एंडोमेट्रियल कैंसर को ही गर्भाशय का कैंसर या बच्चेदानी का कैंसर भी कहा जाता है। कैंसर कोई भी हो, इंसान के लिए खतरनाक और जानलेवा होता है।
कैंसर एक जानलेवा बीमारी है किन्तु यदि समय से जांच आदि करा ली जायें तो समय से इलाज शुरू होने से जान जाने का खतरा काफी हद कम हो जाता है। आज तकनीकि चिकित्सा में इतनी तरक्की कर चुकी है कि अब यदि समय कैंसर की जानकारी हो जाये तो इलाज संभव है।
गर्भाशय की अंदरूनी परत को एंडोमेट्रियम कहते हैं। इसी एंडोमेट्रियम की कोशिकाएं जब असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं, तो ये एंडोमेट्रियल, कैंसर का कारण बनती हैं। एंडोमेट्रियल कैंसर खतरनाक है क्योंकि इसके कारण महिलाओं में मां बनने की क्षमता हमेशा के लिए खत्म हो सकती है। एंडोमेट्रियल कैंसर को ही गर्भाशय का कैंसर या बच्चेदानी का कैंसर भी कहा जाता है। कैंसर कोई भी हो, इंसान के लिए खतरनाक और जानलेवा होता है।
कैंसर एक जानलेवा बीमारी है किन्तु यदि समय से जांच आदि करा ली जायें तो समय से इलाज शुरू होने से जान जाने का खतरा काफी हद कम हो जाता है। आज तकनीकि चिकित्सा में इतनी तरक्की कर चुकी है कि अब यदि समय कैंसर की जानकारी हो जाये तो इलाज संभव है।
गर्भाशय के कैंसर की जांच की दिशा में बड़ी सफलता मिली है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मूत्र जांच के जरिये भी इस कैंसर का पता लग सकता है। यदि समय पर मूत्र जांच की जा सके तो कई महिलाओं की जिंदगी बचाई जा सकती है।
30 से 35 साल की उम्र की महिलाओं में यह सर्वाधिक होने वाला कैंसर है। इसकी जांच में प्री-कैंसर स्टेज का भी पता चलता है। बेहतर सुविधा कई जिंदगियां बचा सकती है। आंकड़े यह बताते हैं कि 70 में से एक महिला को गर्भाशय का कैंसर होता है।
कुछ महिलाओं को एंडोमेट्रियल कैंसर का खतरा सामान्य से ज्यादा होता है, जैसे-
ऐसी महिलाएं जो कभी प्रेगनेंट न हुई हों।
ऐसी महिलाएं जिनका 55 वर्ष की आयु के बाद मेनोपॉज होता है। ब्रेस्ट कैंसर के कारण कई बार गर्भाशय का कैंसर भी हो सकता है
ऐसी महिलाएं जिनके पीरियड्स 12 वर्ष की उम्र से पहले शुरू हो गए हों।
इसके अलावा पीसीओएस और डायबिटीज के कारण भी इस कैंसर का खतरा बढ़ जाता है
एंडोमेट्रियल कैंसर के लक्षण
एंडोमेट्रियल कैंसर के कई लक्षण आपको सामान्य लग सकते हैं। मगर यदि आपको ये लक्षण जल्दी-जल्दी दिखाई देते हैं, तो बिना देरी किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
असामान्य वेजाइनल डिसचार्ज
पीरियड्स के अलावा भी अचानक से ब्लीडिंग होती है या खून के अलावा योनि से किसी भी तरह का लिक्विड डिस्चार्ज हो रहा है, तो ये एंडोमेट्रियल कैंसर केे लक्षण हो सकते हैं। ऐसे में जांच करवाना आवश्यक है। इसके अलावा आपके पीरियड का चक्र लगातार बदल जाना, मेनोपॉज के बाद भी ब्लीडिंग होना भी एंडोमेट्रियल कैंसर के शुरुवाती लक्षण हैं।
पेल्विक यानी पेड़ू में दर्द होता है
