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Vimla Sharma

कॉलिक संक्रमण या शिशु का रोना? | COLIC INFECTION OR BABY CRYING?

Updated: Sep 16, 2021


बच्चे की इसी किलकारी के लिए माता-पिता क्या कर नहीं गुजरते। मां बनना एक सुखद अहसास है। इसके बिना एक औरत स्वयं को अधूरा ही समझती है। हर नवदम्पत्तियों को बच्चे की चाह होती है लेकिन जब वह माता-पिता बन जाते हैं तो शिशु की देखभाल करना एक बड़ी चिंता और जिम्मेदारी बन जाती है। मां बनने के साथ-साथ आपकी जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं। अनेकों सवाल होते हैं मन में कि कैसे होगा सब?

 

नवजात शिशु का रोना कोई नया या अचंभे की बात नहीं है। बच्चे को भूख लगती है तो रोता है, सू-सू आये या कपड़े गीले हो जाये तो रोता है। ऐसे कई छोटे-मोटे कारण हो सकते हैं जिनके कारण नवजात रोते हैं। नवजात शिशु के रोने पहले तो माता-पिता गंभीरता से नहीं लेते, यही अंदाजा लगा लिया जाता है कि नैपी आदि गीली होगी शायद इसलिए रो रहा है। क्योंकि नवजात शिशु का रोना कम्यूनिकेशन का एक सिस्टम भी है किन्तु यदि अधिक रोये या रोता ही रहे, तो लापरवाही बिल्कुल न करें। यदि बच्चा एक दिन में एक घंटे से अधिक रोता है तो आपको चिकित्सक को अवश्य दिखाना चाहिए। शिशु के अधिक रोने का कारण कॉलिक भी हो सकती है।



यह कॉलिक क्या है?

कॉलिक बच्चे की ऐसी स्थिति है जिसमें शिशु रोजाना 3 घंटे या फिर इससे अधिक समय तक रोता रहे। यह स्थिति हफ्ते में तीन दिन भी हो सकती है। यह या तो शिशु के पेट में दर्द होने की वजह से होती है या फिर एलर्जी की वजह से भी हो सकती है।

कॉलिक के कारणों से अभी शिशु विशेषज्ञ अनजान हैं। हालांकि सही कारणों का पता लगाने की कोशिश की जा रही है। जैसे कि आमतौर पर यह जन्म के पहले महीने में क्यों शुरू होता है? यह शिशुओं के बीच कैसे भिन्न होता है? और यह कुछ समय बाद स्वयं ही क्यों ठीक हो जाता है?

कॉलिक की समस्या 10 से 40 प्रतिशत बच्चों को प्रभावित करती है। यह समस्या डेढ़ महीने के शिशु से शुरू होकर 6 महीने तक की उम्र तक हो सकती है। इसकी खास बात यह है कि लड़कों और लड़कियों में समान उम्र पर ही होती है। कॉलिक की समस्या से निनटने के लिए फिलहाल कोई दवाई अभी उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि शिशुओं को स्तनपान कराने वाली महिलाएं यदि अपने खान-पान में बदलाव और करें और चिकित्सक की सलाह से डाइट लें तो काफी हद तक इससे बचा जा सकता है।




शिशु में कॉलिक होने का कैसे पता चल सकता है?

यदि आपका शिशु स्वस्थ होने और सही ढंग से दूध पीने के बावजूद भी अत्यधिक रोता है, तो हो सकता है कि उसे कॉलिक हो। आपके शिशु को कॉलिक या पर्सिसटेंट क्राइंग होने की पहचान निम्न तरीकों से की जा सकती हैः

  • शिशु बार-बार और तेज आवाज में रोता है। उसकी आवाज में तकलीफ महसूस की जा सकती है।

  • शिशु शांत कराने पर भी चुप नहीं होता।

  • वह रोते समय अपनी टांगों को अपने पेट तक ले आता है और अपनी पीठ को चापाकार (आर्च) में मोड़ लेता है।

  • वह अधिकांशतः दोपहर बाद या फिर शाम को रोता है (कॉलिक से ग्रस्त शिशु की पहचान करने का यह एक अच्छा तरीका है क्योंकि यदि शिशु किसी अन्य वजह से रो रहा हो तो हो सकता है उसका कोई निश्चित समय न हो)

  • क्या ऐसी स्थिति में शिशु को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए?

  • हां, यदि आपका शिशु अत्यधिक रोए तो सलाह यही दी जाती है कि आप शिशु के डॉक्टर की सलाह लें।

  • आप किस समय पर बच्चे को खाने को क्या दे रही हैं, कितने अंतराल पर दे रही हैं, वह सू-सू ठीक से जा रहा है, पॉटी ठीक से कर रहा है, मां का दूध ठीक से पी रहा है, यह सब जानकारी आप नोट करती रहें। डॉक्टर के पास जाते समय ये सभी जानकारियां लेकर ही जायें जिससे डॉक्टर को शिशु की परेशानी समझने में मुश्किल न हो।

  • वैसे तो कॉलिक के लक्षणों और चिकित्सा की डॉक्टरों को अभी पूरी जानकारी नहीं है किन्तु यदि शिशु की परवरिश और खान-पान में थोडी सावधानी बरती जाये तो काफी हद तक शिशु का इस प्रकार के इंन्फैक्शन से काफी हद तक बचाया जा सकता है।


