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Vimla Sharma

भय, अंधकार का ही दूसरा रूप है। | Fear is another form of darkness.

Updated: May 5, 2023



आज विश्‍व, तीसरे विश्‍व युद्ध के मुहाने पर खडा है, अगर युद्ध हुआ तो यह युद्ध नहीं होगा, विनाश होगा, विनाश ही नहीं, महाविनाश होगा। यह बताने के लिए भी कोई नहीं बचेगा कि पृथ्‍वी पर जीवन कैसे समाप्‍त हुआ। अगर कोई बच भी गया तो भी इस स्थिति में नहीं होगा कि यह बता सके कि यह सब कैसे हुआ। फिर मंगल या अन्‍य ग्रहों के परग्रही आकर पृथ्‍वी पर रिसर्च करेंगे कि पृथ्‍वी पर जीवन था या नहीं?



सवाल यह उठता है कि हम इस विनाश को क्‍यों करना चाहते हैं? अपना अस्तित्‍व क्‍यों मिटाना चाह‍ते हैं?

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सुबह उठते ही जब अखबार उठाकर पढते हैं, युद्ध के समाचार ही सुनने को मिलते हैं। लोगों की सुबह यूक्रेन और रूस के युद्ध के समाचारों के साथ ही होती है। कुछ समय पहले की ही तो बात है जब पूरा विश्‍व कोरोना वायरस से लड रहा था, सभी मानवजाति को अस्तित्‍व को बचाने की जद्दोजहद में लगे थे, ले‍किन एकदम सभी कुछ बदल गया, कोरोना आया भी था, या नहीं, शायद किसी को याद ही नहीं, सभी भूल गये। लेकिन समस्‍या वही है, मा‍नव जाति को बचाना। लेकिन मानवजाति को अधिक खतरा किससे से है, महामारियों से या फिर स्‍वयं से?



मानव को स्‍वयं से ही खतरा है। महामारियों से तो लडा भी जा सकता है किन्‍तु स्‍वयं से लडना, स्‍वयं को आंकना आसान नहीं, इसके लिए साहस की आवश्‍यकता है। आज विश्‍व, तीसरे विश्‍व युद्ध के मुहाने पर खडा है, अगर युद्ध हुआ तो यह युद्ध नहीं होगा, विनाश होगा, विनाश ही नहीं, महाविनाश होगा। यह बताने के लिए भी कोई नहीं बचेगा कि पृथ्‍वी पर जीवन कैसे समाप्‍त हुआ। अगर कोई बच भी गया तो भी इस स्थिति में नहीं होगा कि यह बता सके कि यह सब कैसे हुआ। फिर मंगल या अन्‍य ग्रहों के परग्रही आकर पृथ्‍वी पर रिसर्च करेंगे कि पृथ्‍वी पर जीवन था या नहीं?



सवाल यह उठता है कि हम इस विनाश को क्‍यों करना चाहते हैं? अपना अस्तित्‍व क्‍यों मिटाना चाह‍ते हैं?

हम अपने अंदर से भयभीत हैं।

मनुष्‍य हमेशा से ही भयभीत रहा है। इसी के आधार पर उसका सारा जीवन खडा है। वह मंदिर जाता है, मस्जिद जाता है, गुरूद्वारे में मत्‍था टेकता है, क्‍या उसे ईश्‍वर से इतना प्‍यार है? नहीं, यह भय है। प्‍यार करने वाला डरता नहीं है वह भयमुक्‍त होता है। हमने जितने भी भगवान गढे हैं, भय के कारण ही गढे हैं। सत्‍ता इकट्ठा करने की चाह, धन इकट्ठा करने की चाह, शक्ति अर्जित करने की चाह, सभी का कारण भय है। हम स्‍वयं से भयभीत हैं। मनुष्‍य यह सब करके भयमुक्‍त होना चाह‍ता है। भयमुक्‍त होने के लिए अनेकों अविष्‍कार करता है, इसी चाह में दौडता रहता है।




