खुश्बू सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं।
वास्तु में किसी वस्तु या सिद्धांत को हल्केपन से नहीं ले सकते। वास्तुशास्त्र में दिशा, पंचतत्व, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, वनस्पतियां, सुगन्ध आदि सभी महत्वपूर्ण हैं। सुगन्ध से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं, सुगन्ध या इत्र का प्रयोग करके कई प्रकार की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। सुगन्धित वातारण मन को निर्मल और तन को स्वच्छ करता है। खुश्बू से परिवेश प्रभावित होता है। खुश्बू से ऐसी समस्याओं को नियंत्रित किया जाता है जो नकारात्मकता पैदा करती हैं। खुश्बू मन को तरोताजा व शांत बनाती है
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हमारे सामान्य जीवन में किसी भी प्रकार की खुश्बू का अत्यंत महत्व है। हमारे आसपास विद्यमान नैसर्गिक खुश्बू हमें नकारात्मक ऊर्जा से दूर करती है तथा हमारे जीवन व कार्य के लिए उपयुक्त मार्ग प्रशस्त करती है, वास्तु में किसी वस्तु या सिद्धांत को हल्केपन से नहीं ले सकते। वास्तुशास्त्र में दिशा, पंचतत्व, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, वनस्पतियां, सुगन्ध आदि सभी महत्वपूर्ण हैं। सुगन्ध से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं। सुगन्ध या इत्र का प्रयोग करके कई प्रकार की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। सुगन्धित वातारण मन को निर्मल और तन को स्वच्छ करता है। खुश्बू से परिवेश प्रभावित होता है। खुश्बू से ऐसी समस्याओं को नियंत्रित किया जाता है जो नकारात्मकता पैदा करती हैं।
प्रकृति ने विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों, वनस्पतियों का निर्माण किया है। जिनमें से कुछ बेहद मीठी व सभी को भाने वाली सुगन्ध देती हैं, जैेसे चंदन, गुलाब, चमेरी, मोंगरा आदि को लें तो इनकी खुश्बू मन के सारे विकार दूर कर देती है। खुश्बू मन को तरोताजा व शांत बनाती है। विश्व में सभी जातियों और धर्मों में विभिन्न अवसरों पर इत्र या खुश्बू का प्रयोग अवश्य होता है। मानव सभ्यता में विकास के साथ ही लोग महलों, कक्षों, द्वारों (दरवाजों), वस्त्रें आदि में विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार की खुश्बूओं का प्रयोग करते थे। इसका एक की मकसद था कि वातावरण में जान फूंकना तथा नकारात्मक प्रभाव को नष्ट करना। इसमें कोई संदेह नहीं कि खुश्बू का प्रयोग करके आसपास के वातावरण को सजीव बनाया जा सकता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार गेंदा, पियुनिया या अन्य पीले फूलों को विवाह योग्य कन्याओं के कक्ष में रखने से उनके विवाह के प्रस्ताव आने लगते हैं। वास्तव में इन खुश्बूओं से बोझिलपन को दूर कर, मन को शांत करता है और सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार होता है। ऐसी स्थिति में सब शुभ होने लगता है। अगर घर में, परिवेश में नकारात्मक ऊर्जा मौजूद हो तो आपको किसी भी कार्य में मनोवांछित सफलता नहीं मिलेगी, आप विभिन्न प्रकार की खुश्बुओं का प्रयोग करके सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार कर सकते हैं। घर में परिसर में विभिन्न प्रकार के इत्र व खुश्बुओं का प्रयोग करके सकारात्मक ऊर्जा के स्तर में वृद्धि लायी जा सकती है। आप कह सकते हैं कि खुश्बू का प्रयोग कर नकारात्मक ऊर्जा की मात्रा में काफी हद तक कमी लायी जा सकती है। इस तरह खुश्बू का प्रयोग व्यवसायिक परिसरों में करके हानिकारक ऊर्जा के मार्ग को बदलकर उसके स्थान पर नई व मनोवांछित ऊर्जा को बनाए रखा जा सकता है। आइए सुगन्धों या महक, या खुश्बू या इत्र पर विस्तार से प्रकाश डालते हैं-
घर में श्यामा अर्थात काली तुलसी लगाने से वातावरण शुद्ध होता है। तुलसी की खुश्बू और औषधीय गुणों के कारण इसे बहुत ही लाभकारी मानतेे हैं। तुलसी के पौधे में मरकरी या पारा नामक तत्व पाया जाता है। यह सृष्टि का सबसे भारी तत्व है। इसमें नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने की अद्भुत क्षमता होती है। पारे के शिवलिंग, पिरामिड, अंगूरी माला आदि दुष्ट ग्रह-नक्षत्रों के प्राणघातक व नकारात्मक प्रवाह को समाप्त कर सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
