यदि हम अध्यापक की दृष्टि से देखें तो किसान बुद्धिहीन है, क्योंकि वह साहित्य के बारे में कुछ भी नहीं जानता, लेकिन यदि हम किसान की परीक्षा खेती के विषयों को लेकर की जाए तो यहां अध्यापक बुद्धिहीन हो जाते हैं क्यों कि उनके पास खेती के बारे में वह जानकारी व अनुभव नहीं होगा जो किसान के पास है। वकील की दृष्टि में अध्यापक मूर्ख हैं, डॉक्टर की दृष्टि में वकील मूर्ख या बुद्धिहीन हैं। सभी की योग्यताएं और विषय अलग-अलग हैं। जब दो व्यक्ति एक ही Subject पर समान योग्यता रखते हैं तो वह एक-दूसरे को बुद्धिमान मान लेते हैं। यही दृष्टिकोण बच्चों को लेकर भी है। जो सही नहीं है।
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आप सभी को 'तारे जमीं पर' का ईशान अवस्थी तो याद ही होगा? वह पढाई में अच्छे अंक नहीं ला पाया तो उसे परिवार और अध्यापकों द्वारा बिल्कुल ही बुद्धिहीन मान लिया गया। जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। सभी ने यह फिल्म में देखा भी। वह एक प्रतिभाशाली, बुद्धिमान और अकल्पनीय बालक निकला जिसने अपनी काबिलियत, सभी के सामने साबित भी की। ऐसे ही होते हैं बच्चे, अपने में ही मग्न। इसलिए यदि बच्चे पढाई में अच्छा स्कोर नहीं कर पा रहे हैं तो उन्हें बुद्धू या नकारा मान लेना ठीक नहीं है। ईश्वर ने किसी को भी बुद्धिहीन नहीं बनाया है। हर मनुष्य को किसी न किसी रूप में अलग बनाया है। कोई खेल में अच्छा है तो कोई पढाई में, तो किसी को कम्प्यूटर की बारीकियां अच्छे से और जल्दी समझ में आ जाती हैं। कहने का अर्थ यह है कि किसी को भी बुद्धु मानना या कहना सही नहीं है।
यदि हम अध्यापक की दृष्टि से देखें तो किसान बुद्धिहीन है, क्योंकि वह साहित्य के बारे में कुछ भी नहीं जानता, लेकिन यदि हम किसान की परीक्षा खेती के विषयों को लेकर करें तो यहां अध्यापक बुद्धिहीन हो जाते हैं क्योंकि उनक पास खेती के बारे में वह जानकारी व अनुभव नहीं होगा जो किसान के पास है। वकील की दृष्टि में अध्यापक मूर्ख हैं, डॉक्टर की दृष्टि में वकील मूर्ख या बुद्धिहीन हैं। सभी की योग्यताएं और विषय अलग-अलग हैं। जब दो व्यक्ति एक एक ही Subject पर योग्यता रखते हैं तो वह एक-दूसरे को बुद्धिमान मान लेते हैं। यही दृष्टिकोण बच्चों को लेकर भी है। बच्चों का Interest उन्हीं Subject में हो जिनमें माता-पिता का है यह आवश्यक नहीं। बच्चे हमेशा उन्हीं Subject में अच्छे Marks लाते हैं जिनमें उनका Interest होता है। यदि वह अच्छे Marks नहीं लाये या class में Top नहीं कर पा रहे हैं तो वह योग्य नहीं हैं यह सोचना बच्चों के साथ अन्याय है। हमें बच्चों के Talent और Interest को पहचानना चाहिए। उसी आधार पर हमें भविष्य की नींव रखनी चाहिए।
हर मनुष्य को ईश्वर ने सोचने-समझने की ताकत दी है। आज के बच्चों पर पढाई का बहुत ही दवाब है। जोकि बिल्कुल भी सही नहीं है। पढाई और अन्य परेशानियों को लेकर हमें बच्चों से बात करनी चाहिए जिन्हें बच्चा अकेले ही face कर रहा है। यदि हम बच्चों से बात करेंगे उन्हें प्रोत्साहित करेंगे तो उनके अंदर का talent निखर कर सामने आयेगा।
आइये हम चर्चा करते हैं कि हैं कि हम अपने बच्चों की मदद कैसे कर सकते हैं जिससे वह हर क्षेत्र में स्वयं को full confidence के साथ बेहतर position कायम रख सकें।