सन्‍यासी हिमालय पर तपस्‍या के लिए चले गये, वह भी भय के कारण गये हैं। उन्‍हें नरक की यातनाओं का भय है, वह मोक्ष चाहते हैं। उनकी यह यात्रा भी भय के कारण ही है।




यह बात पूर्णत: असत्‍य है कि पहले लोग शांत हुआ करते थे, चिंतारहित थे। मनुष्‍य जैसा आज है, हजारों साल पहले भी वैसा ही था। यदि लोग शांत होते तो महाभारत जैसे महायुद्ध न होते, लोग शांति की खोज में हिमालय पर नहीं जाते।

प्रेम बहुत ही अमूल्‍य है यह हमें भयमुक्‍त कर देता है। जो प्रेम में डूब जाता है वह भयमुक्‍त हो जाता है।

प्रेम और भय दोनों ही एक सिक्‍के के दो पहलू हैं। जो भयभीत है वह प्रेम नहीं कर सकता, जो प्रेम में डूबा है, उसे किसी से, किसी बात का कोई भय नहीं है। उसे सब ओर प्रेम ही प्रेम नजर आता है। प्रेम हमारे नजरिये को सुंदरता से भर देती है।

मीरा कृष्‍ण के प्रेम में डूबी थी, उन्‍हीं के प्रेम में खोई रहती थी, तभी तो भयमुक्‍त थी। यही कारण था कि वह बिना किसी भय के विष का प्‍याला पी गई।





आपने भक्‍त प्रह्लाद की कथा तो सुनी ही होगी, उनके पिता, हिरण्‍यकश्‍यप मौत से भयभीत थे, वह अमर होना चाहते थे, उस उद्देश्‍य के लिए उन्‍होंने घोर तपस्‍या की, तपस्‍या से खुश होकर ईश्‍वर ने वर मांगने को कहा, हिरण्‍यकश्‍यप ने कहा कि भगवन मैं चाहता हूं कि मुझे कोई न मार सके, भगवान ने उसे वर दिया। जब उसे लगा कि मैं अमर हो गया हूं तो वह स्‍वयं को ईश्‍वर समझने लगा, उसने भगवान विष्‍णु की उपासना पर पाबंदी लगा दी, जो भी भगवान विष्‍णु की पूजा करता उसे घोर यातनाएं और दण्‍ड दिया जाता। वह अभी भी ईश्‍वर से भयभीत था। प्रह्लाद विष्‍णु भक्‍त थे। इसी भय के कारण वह अपने बेटे को यातनाएं दे रहे थे। प्रह्लाद ईश्‍वर से प्रेम करते थे, वह अंत तक बिना किसी भय के यातनाओं का सामना करते रहे। हिरण्‍यकश्‍यप, प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं कर सके।



कहने का तात्‍पर्य यह है कि आज तक मनुष्‍य जीवन का केन्‍द्र भय ही रहा है। हर शासक अपनी प्रजा को डराकर रखना चाहता है, जिस दिन भय समाप्‍त हो गया, उसका शासन समाप्‍त हो जायेगा। जिस दिन दुनिया से भय समाप्‍त हो जायेगा उस दिन दुनिया से जातिवाद, छूआछूत, ऊंच-नीच, छोटा-बडा, सामाजिक और राजनैतिक असमानता दूर हो जायेंगी। समाज में राजनी‍ति का उतना ही मूल्‍य होगा, मीरा के लिए कृष्‍ण का, वह भी भयमुक्‍त।



आज हर व्‍यक्ति भय से कांप रहा है। यह भय, उसके अंदर बाहर दोनों ओर ही हैं। आज जितना सभ्‍य और सम्‍पन्‍न देश है उतना ही अधिक भयभीत है। उसे अपना वर्जस्‍व खोने का भय है। सभी एक-दूसरे से भयभीत हैं। इस भय के कारण रोज इस युद्ध से गुजर रहे हैं। एक-दूसरे की तैयारी देखकर एक अदृश्‍य दौड में दौड रहे हैं।

