि जीवन केवल ईश्वर ही ले सकता है क्योंकि जीवन देने वाला भी वही है।
प्रसिद्ध अमेरिकन डॉ- बेनार्ड नाथेन्सन द्वारा एक फिल्म ‘द साइलेन्ट स्क्रीम’ (The Silent Scream) गर्भपात पर फिल्माई गई थी। इस फिल्म को देखकर उस समय लाखों मांओं का मातृत्व जाग उठा था। उन्होंने गर्भपात न कराने का संकल्प भी लिया था, जिससे उस समय लाखों गर्भस्थ शिशुओं की जान बच गयी। इसे देखकर विदेशों में गर्भपात के विरोध में अनेकों आन्दोलन भी खड़े हुए। गर्भस्थ शिशु की हत्या और उसकी वेदना को दर्शाने वाली इस फिल्म को जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने देखा तो इससे वह बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने प्रत्येक अमेरिकी संसद सदस्य से फिल्म देखने को कहा।
शिशु ईश्वर की अनुकृति है, जब वह इस पृथ्वी पर आने के लिए माता के गर्भ में आता है, तब से ही उसमें प्राण आ जाते हैं। वैज्ञानिक रूप से भी यह सिद्ध हो चुका है। जब पुरुष के शुक्राणु का स्त्री के डिम्ब से मेल होता है, तब से ही एक नए जीवन का प्रारम्भ हो जाता है। उसी क्षण से शिशु की जीवन यात्रा आरम्भ हो जाती है। गर्भकाल भी उसी यात्रा का एक हिस्सा है।
भौतिकतावादी समाज में अधिक सुख-सुविधाओं, धनोपार्जन, अधिक सुख भोगने की इच्छा, काम-पिपासा की संतुष्टि और बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए आज लोग गर्भपात जैसे अमानवीय उपायों को अपना रहेे हैंं। जो मानवता पर कलंक है, ईश्वर के प्रति गंभीर अपराध है, प्रकृति से खिलवाड़ है। अब गर्भपात कराना एक फैशन बन गया है। आज लोग इसे जीव हत्या न मानकर साधारण ऑपरेशन मान बैठे हैं। ऐसा लगता है कि गर्भपात क्या है शायद लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं है। संपूर्ण जानकारी के अभाव में ही, सभ्य और शिक्षित समाज में ऐसे कृत्य हो रहे हैं।
विज्ञान के क्षेत्र में ULTRASOUND मशीन का अविष्र गर्भस्थ शिशु की स्थिति और उसके स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया गया था किन्तु अब इस मशीन का सदुपयोग कम बल्कि दुरूपयोग अधिक किया जा रहा है। आज इस मशीन का उपयोग गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता लगाने के लिए किया जा रहा है। गर्भपात में अधिकांशतः कन्या भ्रूण हत्याएं अधिक हो रही हैं। जिस क्रूरता और जघन्यता के साथ यह कार्य किये जा रहे हैं उससे आधुनिकता की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न लगा दिया है।
गर्भपात क्या है?