वैसे तो बच्चों में बचपन से ही संस्कार पड जाने चाहिए क्योंकि बचपन में सीखी गई चीजें और डाली गई आदतें उम्र भर रहती हैं और बच्चा आसानी से सीख भी जाता है। जैसे बरसात के मौसम में डाले गये बीज, बिना मेहनत के ही फल दे देते हैं यदि मौसम के बाद बीज डाले जायें तो हमें पानी खाद्य की व्यवस्था और अतिरिक्त परीश्रम भी करना पडता है। किन्तु असंभव कुछ भी नहीं है।
कुछ सुझाव:
एकाग्रता (Concentrate): बच्चे क्या, सभी का मन चंचल होता है। किन्तु यदि स्वभाव में एकाग्रता (Concentrate) आ जाये तो बडे से बडे लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। एकाग्रता (Concentrate) के कारण ही हमें अपना लक्ष्य दिखाई दे पाता है। जैसे महाभारत में अर्जुन को ही केवल मछली की आंख नजर आई थी, बाकी सभी को मछली आदि वस्तुएं नजर आई थीं। एकाग्रता के लिए बच्चों की रूचि के अनुसार विषय चुनकर उसके लिए उन्हें अलग से समय देना चाहिए। जैसे डांस, संगीत, कला, पाककला आदि। इसके अतिरिक्त बच्चों को नियमित योगासन व ध्यान आदि का अभ्यास करायें, किन्तु एकाग्रता के लिए यह बहुत ही अच्छा है। यदि संभव हो तो बच्चों की योगा की क्लास आदि में भेजें या फिर बच्चों का एक ग्रुप बनाकर, बच्चों को योगाचार्य द्वारा अभ्यास करायें।
अनुशासन Discipline: बडे हों या बच्चे हों, सभी के लिए जीवन में अनुशासन का होना बेहद आवश्यक है। अनुशासन से Time management में मदद मिलती है, दूसरे, हम अधिक से अधिक कार्य कर पाते हैं। इसलिए आरम्भ से ही बच्चों में अनुशासन की आदत डालें। स्वयं भी प्रयास करें कि अनुशासन का अनुसरण कर सकें, क्योंकि बच्चे जो देखते हैं वही करते हैं।
एकाग्रता (Concentrate) का संबंध रूचि (Interest) से भी है। रूखे और अरूचिपूर्ण विषयों में बच्चों का मन नहीं लगता। बच्चों को Geometry और Mathematics आदि विषयों में कम ही मन लगा पाते हैं। इसलिए सर्वप्रथम बच्चों एकाग्रता (Concentrate) लाने के लिए बच्चों को पढाने की शुरूआत रूचिकर विषयों से करें। बच्चों को नियमित रूप से योगासनों का अभ्यास करायें। मन पसंद खेल व कार्यों के लिए बच्चों को पर्याप्त समय दें। बच्चों को पढाने और समझाने की प्रक्रिया को रूचि कर बनायें। मार-मारकर किसी को भी पढाया या सिखाया नहीं जा सकता। Study से पहले उन्हें लक्ष्य के बारे में अच्छे से समझायें। बच्चों को अच्छे-अच्छे उदाहरण देकर, सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं से अवगत करायें। जिससे बच्चा खुशी-खुशी और सकारात्मकता की कल्पना में खो जाये जिससे बच्चे का Study कोई Boring काम न लगे। सुन्दर भविष्य की कल्पना, बच्चे में उत्साह भर देती है और उत्साह और एकाग्रता सफलता के सारे दरवाजे खोल देती है।
जिज्ञासा: जिज्ञासा, का अर्थ है, जानकारी प्राप्त करने की इच्छा। शिक्षा और ज्ञानोपार्जन की यह पहली सीढी है। जिसके मन में कुछ सीखने की इच्छा होती है वह ओरों के मुकाबले जल्दी सीख पाता है। मन और मस्तिष्क का यह एक चुंबकीय गुण है। इसलिए बच्चों में पहले कुछ सीखने के लिए प्रोत्साहित करें। बच्चों में जितना अधिक जिज्ञासा होगी वह उतना अधिक सीख सकेंगे। जैसे नदी में जल तो अथाह होता है किन्तु जितना बर्तन अधिक बडा होता है वह उतना अधिक जल ले पाता है।