इस दुनिया में राजनीतिक क्‍या चाहते हैं? सभी भयभीत हैं, फिर भी यह विश्‍वास जुटा लेना चाहते हैं कि हम भयभीत नहीं हैं। जितना जो शक्ति जुटा लेने में समर्थ है वह उतना ही अधिक भयभीत है। जब तक दुनिया में भय है तब तक दुनिया से ये युद्ध समाप्‍त नहीं होंगे। यह अवश्‍य संभव है कि युद्ध के कारण समाप्‍त हो जायें, मनुष्‍य ही समाप्‍त हो जायें। क्‍योंकि आज मनुष्‍य इतना समर्थ हो चुका है कि वह मनुष्‍यता को ही समाप्‍त कर दे।



भय, अंधकार का ही दूसरा रूप है। इस बारे में कुछ बातें जान लेना आवश्‍यक है कि एक भवन में घोर अंधकार है। उस भवन से क्‍या हम अंधकार को धक्‍का देकर निकाल सकते हैं? क्‍या हम सफल हुए, नहीं। भय रूपी अंधकार को निकालने के लिए हम बंदूके, बम, परमाणु बम, न जाने क्‍या-क्‍या बनाते जा रहे हैं। लेकिन यह अंधकार तो बढता ही जा रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्‍योंकि नकारात्‍मकता को नकारात्‍मकता से समाप्‍त नहीं किया जा सकता। हां, एक दिया जला दिया जाये तो अंधकार अवश्‍य ही दूर किया जा सकता है। अंधकार, प्रकाश की अनुपस्थिति मात्र है। प्रकाश को लाते ही अंधकार भाग जाता है। कोई चीज बाहर नहीं जाती। दीपक जलते ही अंधकार मिट जाता है। प्रकाश आ गया अनुपस्थिति समाप्‍त हो गई।




एक पुरानी घटना है। भगवान के पास आकर अंधकार ने रोकर कहा कि मैं बहुत परेशान हूं, सूरज मेरे पीछे पडा है। वह सुबह से मेरा पीछा करता है और शाम तक थका डालता है। जहां जाता हूं, वहां ही पहुंच जाता है। रात को थोडी देर सो पाता हूं कि वह फिर आ जाता है। मैंने सूरज का क्‍या बिगाडा है। भगवान ने कहा, यह तो बडा अन्‍यायपूर्ण है। उन्‍होंने सूरज को बुलाया, और पूछा तुम अंधकार के पीछे क्‍यों पडे हो? उसे क्‍यों परेशान कर रहे हो? उसने तुम्‍हारा क्‍या बि‍गाडा है? सूरज ने कहा, अंधकार? मैंने तो यह नाम तक नहीं सुना। मेरी उससे कभी मुलाकात नहीं हुई। मैंने उसे देखा तक नहीं। जिसे मैंने देखा तक नहीं, उससे शत्रुता कैसी? आप अंधकार को मेरे सामने बुला दीजिए, मैं क्षमा मांग लेता हूं। लेकिन स्‍वयं ईश्‍वर भी अंधकार को प्रकाश के सामने नहीं ला सके। प्रकाश एक सकारात्‍मकता है। अंधकार नकारात्‍मकता का प्रतीक है। प्रकाश की मौजूदगी ही अंधकार की गैरमौजूदगी है। दोनों एक साथ कभी नहीं रह सकते। यह असंभव है।



लेकिन मनुष्‍य के साथ सदियों से यह भूल हो रही है। भय, नकारात्‍मकता है, अंधकार है, भय किसी की अनुपस्थिति‍ है। प्रेम का अभाव ही भय है। जिस हृदय में प्रेम नहीं, वह भय रहेगा ही। यदि आपने जीवन में भी प्रेम का अनुभव किया होगा, तो महसूस अवश्‍य किया होगा कि जो क्षण प्रेम का है, वही अभय का क्षण है। मीरा ने निर्भय होकर विषपान किया। शहीद देश प्रेम में सूली पर चढ गये।

