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Vimla Sharma

पत्नी के सहयोग को नकारा नहीं जा सकता | Wife's support can't be denied

Updated: Jun 24, 2022




पुरूष और स्‍त्री एक-दूसरे के बगैर कुछ भी नहीं हैं। शक्ति (स्‍त्री), शिव की अभिभाज्य अंग हैं। अभिभाज्‍य का अर्थ है जिन्‍हें अलग नहीं किया जा सकता। शिव, नर के प्रतीक हैं। वे एक दूसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। पुरूष की सोच है कि वह स्‍वयं में संपूर्ण है। उसे किसी की आवश्‍यकता नहीं है। यह पुरूष का अहंकार ही है कि वह स्‍त्री के केवल अपने आधीन और आश्रित रखने में गर्व महसूस करता है। किन्‍तु सच्‍चाई यह है कि उसका अस्तित्‍व ही स्‍त्री से है।


सृष्टि के निर्माण के लिए भगवान शंकर ने स्‍वयं से अपनी शक्ति को स्वयं अलग किया। शिव स्वयं, पुल्लिंग के तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग के प्रतीक हैं । पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) हैं। अर्धनरनारीश्वर शिव और शक्ति का ही रूप हैं। जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनाएँ अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। काफी विचार करने के पश्‍चात ब्रह्मा जी भगवान शिव की शरण में गये। सृष्टि के निर्माण में ब्रह्मा जी के समक्ष जो समस्या थी उसके के समाधान के लिए भगवान शिव, अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रगट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा अर्थात शक्ति। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के समान महत्व का भी उपदेश दिया।



कहने का तात्‍पर्य यह है कि पुरूष और स्‍त्री एक-दूसरे के बगैर कुछ भी नहीं हैं।

शक्ति (स्‍त्री), शिव की अभिभाज्य अंग हैं। अभिभाज्‍य का अर्थ है जिन्‍हें अलग नहीं किया जा सकता। शिव, नर के प्रतीक हैं। वे एक दूसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं, अर्थात शिव जो भी संकल्‍प करते हैं उन्‍हें शक्ति ही सिद्ध करती हैं। साधारण शब्‍दों में पूरा करती हैं।



आज के समय में सभी की सोच और नजरिया बदल गया है। पुरूष की सोच है कि वह स्‍वयं में संपूर्ण है। उसे किसी की आवश्‍यकता नहीं है। यह पुरूष का अहंकार ही है कि वह स्‍त्री के केवल अपने आधीन और आश्रित रखने में गर्व महसूस करता है। किन्‍तु सच्‍चाई यह है कि उसका अस्तित्‍व ही स्‍त्री से है। हमारे ग्रंथों, पुराणों अथवा वेदों में कहीं नहीं लिखा कि स्‍त्री पैर की जूती है, वह कमजोर है, गुलाम है। अगर ऐसा होता तो मां शक्ति, नारी रूप में होती ही नहीं। नारी को हमारे धर्म में भी उच्‍च स्‍थान प्राप्‍त है।



नारी तुम श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में,

पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।

उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपनी कल्पना में नारी के प्रति इतने गहरे प्रेम में डूब जाता है कि वह नारी केवल नारी नहीं रह जाती, वह आराध्या हो जाती है। 'यत्र नारी पूज्यंते---' इस तरह के शब्द तो केवल भारतीय संस्कृति में जन्मते हैं। भारत के बाहर नारी की इतनी स्तुति, इतनी असीम प्रशंसा कभी नहीं हुई। पश्चिमी देशों में वह आराध्या नहीं, केवल भोग्या है। पश्चिमी बहुत भौतिकवादी हैं, इसलिए वहां नारी का एक ही अर्थ हैः भोग्या, ऐसी वस्तु जिसे भोगा जा सके। वहां उसे प्रेम उपलब्ध होता है वह बहुत ही निम्न स्तरीय है। वह 'काम' के आसपास घूमता है। वहां प्रेम, वासना का ही दूसरा रूप है ।



इसके विपरीत भारत में जो हुआ, वह यह था कि काव्य में, साहित्य में नारी पूज्या तो बनी रही, लेकिन यथार्थ में हमारी पुरुष प्रधान संरचना में वह पुरुष की दासी, छाया बनकर रह गयी। उसके सौंदर्य का गुणगान केवल फिल्मों में हुए या फिल्मी गीतों में हुए। यथार्थ में उसके साथ शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक सब तरह का बलात्कार होता रहा। घर की चारदीवारी में उसे सुरक्षा तो मिली, लेकिन कब्र जैसी। नारी को बाहर के पुरुष भेड़ियों से बचने के लिए पति के साथ सुरक्षा के दायरे में घर उसे ज्यादा सुरक्षित लगा। इसलिए उसके मानसिक ढांचे में सुरक्षा का भाव सर्वोपरि हो गया। यही कारण है भारतीय नारी आज भी अधिकतर परिवारों में प्रताडित हो रही है।



कहा जाता है कि शादी के बाद यदि पति-पत्नी एक दूसरे का साथ देते हैं तो उनका पारिवारिक जीवन सुखमय हो जाता है। जहां एक तरफ पति आर्थिक तौर पर अपने घर को मजबूत बनाता है, वहीं पत्नी, पति की ढाल बनकर उसे संभालकर रखती है। जब कभी अलग होने की स्थिति आती है तो पुरूष, पत्‍नी के सहयोग को भूल जाता है। उसकी मेहनत, वफादारी, परवाह को नकार देता है। ऐसे में अगर किसी वजह से दोनों एक-दूसरे से अलग होते हैं तो पत्नी का पति की प्रापर्टी में कुछ हिस्सा होना कितना गलत और कितना सही है, इस विषय को लेकर हर किसी के विचार और कारण हो सकते हैं-