कई महिलाओं को गर्भाशय का कैंसर होने पर अनियमित ब्लीडिंग और डिस्चार्ज के साथ पेड़ू या पेल्विक (जननांग से ऊपर का हिस्सा) में दर्द भी हो सकता है। कैंसर के कारण अगर गर्भाशय बढ़ जाता है तो इस हिस्से में दर्द और ऐंठन हो सकती है। अगर आपको ब्लीडिंग के साथ ऐसा दर्द महसूस होता है, लापरवाही खतरनाक हो सकती है। आपको चाहिए जितना जल्दी हो सके आप अपनी संपूर्ण जांच करवायें।
यदि लगातार बिना प्रयास वजन कम हो रहा है तो जांच करवायें। वजन का अचानक कम होना कई कारणों से हो सकता है, यदि उपरोक्त लक्षणों के साथ अचानक वजन घटने लगे तो अनदेखा न करें। ये एंडोमेट्रियल कैंसर का लक्षण हो सकता है। एंडोमेट्रियल कैंसर के कारण आपकी पेशाब जाने की आदतों में भी बदलाव आ सकता है। एंडोमेट्रियल कैंसर के दौरान आपको बार-बार पेशाब आना, या पेशाब करते वक्त दर्द का कारण एंडोमेट्रियल कैंसर ही होता है।
भारत में कुल कैंसर मरीजों का एक तिहाई हिस्सा गर्भाशय के कैंसर से पीडि़त है। 30 से 45 साल की उम्र की महिलाओं में ये खतरा ज्यादा होता है। देश में हर साल सवा लाख महिलाओं को बच्चेदानी का कैंसर होता है और इन में से 62 हजार की मौत हो जाती है। एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ के अनुसार ये बीमारी एचपीवी (ह्यूमन पौपीलोमा वायरस) से फैलती है। सही समय पर सही इलाज से इस वायरस को खत्म भी किया जा सकता है। लेकिन अगर अनदेखा की जाए तो यह गर्भाशय के कैंसर का कारण भी बन सकता है। इसलिए महिलाओं को 30 साल के बाद एचपीवी की जांच नियमित रूप से करवानी चाहिए। इस के अलावा कैंसर से बचाव के लिए बनाया गया टीका लगवाने से भी इस से काफी हद तक बचा जा सकता है। अक्सर देखा गया है कि महिलाओं में मोनोपाज के बाद ये लक्षण दिखने लगते है।
इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं?
इसका कारण माहवारी के समय होने वाला इंफेक्शन है। महिलाएं इस समय साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखती हैं, सैनटरी पैड का प्रयोग बढ़ा है लेकिन एक ही पैड का लंबे समय तक इस्तेमाल भी खतरनाक हो सकता है। कुछ दवाओं को जैसे गर्भनिरोधक गोलियों का प्रयोग भी इसका कारण है। दूसरा कारण, बार-बार गर्भधारण करना, कई लोगों के साथ शारीरिक संबंध या कम उम्र में शादी भी इसके कारण हो सकते हैं। टयूमर बनना, गर्भाशय के कैंसर का शुरुआती लक्षण ही है।
जो महिलाएं पीरियड्स के संक्रमण से गुजर रही हैं उनमें टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजेन हार्मोन का अधिक होना, गर्भाशय के कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है। ये बीमारी महिलाओं की अपेक्षा किशेारियों में भी देखी जा रही है इससे बचने के लिए वैक्सीन उपलब्ध है जिसे डॉक्टर की सलाह पर 3 डोज देकर उन्हें खतरे से बचाया जा सकता है। इसके साथ ही अगर महिलाओं को शरीर के किसी भी हिस्से में किसी भी तरह के बदलाव का पता चले या कोई परेशानी हो तो तुरंत जांच करानी चाहिए। लक्षण पेट में दर्द, थकान व कमजोरी होना। पीठ के निचले हिस्से में लगातार दर्द रहना। मोनोपाज के बाद अचानक ब्लीडिंग शुरू हो जाना। यूरिन के साथ खून आना, यूरिन पर बिल्कुल नियंत्रण न कर पाना। मल त्याग के समय दर्द होना, क्योंकि टयूमर के कारण छोटी आंत, पेट व मूत्रशय पर दबाव पड़ता है।
कैंसर किन परिस्थितियों में पैदा होता है?
