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कबीर के वचन अनूठे हैं; जूठे जरा भी नहीं। और कबीर जैसा जगमगाता तारा मुश्किल से मिलता है। संतों में कबीर के मुकाबले कोई और नहीं। सभी संत प्यारे और सुंदर हैं। सभी संत अदभुत हैं; मगर कबीर अदभुतों में भी अदभुत हैं, बेजोड़ हैं। कबीर की सब से बड़ी अद्वितीयता तो यही है कि जरा भी उधार नहीं है।
ओशो कहते हैं- कबीर दास ने अंधविश्वास को आधार विहीन सिद्ध करने का प्रयत्न किया। जो लोग कहते थे कि काशी में मरने से स्वर्ग में जाएगा इस अन्धविश्वास को तोड़ने के लिए काशी से जाकर कबीर दास ने मगहर में अपने प्राण त्यागे। और जनमानस में व्याप्त उस अन्धविश्वास को आधार विहीन सिद्ध किया और काशी में मरने से स्वर्ग और मगहर में मरने से नरक प्राप्त होगा।
कबीर प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति थे। वे कवि, उपदेशक और संत थे कबीर ने किसी विघालय में शिक्षा ग्रहण नही की लेकिन ज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरू की खोज की जो रामानन्द जी सच्चे गुरू के रूप में मिल गये।
भाग बडे रामानन्द गुरू पाया । जनम-जनम का भरम गमाया ।।
अपने धुमक्कड़ जीवन में कबीर को अलग-अलग मत के लोगो से धर्मों एवं आचार-विचारों को मनन करने और कसौटी पर कसने का अवसर मिला।
पोथी पठि पठि जग मुवा पंडित भया न कोई ।
एकै आखिर पीव का पढै सो पंडित होई ।।
ओशो कहते हैं - जो एक बार समग्र श्रद्धा और संकल्प और समर्पण से यात्रा शुरू करता है-भटकता नहीं, रास्ता मिल ही जाता है। ऐसे रास्तों पर उतारने वाले का नाम संतपुरुष, सद्गुरु है। कबीर दास ऐसे ही संत और सद्गुरू हैं।
इनका रास्ता बड़ा सीधा और साफ है। बहुत कम लोगों का रास्ता इतना सीधा-साफ होता है। टेढ़ी-मेढ़ी बातें कबीर को पसंद नहीं। इसलिए उनके रास्ते का नाम है: सहज योग। इतना सरल है कि भोलाभाला बच्चा भी चल जाए। पंडित न चल पाएगा। तथाकथित ज्ञान न चल पाएगा। निर्दोष चित्त होगा, कोरा कागज होगा तो चल पाएगा।
कबीर के संबंध में पहली बात समझ लेनी जरूरी है। यहां पांडित्य का कोई अर्थ नहीं है। कबीर खुद भी पंडित नहीं हैं।
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कबीर ने कहा है-
‘मसि कागद छूयौ नहीं, कलम नहीं गही हाथ’
-कागज-कलम से उनकी कोई पहचान नहीं है।
फिर कबीर ने कहा है-
‘लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात’-
अर्थात देखा है, वही कहा है। जो चखा है, वही कहा है। उधार नहीं है।
ओशो कहते हैं-
कबीर के वचन अनूठे हैं; जूठे जरा भी नहीं। और कबीर जैसा जगमगाता तारा मुश्किल से मिलता है। संतों में कबीर के मुकाबले कोई और नहीं। सभी संत प्यारे और सुंदर हैं। सभी संत अदभुत हैं; मगर कबीर अदभुतों में भी अदभुत हैं, बेजोड़ हैं। कबीर की सब से बड़ी अद्वितीयता तो यही है कि जरा भी उधार नहीं है। अपने ही स्वानुभव से कहा है। इसलिए रास्ता सीधा-साफ है; सुथरा है। और चूंकि कबीर पंडित नहीं हैं, इसलिए सिद्धांतों में उलझने का कोई उपाय भी नहीं था। बड़े-बड़े शब्दों का उपयोग कबीर नहीं करते। छोटे-छोटे शब्द हैं जो सभी की समझ में आ सकें।
लेकिन उन छोटे-छोटे शब्दों से ऐसा मंदिर चुना है कबीर ने, कि ताजमहल फीका है। जो एक बार कबीर के प्रेम में पड़ गया, फिर उसे कोई संत न जंचेगा। और अगर जंचेगा भी तो इसलिए कि कबीर की ही भनक सुनाई पड़ेगी। कबीर को जिसने पहचाना, फिर वह शक्ल भूलेगी नहीं। हजारों संत हुए हैं, लेकिन वे सब ऐसे लगते हैं, जैसे कबीर के प्रतिबिंब। कबीर ऐसे लगते हैं, जैसे मूल। उन्होंने भी जान कर ही कहा है, औरों ने भी जानकर ही कहा है-लेकिन कबीर के कहने का अंदाजे बयां, कहने का ढंग, कहने की मस्ती बड़ी बेजोड़ है। ऐसा अभय और ऐसा साहस और ऐसा बगावती स्वर, किसी और का नहीं है।
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