संगति: जिन लोगों के साथ हम रहते हैं उनका पूरा प्रभाव हमारे ऊपर पडता है। जैसी हमारी या बच्चों की संगति होती है बुद्धि का विकास भी वैसा ही होता है। हमारी सोच भी वैसी ही हो जाती है। हम गुप्त रूप से संगति की लहरों से प्रभावित होते हैं। और हम या बच्चे उसी सांचे में जाने-अनजाने ढलने लगते हैं। इसलिए अपनी हो या बच्चों की, संगति अच्छी ही रखें। ऐसे लोगों में उठे-बैठे जो आपको सकारात्मक ऊर्जा दे। आपकी सोच को बेहतर करे।
प्रोत्साहन: किसी को भी आगे बढाने में प्रोत्साहन की अहम भूमिका है। प्रोत्साहन से भरी बातें मनुष्य पर जादू सा असर करती हैं। इसलिए बच्चों को हमेशा ही प्रोत्साहित करें। नुक्ताचीनी न करें। औरों का उदाहरण देकर, बुरा-भला कहकर हम बच्चों को मनोबल तोडते हैं। प्रोत्साहन में असीम शक्ति होती है। दयानंद सरस्वती के गुरू अंधे थे, किन्तु उनके प्रोत्साहन और शिक्षा से दयानन्द सरस्वती जी एक महान संत और समाज सुधारक हुए। संबंधित व्यक्ति के गुणों की प्रशंसा से मन प्रसन्न होता है और प्रोत्साहन मिलता है।
बेहतर स्वास्थ्य: बच्चों का स्वस्थ होना बेहद ही आवश्यक है। यदि बच्चा स्वस्थ होगा तभी हम उपरोक्त परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर सकते है। बेहतर स्वास्थ्य के लिए बच्चों को पौष्टिक भोजन दें। उन्हें बाहर के पैक्ड फूड और जंक-फूड से दूर रखें। फल-सब्जियों बच्चों को नियमित रूप से खिलायें। मानसिक शक्ति प्रदान करने के लिए बच्चों को नियमित रूप से सुबह खाली पेट सर्वप्रथम 4-5 बादाम अवश्य खाने को दें। उसके बाद ही कुछ खिलायें। सुबह बच्चों को भरपेट भोजन करायें।
स्मरण शक्ति: स्मरण शक्ति की कमी एक मानसिक अपूर्णता है। प्रतिदिन हम जो ज्ञान अर्जित करते हैं उसकी रेखाएं हमारे मस्तिष्क पटल पर अंकित होती रहती हैं। हमारे मस्तिष्क में असंख्य सूक्ष्म परमाणु हैं जिनके कोष अधिक संजीव व चैतन्य होते हैं उनकी रेखाएं स्पष्ट और गहरी होती हैं। कहने का अर्थ यह है कि जिन घटनाओं में हम रूचि लेते हैं वह हमारे मस्तिष्क को याद रह जाती हैं, बाकी हम भूल जाते हैं। अध्ययन के दौरान हम जिन विषयों में रूचि नहीं दिखाते वह हमारे मस्तिष्क में सुप्त दशा में पडी रहती हैं। वह हमारी चेतना तक नहीं पहुंचतीं। स्मरण शक्ति को बेहतर बनाने के लिए संबंधित विषयों का बच्चों का बार-बार अभ्यास करायें और विषयों को रूचि कर बनायें।
बच्चों के संपूर्ण विकास और व्यक्तित्व विकास के लिए बच्चों को नियमित रूप से आकाश मुद्रा और पृथ्वी मुद्रा का अभ्यास करायें।
इस मुद्राओं के नियमित अभ्यास से बच्चों की पाचन शक्ति अच्छी होगी, बच्चों का मन प्रसन्न रहेगा। बच्चे उत्साहवादी रहेंगे। बच्चों में ठहराव और एकाग्रता आएगी।
इसके अतिरक्त बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए बच्चों के साथ दोस्त बनकर हल्के फुल्के लहजे में बात करें, न कि हर समय यह जतायें कि उन्हें आप हर समय यह याद दिलायें कि हम तुम्हारे पैरेंट्स हैं। आपके अच्छे व्यवहार से बच्चा आपके सामने अपनी हर परेशानी और बात खोलकर रख देगा।
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