घर के अन्दर देसी घी के दीए जलाने से सात्विक व नैसर्गिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
सुबह की पूजा-अर्चना में गुलाब-चंदन आदि की खुश्बू वाली धूप व अगरबत्ती का प्रयोग करके घर के वातावरण को पवित्र व निर्मल बनाया जा सकता है। इन खुश्बुओं की मौजूदगी में ध्यान नहीं बंटता।
सुबह की पूजा में हल्की खुश्बुओं का प्रयोग करना चाहिए। तेज खुश्बू जैसे लेवेंडर, मोंगरा आदि आलस पैदा करती हैं। और वातावरण में सुस्ती् छा जाती है। लेवेंडर की तीखी खुश्बू का प्रयोग व्यवसायिक भवनों में नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि इससे स्टाफ में सुस्ती छा जाती है।
अगर आपके घर में तनाव या डिप्रेशन रहता हो, घर का प्रत्येक सदस्य इससे अछूता नहीं रहता हो, तो आप प्रत्येक सप्ताह में एक बार प्रत्येक कमरे में हवन सामग्री जलायें, तथा घर के सभी हिस्सों में धूनी दें। इस तरह तनाव व डिप्रेशन दूर होगा। आप हवन में लोह बान या गुग्गल का प्रयोग भी कर सकते हैं।
कहते है कि जहां सूर्य की प्राकृतिक रोशनी नहीं आती, वहां मुर्दे निवास करते हैं। इसका एक ही अर्थ है कि सूर्य का प्रकाश घरों में पहुंचना आवश्यक है। क्योंकि सूर्य के प्रकाश में वह शक्ति होती है, जिससे घर की नकारात्म्क ऊर्जा नष्ट होती है। सूर्य के प्रकाश की गैर मौजूदगी में घर में नकारात्मक ऊर्जा व्याप्त होती है। इस स्थिति में घर में कपूर की टिकिया प्रतिदिन जलानी चाहिए इससे नकारात्मकता दूर होती है। कपूर के प्रयोग से आप चमत्कार महसूस करेंगे।
यह पूरी तरह वैज्ञानिक आधार पर सत्य है कि खुश्बू का प्रयोग करके कई समस्याओं से निजात पा सकते हैं। वायु जब औषधीय खुश्बुओं के बीच से गुजरती है तो जीवनदायिनी ऊर्जा के प्रभाव में वृद्धि होती है। ऐसी शुद्ध, धुली हुई सुवासित-सुगंधित वायु जब घर-आंगन, डयोढ़ी, बरामदे, कमरे, लॉबी आदि स्थानों से गुजरती है तो जीवन दायिनी वायु के बीच से गुजरने से व्यक्ति या वस्तु में नवजीवन का संचार होता है। निवासियों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। घर में धन-धान्य में वृद्धि होती है। व्यक्ति के मन व मस्तिष्क का तनाव दूर होता है।
भारतीय फिल्मों, कविताओं आदि में मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुश्बू का वर्णन मिलता है। मिट्टी में जो खुश्बू होती है, इसकी अन्यंत्र किसी अन्य खुश्बू से नहीं की जा सकती। जब मिट्टी में वर्षा की बूंदे पड़ती हैं, तो उसकी महक मेें दिमागी तनाव दूर करने की शक्ति विद्यमान होती है। यह भीनी-भीनी खुश्बू मदहोश करने वाली होती है। मिट्टी में औषधीय गुणों के कारण इसकी महत्वता और बढ़ जाती है। कई आयुर्वेद उपचार में मिट्टी का प्रयोग होता है।
घर पूर्व मुखी या उत्तर मुखी सर्वोतम होता है। पूर्व या उत्तर मुखी घर होने से पूर्व या उत्तर दिशा से चलने वाली खुश्बूदार और औषधीय आती हैं। क्योंकि उत्तर दिशा में हिमालय है। हिमालय में औषधीय जंगल हैं। ढेर सारी वनस्पतियां हैं जो स्वास्थ्य को उत्तम बनाती हैं।
आज के समय में कृत्रिम खुश्बू उपलब्ध हैं। खुश्बू चाहे प्राकृतिक हो या कृत्रिम, वास्तु के अनुसार, बेहद लाभकारी हैं। बशर्ते खुश्बू तेज न होकर भीनी-भीनी व हल्की होनी चाहिए। आज के समय में हर व्यक्ति खुश्बू का प्रयोग कर रहा है। शादी-पार्टियों, समारोह आदि में जाने से पूर्व औरत-मर्द, बच्चे, जवान, बूढ़े सभी अपने कपड़ों और शरीर पर डियोडरेंट, परफ्रयूम या टेलकम पाउडर खुश्बू के रूप में प्रयोग कर रहा हैं। वास्तव में इन खुश्बूओं के अहसास से मन आत्मविश्वास से भर उठता है।
अतः खुश्बू चाहे प्राकृतिक हो या कृत्रिम, इसका व्यक्तित्व, परिवेश, वातावरण सभी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
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