यह कैंसर सर्वप्रथम असामान्य तरीके से प्रीकैंसरस सेल्स के रूप में विकसित होता है। प्रीकैंसरस सेल्स को वास्तविक कैंसर की कोशिकाओं में विकसित होने में लगभग 10 वर्ष का समय लग सकता है। ये कैंसर कोशिकाएं गर्भाश्य की मांसपेशियों, आसपास के टिश्यूज और शरीर के अन्य भागों में फैल जाती हैं। इस कैंसर के कई कारण हो सकते हैं जैसे- समय से पहले पीरियडस होना, कम उम्र में विवाह या सैक्स या गर्भवती होना, कई लोगों के साथ शारीरिक संबंध होना, धूम्रपान अधिक करना और संतुलित भोजन न करना आदि।
आज के समय में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी होना, आम बात हो गई। जिनमें महिलाओं में होने वाले ब्रेस्ट कैंसर और सर्वाइकल कैंसर की संख्या अधिक है। कहने का तात्पर्य यह है हर तीसरी महिला कैंसर से ग्रसित है। जिनमें भारतीय महिलाओं की संख्या अधिक है। इसके भी कई कारण हैं। जिनकी हम चर्चा करेंगे।
वास्तव में कैंसर क्या है?
‘कैंसर’ शब्द ग्रीक भाषा लिया गया है। ‘कैंसर’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है।
कन + सर = कैंसर।
ग्रीक भाषा में ‘कन’ का अर्थ है- केकडा तथा ‘सर’ का अर्थ है- जड। केकडा एक जीव है जो जल में रहता है। इसके अजीब से पंजे होते हैं। जब एक्सरे मशीन से मरीज का निरीक्षण करते हैं तो शरीर में कैंसर के पनपने वाले जंतु कुछ केकडे जैसे ही प्रतीत होते हैं इसलिए इसे कैंसर कहते हैं। जिस प्रकार केकडे के शरीर में चारों ओर पैर फैले होते हैं वैसे ही कैंसर ग्रंथि के चारों ओर तंतु स्नायु का जाल सा होता है।
कैंसर, कोशिकाओं अथवा ऊतकों में विकृति के कारण ही उत्पन्न होता है। शरीर के जिस भाग में कैंसर होता है, वहां पहले ट्यूमर या गांठ उत्पन्न होती है। गांठ पककर फूट जाती है, यह वह स्थिति है जब चिकित्सा करके कैंसर होने से बचाया जा सकता है, बाद में यह कैंसर का रूप ले लेती हैं।
आयुर्वेद में एंजाइम को अग्नि कहा गया है। शरीर में तेरह प्रकार की अग्नि पाई जाती हैं। जब इन अग्नि में विषतमता आ जाती है तो कैंसर होता है। भारतीय चिकित्सा पद्धति में ऋषि-मुनियों ने कोशिकाओं और धातुओं को नियंत्रित करने के लिए धातु की अग्नि को जिम्मेदार माना है।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति में भी डीएनए की विकृति के लिए एंजाइम को जिम्मेवार माना है। एंजाइम और धातु अग्नि दोनों का अर्थ एक ही है।
सर्वाइकल कैंसर अधिकतर महिलाओं में हो रहा है। 40 वर्ष के बाद इसकी संभावना और अधिक बढ जाती है। भारतीय महिलाएं सबसे अधिक सर्वाइकल के कैंसर से ग्रसित हैं। इस कैंसर में महिलाओं को माहवारी के दौरान रक्तस्राव अधिक होता है। इस कैंसर के कोई पूर्व लक्षण नहीं हैं जिससे उन्हें अहसास हो सके कि उन्हें सर्वाइकल कैंसर हो गया है। इसलिए महिलाओं को अपनी नियमित रूप से जांच करवाते रहना चाहिए। जिससे इस बीमारी से स्वयं को बचा सकें।
जिन महिलाओं का इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर है और उम्र चालीस के आसपास है तो उन्हें सर्वाइकल कैंसर होने की संभावना अधिक होती है। पैप स्मीयर टेस्ट से कैंसर का पता चल जाता है। आमतौर पर लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी के द्वारा सर्विक्स, ओवरी और गर्भाशय से संबंधित कैंसर का इलाज किया जा सकता है। किन्तु यह तकनीक अभी पूरी तरह कामयाब नहीं है। अब सर्वाइकल कैंसर में रोबोटिक सर्जरी को प्रयोग होने लगा है। इसके अलावा वैक्सीन भी अब उपलब्ध है।
क्या है सर्वाइकल कैंसर?