कैंसर होने के वैसे तो अन्य कारण भी हो सकते हैैं किन्तु मुख्य कारण तो हमारा खान-पान और रोग-प्रतिरोधक क्षमता का कम होना ही है। अधिकतर सभी बीमारियां रोग-प्रतिरोधक क्षमता के कारण ही शरीर में प्रवेश कर पाती हैं। कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों के एक समूह ने पशुओं पर अनुसंधान करके पाया कि मानसिक तनाव से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। अंतस्रावी ग्रंथि प्रणाली और कोशिकाएं सभी दुर्बल हो जाती हैं। जब शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड जाती है तो मनुष्य द्वारा लिया गया भोजन और जीवन शैली में असावधानी बरतने पर शरीर में टयूमर व कैंसर जैसी भयानक बीमारियां पनपनी आरम्भ हो जाती हैं।
आधुनिक रिसर्च से यह सामने आया है कि मानसिक और भावनात्मक तनाव व दवाबों से हाइपोथेलेमस की प्रतिक्रिया से पिट्यूटरी ग्रंथि पर प्रभाव पडता हैा यह ग्रंथि सभी ग्रंथियों की नियंत्रक मानी जाती है। तनाव की स्थिति में पिट्यूटरी हार्मोन्स रक्तवाहिनियों में प्रभावित होते हैं। उससे शरीर की इन्डोक्राइन ग्रंथि पर कार्य का भार बढ जाता है। इसके साथ ही थायरॉयड, यौन ग्रंथि और एड्रिनल ग्रंथि के कार्टेक्स, जो वृक्क के ऊपर होते हैं एड्रिनल कार्टेक्स कार्टिकोस्टेराइड्स नामक पदार्थ रक्त वाहिनी में छोडते हैं। यह तनाव तंतुओं पर दुष्प्रभाव डालते हैं, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। दुर्बल और बीमार शरीर में कैंसर के कीटाणु आसानी से पनपना आरम्भ हो जाते हैं।
कैंसर में ध्यान की भूमिका
कैंसर में हुई आजतक की रिसर्च के अनुसार विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि रोगों को बढाने में तनाव मुख्य रूप से जिम्मेदार है जिसमें कैंसर भी शामिल है। ‘ध्यान मुद्रा’ से तनाव काफी हद तक दूर होता है। अत: यह कैंसर में काफी उपयोगी है। विशेषज्ञों ने ‘ध्यान मुद्रा’ को कैंसर के उपचार में उपयोगी माना है। मुद्राओं का विस्तृत वर्णन अपने अन्य लेख 'मुद्रा चिकित्सा' में किया है। किन्तु यह कितना उपयोगी है इस पर कहना कठिन है। लेकिन गहन ध्यान द्वारा कैंसर को रोका अवश्य जा सकता है। कैंसर का होना या होना मनुष्य की अपनी शारीरिक क्षमताओं और मानसिक स्थिरता पर निर्भर करता है। जो ‘ध्यान’ से स्वत: ही प्राप्त हो जाती है।
कैंसर में ऑक्सीजन की अहम भूमिका है। प्राणायाम द्वारा ऑक्सीजन की भूमिका का लाभ अवश्य उठाया जा सकता है। नाडी शोधन, भस्त्रिका और उज्जयी प्राणायाम के अभ्यास से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ जाती है, और शरीर में ऑक्सीजन की खपत भी नियंत्रित रहती है। योग के नियमित अभ्यास से इसके अलावा भी अन्य रोग जैसे अनिद्रा, मानसिक तनाव आदि काफी हद तक दूर हो सकते हैं।
कुंभक आसन शरीर में स्फूर्ति, शक्ति का संचार करता है। डिप्रेशन की समस्या दूर होती है। इंद्रियों पर आत्मनियंत्रण रहता है।
उज्जयी प्राणायाम से वीर्य का दोष दूर होता है, तिल्ली रोग में लाभदायक है। कफ का नाश होता है।
शीतली प्राणायाम में पित्त, कफ, अजीर्ण में उपयोगी यह प्राणायाम उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए काफी लाभकारी है।
भस्त्रिका मोटापा घटाने में लाभकारी है। यह उच्च रक्तचाप में भी उपयोगी है।
केवली या प्लावनी प्राणायाम करने मंदाग्नि तीव्र होती है। अयान प्राण वायु शुद्ध होती है। शरीर में फुर्ती और स्फूर्ति आती है। शरीर हल्का और स्वस्थ रहता है। मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है, आयु बढती है और ध्यान में दृढता आती है।
केवली या प्लावनी प्राणायाम करने की विधि: स्वच्छ तथा उपयुक्त वातावरण में पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन में बैठ जाएं और नाक के दोनों छिद्रों से वायु को धीरे-धीरे अंदर खींचकर फेफड़े समेत पेट में पूर्ण रूप से भर लें। इसके बाद क्षमता अनुसार श्वास को रोककर रखें। फिर दोनों नासिका छिद्रों से धीरे-धीरे श्वास छोड़ें अर्थात वायु को बाहर निकालें। इस क्रिया को अपनी क्षमता अनुसार कितनी भी बार कर सकते हैं।
रिसर्च के आधार पर यही निष्कर्ष निकलता है कि यदि मनुष्य अपना खान-पान, जीवन शैली ठीक रखे। योग आदि नियमित रूप से करे तो कैंसर जैसी भयानक बीमारियों से बचा जा सकता है। ताजे फल व सब्जियों का सेवन करें। पैक्ड फूड का प्रयोग बिल्कुल ही न करें। महिलाओं को चाहिए कि वह किसी भी उम्र में हों, यदि शरीर में कई ऐसे बदलाव हो रहे हैं जो नहीं होने चाहिए, जिनके कारण आप असहज महसूस कर रही हैं तो आप अपनी सभी जांच किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से शीघ्र ही करायें। आपकी लापरवाही आपके और आपके परिवार क लिए कई परेशानियों का सबब बन सकती है। कैंसर जानलेवा तभी हो सकताा है जब समय सेे पहले हम चिकित्सा नहीं लेते। 30 की उम्र के बाद महिलाओं को नियमित रूप से अपनी शारीरिक जांच अवश्य करानी चाहिए।
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