बच्चे की इसी किलकारी के लिए माता-पिता क्या कर नहीं गुजरते। मां बनना एक सुखद अहसास है। इसके बिना एक औरत स्वयं को अधूरा ही समझती है। हर नवदम्पत्तियों को बच्चे की चाह होती है लेकिन जब वह माता-पिता बन जाते हैं तो शिशु की देखभाल करना एक बड़ी चिंता और जिम्मेदारी बन जाती है। मां बनने के साथ-साथ आपकी जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं। अनेकों सवाल होते हैं मन में कि कैसे होगा सब? क्योंकि बच्चे की देखभाल की विशेष आवश्यकता होती है।



नवजात शिशु की देखभाल करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें-

  • साफ़-सफ़ाई का विशेष ध्यान रखें

शिशु और स्वयं की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। क्योंकि इस समय बच्चों को इंन्फेक्शन जल्दी हो सकता है। इस समय बच्चों के नाखून बहुत ही जल्दी बढ़ते हैं, वह बहुत तेज भी होते हैं इसलिए जब शिशु गहरी नींद में हो तब बड़ी ही सावधानी से आप बच्चे के नाखून समय-समय पर काटते रहें। नहलाने के बाद बच्चे को बेहद मुलायम तौलिये से पोंछें, फिर बेबी पाउडर लगायें।



  • बच्चों के कपड़े

नवजात बच्चों के कपड़े बेहद मुलायम और कॉटन (सूती) के ही लें। आप इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि बच्चों के कपड़े ऐसे होने चाहिए जिन्हें पहनाना और उतारना बेहद आसान हो। शिशु के वस्त्रें में हुक या बटन नहीं होने चाहिए। बच्चों के चुभने का डर रहता है। इसके स्थान पर लूप या फीते वाले वस्त्र ही लें। बच्चों के कपड़े अलग बक्से में रखें जिससे ढूंढ़ने में परेशानी न हो।

बच्चों को हमेशा ही बिब पहनाकर रखें

छोटे बच्चों को हमेशा बिब पहनाकर रखें जिससे बच्चे की छाती गीली न हो। जब बच्चा दूध निकालेगा तो बिब ही गंदा होगा जिसे बदलना आसान होगा। और आपको पूरे वस्त्र नहीं बदलने पड़ेंगे।


  • मां का दूध है संपूर्ण आहार

मां के दूध में शिशु के लिए सभी पोषक तत्व मौजूद होते हैं। इसलिए बच्चे को सिर्फ मां का दूध ही दें। प्रसव के बाद मां का गाढ़ा पीला दूध नवजात शिशु को अवश्य पिलायें। इस दूध से बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। और मां को भी स्तन कैंसर का डर नहीं रहता। बच्चे के रोने की सही वजह जान कर ही बच्चे को दूध पिलायें। ऐसा नहीं कि जब-जब बच्चा रोये आप अपना दूध पिलाने लगें। बच्चे के रोने की और भी वजह हो सकती हैं। बच्चे को हर दो घंटे बाद दूध पिलायें। नवजात शिशु को मां के दूध के अलावा कुछ और नहीं देना है। यदि किसी वजह से शिशु को मां का दूध न मिल पा रहा हो तो शिशु को डिब्बे का पाउडर वाला दूध देने के स्थान पर गाय का दूध देना बेहतर होगा।



  • नवजात शिशु का बिस्तर

शिशु का बिस्तर या पालना (झूला) तेज रोशनी से दूर रखें। तेज रोशनी बच्चे पर नहीं पड़नी चाहिए। अधिक शोर-शराबा भी बच्चे के आसपास नहीं होना चाहिए। शिशु को कभी भी मुंह ढक कर न सुलायें। शिशु के सोने के बाद समय-समय पर देखते रहें कि बच्चा सही सो रहा है, उसे कोई दिक्कत तो नहीं है। शिशु का बिस्तर मुलायम होना चाहिए। कोशिश करें कि बच्चे को सोने के बाद न जगायें। यदि जगाना आवश्यक हो तो बच्चे के पैरों के तलवों को थोड़ा सा खुजलायें। इससे अधिक नहीं। बच्चे को सहसा नहीं जगायें।



  • शिशु की मालिश बेहद आवश्यक

शिशु को प्रतिदिन नहलाने से पहले बच्चे की मालिश अवश्य करें। मालिश के लिए आप देशी घी, सरसों का तेल, बेबी ऑयल, या फिर जैतून का तेल प्रयोग कर सकती हैं। शिशु के साथ मां को भी चाहिए कि वह स्वयं की मालिश का भी प्रबंध करें। बच्चे के साथ-साथ मां भी देखभाल भी बेहद आवश्यक है। मालिश से मां और शिशु दोनों की ही मांस-पेशियां मजबूत होंगी। रात्रि में सोने से पूर्व बच्चे की मालिश एक बार और कर दें इससे बच्चा गहरी नींद में सो सकेगा। मालिश से बच्चे और आपकी दिन भर की थकान दूर होगी।



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