गर्भाश्य ग्रीवा, गर्भाश्य का ही हिस्सा है। गर्भाश्य विशेष प्रकार की मांसपेशियों से घिरा होता है। यह सतह की कोशिकाओं की एक पतली परत से ढका होता है। जो कि सेल्स से बनी होती होती हैं। सतह की कोशिकाओं में ही गर्भाश्य का कैंसर विकसित होता है। यह कैंसर सर्वप्रथम असामान्य तरीके से प्रीकैंसरस सेल्स के रूप में विकसित होता है। प्रीकैंसरस सेल्स को वास्तविक कैंसर की कोशिकाओं में विकसित होने में लगभग 10 वर्ष का समय लग सकता है। ये कैंसर कोशिकाएं गर्भाश्य की मांसपेशियों, आसपास के टिश्यूज और शरीर के अन्य भागों में फैल जाती हैं। इस कैंसर के कई कारण हो सकते हैं जैसे- समय से पहले पीरियडस होना, कम उम्र में विवाह या सैक्स या गर्भवती होना, कई लोगों के साथ शारीरिक संबंध होना, धूम्रपान अधिक करना और संतुलित भोजन करना आदि। उपरोक्त सभी कारण कैंसर के जोखिम को बढा देते है।
सर्वाइकल कैंसर के लक्षण
पेट के निचले हिस्से में दर्द
अगर आपकी पेशाब की थैली यानि पेट के निचले हिस्से में दर्द हो रहा है, तो यह इस कैंसर का एक लक्षण है। उसके साथ ही पीरियड्स के बीच में स्पॉटिंग या संबन्ध बनाने के बाद ब्लीडिंग होना भी इसका एक लक्षण है।
पेट फूलना
पीरियड्स, अधिक खाना खाने और पानी पीये बिना अंदर आपका पेट लगातार 15 दिन या फिर एक महीना फूला रहता है, तो यह भी सर्वाइकल कैंसर का ही एक लक्षण है।
अन्य लक्षण
भूख न लगना
वजन कम होना
थकान महसूस होना
एनीमिया
बोन फ्रैक्चर आदि होते रहते है
रेडियो थैरेपी के द्वारा उपचार
रेडियोथैरेपी में रेडियो किरणें कैंसर की कोशिकाओं से संपर्क स्थापित करती है। उससे कैंसर स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। क्योंकि उनमें स्वस्थ कोशिकाओं की तरह रेडिएशन सहन करने की क्षमता नहीं होती। यदि रेडियो थैरेपी की कुल मात्रा को आधुनिक तकनीक से जोड़ दिया जाये तो सामान्य कोशिकाओं में रेडिएशन का प्रभाव कम से कम और कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं में ज्यादा से ज्यादा होता है। उस थैरेपी में लगने वाला समय प्रति दिन दो मिनट से बीस मिनट तक होता है। यह उपचार कई सप्ताह तक चलता है।
कैंसर ग्रस्त ट्यूमर की गांठ को शुरूआत में ही रेडियो थैरेपी के द्वारा जड़ से नष्ट किया जा सकता है।
आधुनिक रेडियो थैरेपी की विभिन्न विधियां हैं, जिसका इस्तेमाल कैंसर ग्रस्त व्यक्ति की अवस्था के अनुसार किया जा सकता है। इमेज गाइडेड रेडियो थैरेपी (आईजीआरटी) में सबसे पहले रोगी के कैंसर ग्रस्त भाग का थ्री डी फोटो ली जाती है, फिर उस भाग पर केवल उन्हीं कोशिकाओं पर रेडिएशन केन्द्रित किया जाता है, जो कैंसर ग्रस्त होती हैं। इस प्रक्रिया में स्वस्थ कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं होता। आईएमआरटी तकनीक में कैंसर की गंभीरता को समझते हुए एक सुनिश्चित किया जाता है कि रोगी को किस तीव्रता का रेडिएशन की आवश्यकता है। उसके बाद ही कैंसरग्रस्त भाग पर रेडिएशन फोकस किया जाता है।
कैंसर के उपचार में कीमोथैरेपी कितनी सुरक्षित है?