जहां प्रेम है वहां भय की कोई संभावना नहीं। यदि हम प्रेम का प्रकाश फैलायेंगे तो भयरूपी अंधकार स्‍वयं ही नष्‍ट हो जायेगा। मनुष्‍य जाति को प्रेम की शिक्षा नहीं दी गई है। उसे समय-समय पर भयभीत किया गया है। इसलिए सारी मनुष्‍यता ही नपुसंक हो गयी है। कोई जीवंत प्रेरणा नहीं बची है। दुनिया में सभी धर्म यही समझाते रहे हैं कि ईश्‍वर से डरो। किसी न यह नहीं कहा कि ईश्‍वर से प्रेम करो, जीवन से, मनुष्‍यता से प्रेम करो।





यदि हमें ऐसी दुनिया चाहिए जहां सौंदर्य हो, संगीत हो, आनन्‍द हो, गरिमा हो, स्‍वतंत्रता हो, जीवन में प्रकाशरूपी किरणें हों, तो हमें सर्वप्रथम मनुष्‍ता से नकारात्‍मकता को हटाना चाहिए। जीवन की समस्‍त शिक्षाओं को भयमुक्‍त करना चाहिए। मनुष्‍य में इतना प्‍यार छिपा जिसका कोई हिसाब नहीं। यदि प्रेम बढना शुरू हो गया तो यह दुनिया छोटी पड जायेगी। अणु का विस्‍फोट अनंत शक्ति को जन्‍म देता है, किसी प्रेम में कितनी शक्ति है यह किसी को ज्ञात ही नहीं है। कभी-कभी हमें इसकी झलक कभी बुद्ध में, कभी क्राइस्‍ट में, कभी सुकरात में, कभी गांधी में मिलती है।

प्रेम क्‍या है? प्रेम की यह नियति है कि यदि प्रेम मनुष्‍य में पैदा हो जाये तो वह हर्षोल्‍लास से भर जाता है, भयमुक्‍त हो जाता है। उसके अंदर प्रेम का बीज अं‍कुरित होकर विकसित हो फूलों से भर जाता है और उसकी सुगंध पूरे वातावरण को सुगंधित कर देती है।





IN ENGLISH:

When you wake up in the morning and read the newspaper, you hear the news of war. The morning of the people coincides with the news of the war between Ukraine and Russia. It was some time ago, when the whole world was fighting the corona virus, the whole human race was struggling to save the existence, but suddenly everything changed completely, whether corona had come or not, maybe someone Don't remember, everyone forgot. But the problem remains, but who threatens mankind more, from epidemics or from itself?



Man himself is at risk. Pandemic can be fought, but fighting oneself is not easy, it is not easy to judge oneself, it takes courage. Today the world is standing on the cusp of the third world war, if there is a war, there will be no war, there will be destruction, not only destruction, but there will be great destruction. There will be no one left to tell how life on earth ended. Even if someone survives, it will not be in such a situation how it will all happen. Then like Mars or other planets, whether there was life on Earth or not, aliens would definitely come and research.

The question arises that why do we want to do this destruction? Why do you want to erase your existence?



Are we scared inside?

Man has always been afraid. His whole life rests on this basis. He goes to temple, goes to mosque, prays in Gurudwara, why does he love God so much? No, it's not love, it's fear. He who loves is not afraid, he is free from fear. All the gods we have created are because of fear. The desire to accumulate wealth, the desire to acquire power, is the cause of all fear. By doing all this man wants to be free from fear. To be free from fear, he makes many inventions, keeps running in this desire.

The sannyasis went to the Himalayas for penance, they too have gone because of fear. They are afraid of the pain of hell, they want salvation. His journey is also because of fear.



Earlier people used to remain calm without any worry, this thing is completely untrue. Man was the same thousands of years ago as he is today. Had people been calm, there would not have been a great war like Mahabharata, people would not have gone to the Himalayas in search of peace. Love is so priceless, it frees us from fear. One who is immersed in love becomes fearless.