भ्रूण हत्या करवाने वाले अधिक लोग यह समझते हैं तक गर्भधान के तीन माह बाद ही गर्भस्थ शिशु में प्राणों का संचार होता है, इससे पहले वह केवल एक मांस का पिंड ही होता है। जो गलत है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। बिना जीवन के विकास संभव नहीं है। यदि मांस का पिण्ड ही होता तो शरीर का कोई भी अंग कट जाने के बाद स्वयं क्यों नही बढ़ता? जबकि सच्चाई यह है कि जिस दिन पुरुष के शुक्राणु स्त्री के डिम्ब से मिलते हैं जीवन उसी क्षण से आरम्भ हो जाता है और नया जीवन अस्तित्व में आता है। गर्भ के तीसरे सप्ताह में अतिसूक्ष्म शिशु के आंखें, रीढ़, मस्तिष्क, स्पाइनल कोर्ड, नर्वस सिस्टम, फेफ़ड़े, पेट, जिगर, आंतें, गुर्दे आदि का निर्माण प्रारम्भ हो जाता है। तीन माह अर्थात बारहवें और तेहरवें सप्ताह में शिशु के अंग कार्य करने लगते हैं। उसकी दिल की धड़कन सुनी जा सकती है। छूने पर वह बचने का प्रयास करता है। उसके फिंगर प्रिंट उतने ही विकसित हो चुके होते है जितने की किसी 70 वर्षीय व्यस्क के होते हैं। इसका साधारण अर्थ यह हुआ कि आप तीन माह के समय गर्भपात कराकर आप स्वयं अपने जीवित शिशु की हत्या करती हैं।
शिशु जीवन की प्रारंभिक अवस्था में हो या अंतिम, चाहे वह गर्भ में हो या गर्भ से बाहर, उसकी हत्या, हत्या ही है। गर्भपात चाहे जितनी भी जल्दी कराया जाये, उसमें हत्या अनिवार्य है। जब तक मां को स्वयं के गर्भवती होने का अहसास होता है तब तक तो उसकी कोख में पल रहे शिशु का दिल धड़कना आरम्भ हो चुका होता है। उसका मस्तिष्क विकसित हो चुका होता है। वह अपने हाथ-पांव हिलाने लगता है। वह प्रतिक्रियाएं व्यक्त करता है।
अपने जीवित शिशु का गर्भपात के द्वारा हत्या करवाने वाले माता-पिता क्या जानते हैं कि इस क्रिया में उनकी जीती-जागती संतान किस निर्ममता एवं निर्दयता से यातना देकर हत्या कर दी जाती है, यदि जान जायें तो शायद वे कभी अपने गर्भस्थ शिशु की हत्या अर्थात गर्भपात न करवायें।
गर्भपात कराने वाले व्यक्ति यह समझते हैं कि जैसे शरीर में हुई कोई रसौली अथवा पथरी को निकाल देना। यह धारण बिल्कुल गलत है। गर्भपात तो एक निर्दोष प्राणी की सुनियोजित नृशंस हत्या है।
गर्भपात में प्रचलित विधियां
प्रथम तीन माह में प्रयोग की जाने वाली विधियां-
चूषण पद्धति (Suction Aspiration):
इसमें पद्धति में गर्भाश्य का मुंह खोलकर उसके अन्दर (Suction cutter) एक खोखली नली, जिसका सिरा चाकू जैसा नुकीला होता है तथा नली के साथ ही एक पंप जुड़ा होता है। उसे गर्भाशय में डाला जाता हैै। वह तेज दवाब और खिंचाव से बच्चे को खींचकर बच्चे के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देता है, और शिशु के शरीर के टुकड़े बाहर निकाल दिये जाते हैं।
फैलाव व निष्कासन विधि (Suction Aspiration):
यह तकनीकि तीन से नौ माह तक के शिशु के लिए प्रयोग में लायी जाती है। इसमें गर्भाश्य के मुंह को खींचकर फैलाया जाता है और फिर विशेष प्रकार के औजार से शरीर को काटा जाता है फिर खोपड़ी को तोड़ा जाता है। फिर कटे हुए टुकड़ों को गोल छल्लेदार कैंची से निकाला जाता है।
डी एवं सी विधि (Dilatation Curettage):
यह विधि भी चूषण विधि से मिलती जुलती है। इस विधि में चाकू एक तेज धार वाले लूप की शक्ल का होता है जो गर्भाशय में बच्चे को काटता है। फिर कटे हुए अंगों को चम्मचनुमा औजार से गर्भाशय के मुंह से बाहर निकाला जाता है।