कीमोथैरेपी से डर जायज है? कैंसर का उपचार काफी दर्द भरा होता है यह सोचकर कैंसर के अनेक रोगी कीमोथैरेपी द्वारा उपचार से डरते हैं। किन्तु अब ऐसा नहीं है। आधुनिक चिकित्सा में प्रगति के कारण अब दर्द रहित नई-नई तकनीक आ रही हैं।
कीमोथैरेपी को एक प्रकार विषैला उपचार कहा जाता है। फिर कैंसर भी तो जहर के समान ही है। जहर को जहर ही से ही मारा जा सकता है। इसी तकनीकि को कीमोथैरेपी कहते हैं। कीमोथैरेपी के अंतर्गत, कैंसर की कोशिकाओं को मारने वाली दवाइयां दी जाती हैं। ये दवाइयां एक प्रकार का ज़हर ही होती हैं। इन दवाइयों का मरीज पर कुप्रभाव भी पडने लगता है। यही कारण है कि कैंसर के अधिकतर रोगी कीमोथैरेपी से डरते हैं। लेकिन अब तकनीकि काफी विकसित हो चुकी है इसलिए डरने का कोई कारण नहीं है। अब कोशिकाओं पर बिना किसी दुष्प्रभाव के चौतरफा हमला करना संभव हो गया है। इससे पहले कीमोथैरेपी में लगातार उल्टियां आती थीं। शरीर में खून की कमी हो जाती थी। त्वचा काली पड़ जाती थी। संक्रमण का खतरा भी बना रहता था। लेकिन अब चिंता की कोई बात नहीं है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के द्वारा अब इन परेशानियों से छुटकारा मिल चुका है। तकनीकि को और अधिक विकसति करने के लिए लगातार शोध जारी हैं।
हम्यूमैन पैपीलोमा वाइरस [human papilloma virus (HPV)] से बचाव करना जरुरी होता है। इससे बचाव के लिए तथा सर्वाइकल कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचाव के लिए 2 वैक्सीन उपलब्ध है। जो कि आपकी लाइफटाइम सुरक्षा करती है। किन्तु यह केवल उन महिलाओं और किशोरियों को दिया जा सकती है, जिनकी उम्र 30 साल से कम है या और जो एक से अधिक लोगों से स्थापित करती हो। इस वैक्सीन से 70 फीसदी तक बचाव किया जा सकता है।
जैसा कि हम जानते ही हैं कि यह कैंसर भारतीय महिलाओं में अधिक हो रहा है। इसके कई कारण हैं। इसका सर्वप्रथम कारण है साफ-सफाई का अभाव, अशिक्षा, अंधविश्वास, असंतुलित भोजन। यह समस्या कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि हमारे प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने लालकिले की प्राचीर से सैनेटरी नैपकिन का जिक्र भी किया था। भारतीय समाज में महिलाओं में इस प्रक्रिया को अलग नजरिये से देखा जाता है, इसके कारण कई हैं किन्तु महिलाएं, किशोरियां माहवारी आदि से संबंधित परेशानी का जिक्र परिवार में खुलकर नहीं कर पातीं और यौन संबंधी अनेक बीमारियों से ग्रसित हो जाती हैं।
कैैंसर जैसी भयानक बीमारियों से बचने के लिए हमें अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाना चाहिए। यदि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है तो हम अनेक बीमारियों से बचे रह सकेंगे। इसे इम्यूनिटी सिस्टम भी कहते हैं। यह शब्द आपने कई बार सुना भी होगा। यह सिस्टम शरीर की रोगों से लडने आंतरिक क्षमता होती है। इसे बढाने के अनेक उपाय हैं जो हमें अवश्य करने चाहिए। एक प्रकार से इम्यूनिटी सिस्टम हमारे शरीर की आर्मी है। यह दो प्रकार की होती है। पहली जेनेटिक तथा दूसरी एक्वॉयर्ड।
जेनेटिक इम्यूनिटी शरीर में स्वयं ही मौजूद होती है। यह हमारे शरीर क भीतरी अंगों से लडने की क्षमता रखती है। यह एंटी बॉडीज, शिशु को गर्भावस्था के दौरान अपनी मां से मिलते हैं। जन्म के पश्चात मां के दूध के द्वारा शिशु तक पहुंचते हैं।
एक्वॉयर्ड इम्यूनिटी में बैक्टीरिया और वायरस से लडने के लिए शरीर के भीतर इम्यूनिटी होती है। बीमारी होने की स्थिति में दवाइयों के द्वारा इसे बढाया जाता है।
एंटीऑक्सीडेंट शरीर में इम्यूनिटी को बढाने में मदद करते हैं। शरीर में बैक्टीरिया और वायरस ऑक्सीडेशन की प्रक्रिया को बढाते हैं। आप एंटीऑक्सीडेंट को अलग-अलग प्रकार के फलों, सब्जियों, नट्स, साबुत अनाज, चाय और रेड वाइन आदि से प्राप्त कर सकते हैं। सेब, अंगूर, मौसमी, ब्लेकबेरी, बलू बेरी ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिनमें एंटीऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
इसके अतिरिक्त बच्चों और बुर्जुगों को समय पर वैक्सीन अवश्य दिलायें। हमेशा स्वस्थ जीवन शैली अपनाएं। शरीर को मजबूत बनाने का प्रयास करें। समय पर भोजन करें। पौष्टिक भोजन करें। कम से कम सात घंटे की नींद अवश्य लें। इसके अलावा चाय, कॉफी और अल्कोहल का सेवन न करें। कैंसर रोगियों को अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए
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