Love and fear are two sides of the same coin. He who fears cannot love; One who is in love is not afraid of anyone, anything. He sees love everywhere. Love fills our eyes beautifully.

Meera was engrossed in Krishna's love, was lost in his love, hence she was free from fear. This was the reason why he drank the cup of poison without any fear.



You must have heard the story of the devotee Prahlad, his father Hiranyakashipu was afraid of death, he wanted to be immortal, because of the fear of death, he did severe penance. Lord Shiva granted him a boon. Still he was afraid of death. Prahlad was a devotee of Vishnu. Because of this fear, Hiranyakashipu was torturing his son. Prahlad loved God, he endured the torture till the end, without any fear. Hiranyakashipu could not even shave Prahlad's hair.

That is to say, fear has been the center of human life till date. Every ruler wants to keep his subjects in fear, the day the fear ends, his rule will end. The day when the fear of the world will end, on that day catechism, untouchability, high and low, small and big, social and political inequality will be removed from the world.



Today everyone is trembling with fear. This fear is both inside and out. The more civilized and prosperous the country is today, the more it is feared. He is afraid of losing his dominance. Everyone is afraid of each other. Because of this fear, we are going through a war every day. Seeing each other's preparations, an invisible race is running.

What do politicians want in this world? Everyone is afraid, yet we want to believe that we are not afraid. The more power he is able to gather, the more he is afraid. As long as there is fear in the world, these wars with the world will not end. It is necessary that it should be destroyed due to war, it will be destroyed by humanity because today man has become so capable that only humanity can end it.



Fear is another form of darkness. It is important to know some things about it that there is complete darkness in a building. How can we remove the darkness from that building? Did we succeed, no? We are making guns, bombs, atomic bombs, don't know what, to dispel the darkness of fear. But this darkness is increasing. This is happening because negativity cannot be eliminated from negativity. Yes, if the lamp is lit, the darkness can definitely go away. Darkness is simply the absence of light. When light is brought in, darkness disappears. The darkness dissipates as soon as the lamp is lit. Light has come, darkness has ended.




This is an old incident. Once the darkness came to God and said that I am very upset, the sun is behind me. He follows me since morning and makes me tired till evening. Wherever I go, I reach there. I sleep for a while at night when he comes again. What have I done to the sun? God said, this is very unjust. He called Suraj and asked why are you behind the darkness? why are you troubling her? What has he done wrong to you? The sun said, dark? I haven't even heard of this name. I never met him. I haven't even seen him. What enmity is there that I haven't even seen? You call the darkness before me, I will ask for forgiveness from the darkness. But even God himself could not bring the darkness in front of the light. Light is a positivity. Darkness symbolizes negativity. The presence of light is the absence of darkness. Both can never be together. This is impossible.

But this mistake has been happening with man for centuries. Fear is negativity, darkness, fear is the absence of something. Fear is the absence of love. In a heart that does not have love, there will always be fear. If you have also experienced love in life, then definitely feel it. Would have said that the moment of love is the moment of fearlessness. Meera fearlessly drank the poison. Patriots were martyred in the love of the country.



Where there is love there is no possibility of fear. If we spread the light of love, the darkness of fear will automatically dissipate. Mankind has not been taught love. He has been threatened from time to time. Therefore all human beings have become impotent. There is no living inspiration left. All the religions of the world have been explaining that fear God. No one said love God, love life, love humanity.



If we want a world where there is beauty, there is music, there is joy, there is dignity, there is freedom, there are rays of light in life, then we have to remove the negativity from human being first. All the teachings of life should be free from fear. There is so much love hidden in man that there is no account of it. If love starts growing then this world will become smaller. The explosion of an atom gives rise to infinite power, no one knows how much power is in love. Sometimes we find glimpses of it in Buddha, sometimes in Christ, sometimes in Socrates, sometimes in Gandhi.

What is love The destiny of love is that if love is born in a man, he is filled with joy, becomes free from fear. The seed of love sprouts within it and grows, it fills with flowers and its fragrance permeates the whole environment.





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