जहर क्षारवाली विधि (Poison base method)
एक लंबी मोटी सूई गर्भाशय में लगाकर एक जहरीला तरल पदार्थ गर्भाशय में छोड़ दिया जाता है। जिसका कुछ अंश शिशु निगल लेता है तथा विष खाये व्यक्ति की तरह गर्भाशय में शिशु तड़पने लगता है। बाद में उसकी मृत्यु हो जाती है फिर उसे गर्भाशय से निकाल दिया जाता है।
इसके अलावा भी कई विधियां हैं जो गर्भपात जैसे जघन्य पाप में प्रयोग की जाती हैं। जो कि सिजेरियन डिलीवरी की तरह प्रयोग में लाई जाती हैं। जिनमें शिशु गर्भ से जीवित बाहर आता है और कुछ देर बाद तड़प-तड़प कर दम तोड़ देता है।
इस तरह माता-पिता अपने लहू से बने शिशु को गर्भपात करवा कर, उसके टुकड़े-टुकड़े कर निर्मम हत्या कर देते हैं और उन्हें अपने शिशु की तकलीफों और दर्द का अहसास तक नहीं होता। ऐसे माता-पिता को प्रेरित करने वाले संबंधी, डॉक्टर सभी इस जघन्य हत्या के अपराधी हैं। जहां तक धर्मशास्त्राेें का संबंध है, पंचेन्द्रिय वध करने वाले को महा नरकी कहा गया है।
इस बात को ध्यान में रखते हुए ही भारतीय संविधान की दृष्टि में भी गर्भपात गैर कानूनी है। हर गर्भपात में हत्या अनिवार्य है इसलिए सन् 1971 तक भारत मेें गर्भपात करवाना अपराध माना जाता था। इन्डियन पैनल कोड (IPC) की धारा 312 के अनुसार गर्भपात करवाने वाले, गर्भपात के लिए उकसाने वाले और करने वाले को लगभग 3 वर्ष की सजा का विधान है। वर्ष 1971 में भारत सरकार ने नया कानून (The Medical Termination of Pregnancy Act 1971) दी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेन्सी एक्ट, 1971 बनाकर गर्भपात करने व कराने को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में गैरकानूनी मान्यता प्रदान की गई है।
गर्भस्थ शिशु की वेदना उसी प्रकार की है जिस प्रकार से जल की मछली को पानी से बाहर निकाल देने पर होती है। अपनी ही संतान को मरवा देने वाले माता-पिता के लिए कौन सा शब्द प्रयोग किया जाये, समझ में नहीं आता। क्या लाखों निर्दोष मासूम शिशुओं को गर्भाश्य में ही काट-काटकर हत्या कर देना अपराध नहीं है? गर्भस्थ शिशु की हत्या किसी फांसी की सजा देने से भी क्रूर है। जीवन लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है। फांसी में तो तत्काल मृत्यु हो जाती है किन्तु गर्भपात में शिशु बहुत समय तक तड़प-तड़पकर मरता है। जबकि वह तो बिल्कुल निर्दाेष होता है। यदि इन सभी शिशुओं को किसी न्यायालय में याचिका दायर कर पाते या केस लड़ पाते तो हत्यारे सभी माता-पिता, डॉक्टर, संबंधियों को विश्व की कोई भी अदालता फांसी देने से नहीं रोक पाती। काश ऐसा हो पाता।
अतः गर्भपात जैसे नृशंस, अमानवीय एवं हिंसक कार्य को जो संपूर्ण मानव जाति पर एक कलंक है, उसे न केवल स्वयं त्यागना, बल्कि उसे पूर्ण रूप से रोकने के लिए प्रयास करना भी सभी का कर्तव्य है।
अब प्रश्न यह उठता है कि आज मंहगाई और अन्य कारणों से अधिक बच्चों को संभाल पाना बहुत ही मुश्किल कार्य है तो इन परेशानी से कैसे बचा जाये। इसका सबसे अच्छा उपाय है संयम। इसके अलावा आज मेडिकल तकनीक इतनी विकसित हो चुकी है कि हम किसी को अस्तित्व में लाने से पहले रोक सकते हैं। इनमें प्रमुख उपाय है परिवार नियोजन, जिसको अपना कर मासूमों की हत्या पर काफी हद तक रोक लगा सकते हैं।
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