कहा जाता है कि शादी के बाद यदि पति-पत्नी एक दूसरे का साथ देते हैं तो उनका पारिवारिक जीवन सुखमय हो जाता है। जहां एक तरफ पति आर्थिक तौर पर अपने घर को मजबूत बनाता है, वहीं पत्नी, पति की ढाल बनकर उसे और उसके घर को संभालकर रखती है। पत्नी के सहयोग को अनदेखा नहीं किया जा सकता।



कुछ समय पहले जेफ बेजॉस का उनकी पत्नी से तलाक हुआ। इस बात की चर्चा विश्व भर में हुई कि उन्हें जो राशि तलाक के बाद दी जानी है, वह वाकई सही है या नहीं। जेफ बेजॉस का अपनी पत्नी मेकेंजी बेजॉस को ऐमजॉन की कंपनी से कमाई हुई खुद की प्रापर्टी में से दोनों की आपसी सहमति अनुसार उचित शेयर देना चाहिए, क्योंकि जिस ऐमजॉन कंपनी की बदौलत वह इतना विख्यात एवं अमीर बने, उस कंपनी की उम्र उसके विवाहित जीवन से कम है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि उन्होंने इस दौरान पूरी तरह से बिना किसी मानसिक व्यवधान के ऐमजॉन कंपनी के विकास में अपना ध्यान लगाया। उनकी पत्नी मेकेंजी बेजॉस ने अपने खुद के करियर का त्याग कर, उन्हें पूर्ण सहयोग और बैंक सपोर्ट दिया। एक-दूसरे को पूर्ण सपोर्ट देकर वैवाहिक जिंदगी एक साथ बिताई। अगर किसी वजह से दोनों एक-दूसरे से अलग होते हैं तो अपने इस साथ के बदले में पत्नी का पति की प्रापर्टी में हिस्सा होना ही चाहिए।



हर कामयाब आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है।

हर कामयाब आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है। यह कहावत हम सभी बचपन से सुनते आ रहे हैं। पत्नी जब सिर्फ अपने भविष्य के बारे में न सोचकर अपने पति और परिवार के बारे में सोचती है। त्याग भी करती है, तो एलिमनी को पति की प्रापर्टी हड़पना कहना गलत है। एलिमनी उस महिला का हक है, जिसने विभिन्न तरह से उस शख्स की कामयाब होने में सहायता की है। जब दोनों ने एक दूसरे का साथ दिया, पार्टनर की तरह काम किया, तो अलग होते समय महिला का एलिमनी का हक तो है ही।

समाज की विडंबना ही है-

जैक और मेकेंजी की शादी को 25 साल हो गए हैं और ऐमजॉन को 24 साल। इससे एक बात तो साफ है कि ऐमजॉन के मालिक जेफ और मेकेजी दोनों समान रूप से हैं। एक कामयाब आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है। यह हमारे समाज की विडंबना ही है कि आज के समाज में औरत आदमी के कंधे से कंधा मिलाकर चलती है, लेकिन हमारा समाज आज भी औरत को आदमी जितना दर्जा नहीं दे पाता।

यह बिल्‍कुल आवश्‍यक नहीं कि जो महिला, पुरूष को आर्थिक रूप से सहयोग कर रही है वही सहयोग है। महिला के किसी के रूप और सहयोग को नकारा नहीं जा सकता। महिला निम्‍न रूपों में परिवार और समाज के लिए अनिवार्य है। वह प्रसव पीडा के दौरान मौत से खेलकर वंश को आगे बढाती है, वह जिस घर में पैदा हुई जिन लोगों के साथ खेलकर बडी हुई उन्‍हें पीछे छोडकर दूसरे परिवार में आती है वहां अपनी नई पहचान के साथ जीती है, उसका अस्तित्‍व ही खो जाता है। वह घर की नींव होती है। जिस घर में वह आती है उस घर की तरक्‍की और विकास के लिए अपना जीवन लगा देती है, लेकिन अशिक्षा, रूढिवादी सोच और सामाजिक कुरीतियों के कारण उसके साथ यहां दुर्व्‍यवहार होना कोई नई बात नहीं है। उसके सहयोग, प्‍यार को भुलाकर उसे कभी भी बाहर का रास्‍ता दिखा दिया जाता है। कोई किरायेदार यदि किसी मकान में 11 महीने से अधिक रह जाता है तो उसे लगभग मालिकाना हक मिल जाता है लेकिन एक लडकी या महिला का कोई अपना घर नहीं होता। कानूनी तौर पर अनेकों कानून बनाये गये हैं जो उसे इंसाफ दिला सकें, लेकिन वहां तक कितनी महिला पहुंच पाती हैं। यदि कोई हिम्‍म्‍त करके पहुंच भी जाती हैं तो उसे ही गलत ठहराया जाता है।



आज के समाज में जब तक औरत अपनी लड़ाई, खुद नहीं लड़ती, तब तक अपना हक हासिल नहीं कर सकती। अपनी लडाई लडते समय औरत को केवल अपने साथ हुई ज्‍या‍दतियों से ही नहीं लडना पडता, बल्कि समाज, परिवार की सोच से भी लडना पडता है। यह लडाई उसके लिए आसान नहीं होती।

समाज में एक औरत को बराबरी का हक मिलना चाहिए, हमारे समाज में एक औरत के साथ जो व्‍यवहार हो रहा है वह हमारे समाज की कुरीतियां हैं जो इनके रहते एक स्‍वस्‍थ समाज की कल्‍पना भी नहीं की जा सकती।



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