सूर्य, संसार को उर्जा तथा प्रकाश , स्वास्थ्य एवं शक्ति देने वाले हैं। सूर्य नमस्कार के वैज्ञानिक लाभ है कि सूर्य को प्रातः नमन करने से सुबह की किरणों के फायदे शरीर को प्राप्त होते है। इस आसन को करने से शारीरिक व्यायाम तो होता ही है, साथ ही विचारात्मक एवं भावनात्मक शुद्धि भी मिलती हैं। सूर्योदय के समय, व्यायाम करने से सूर्य की किरणों द्वारा हमारे शरीर को विटामिन ‘डी’ की भी प्राप्ति होती है। इससे रक्त शुद्ध होता है तथा फेफड़े और हडि़याँ मजबूत होती हैं। सूर्य नमस्कार करने से चेहरे पर झुर्रियां देर से आती हैं और स्क्रीन में ग्लो आता है। सूर्य नमस्कार से पूरे शरीर का वर्कआउट होता है, इससे शरीर स्वस्थ बनता है।
सूर्य नमस्कार अर्थात, भगवान सूर्य नारायण की वंदना। वैसे तो ईश्वर हमारी कल्पना में ही होते हैं। उनके साक्षात दर्शन शायद ही किसी ने किये हों किन्तु, सूर्य नारायण का हम साक्षात दर्शन कर पाते हैं। हमारी संस्कृति व परंपरा है कि जब भी हम ईश्वर के दर पर जाते हैं तो प्रणाम अवश्य करते हैं। सूर्य नमस्कार केवल एक आसन नहीं है यह 12 आसनों को मिला कर ही सूर्य नमस्कार पूर्ण होता है।
यह एक अत्यंत प्राचीन भारतीय व्यायाम-विधि है। सूर्य नमस्कार, सुबह पूर्व दिशा में खड़े होकर, शांत चित्त से सूर्य की स्तुति करते हुए किया जाता है। सूर्य, संसार को उर्जा तथा प्रकाश देने वाले, स्वास्थ्य एवं शक्ति देने वाले हैं। सूर्य नमस्कार के वैज्ञानिक लाभ है कि सूर्य को प्रातः नमन करने से सुबह की किरणों के फायदे शरीर को प्राप्त होते है। इस आसन को करने से शारीरिक व्यायाम तो होता ही है, साथ ही विचारात्मक एवं भावनात्मक शुद्धि भी मिलती हैं। सूर्योदय के समय, व्यायाम करने से सूर्य की किरणों द्वारा हमारे शरीर को विटामिन ‘डी’ की भी प्राप्ति होती है। इससे रक्त शुद्ध होता है तथा फेफड़े और हडि़याँ मजबूत होती हैं। सूर्य नमस्कार करने से चेहरे पर झुर्रियां देर से आती हैं और स्क्रीन में ग्लो आता है। सूर्य नमस्कार से पूरे शरीर का वर्कआउट होता है, इससे शरीर स्वस्थ बनता है।
सूर्य नमस्कार में कुल बारह आसन या अवस्थाएँ या स्थितियाँ होती हैं। इन बारह अवस्थाओं द्वारा शरीर के लगभग सभी अंगो का उचित व्यायाम होता है। सूर्य नमस्कार से आंखों की रोशनी भी बढ़ती है। दरअसल इन बारह अवस्थाओं में दस आसन तथा दो स्थितियाँ अंत की हैं। ये बारह अवस्थाएँ ही एक पूरा सूर्य नमस्कार योग है।
यहां सूर्य नमस्कार के आसनों की विधियां दी गई है।
सूर्य नमस्कार में ध्यान रखने योग्य बातें-
कोई भी आसन हमेशा खुली और स्वच्छ जगह में ही करना चाहिए। सूर्य नमस्कार इस प्रकार कभी न करें, कि आपके शरीर पर दबाव पड़े और आप हाँफने लगें। सूर्य नमस्कार की क्रिया हर बार पैर को बारी-बारी से बदलते हुए प्रत्येक पैर पर एक के बाद एक करनी चाहिए। सूर्य नमस्कार आरम्भ करने से पहले आप सूर्यनारायण स्मरण करें तथा उनके विभिन्न नामों का स्मरण कर उन्हें मानसिक प्रणाम करें।
यदि उनके सभी नामों की जानकारी न हों या याद न हों तो सूर्य भगवान का स्मरण करते हुए उनकी मन ही मन वंदना करें।
यदि सूर्य मंत्र याद हो तो मन ही मन सूर्य का ध्यान करें ।
सूर्य नमस्कार करने की विधियां:
सूर्य प्रणाम आसन
जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक प्रणाम मुद्रा है। इस मुद्रा या आसन में दोनों पैरों पर सीधा सजग होकर खडे हो जायें। शरीर पूरी तरह से खिंचा हुआ होना चाहिए। फिर दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में लायें। मन ही मन सूर्य को प्रणाम करें। कोई मंत्र न जानते हों तो ‘ओम सूर्याय नम:’ का मन ही मन मनन करें। कुछ समय इसी मुद्रा में खडे रहें।
हस्त उत्तानासन
हस्त उत्तानासन करने के लिए गहरी सांस भरें और दोनों हाथों को पीछे की ओर ले जायें। हाथों को कानों से सटाकर ऊपर की ओर रखें। पीछे की ओर पूरे शरीर को जितना संभव हो झुकाने का प्रयास करें। यह आसन करते समय गहरी सांस लें। कुछ समय रूकें फिर धीरे-धीरे सांस छोडने के बाद पुन: सीधे खडे हो जायें। यह सूर्य नमस्कार की पहली अवस्था है, इस अवस्था को ‘दक्षासन’ कहा जाता है। ‘दक्ष ’ का अर्थ है सीधे खडा होना होता है।
यह आसन हृदय और फेफडों के लिए लाभदायक है। इस आसन से त्वचा और कमर दर्द के रोग दूर होते हैं। पीठ मजबूत बनती है और पैरो में ताकत मिलती है। मानसिक स्थिरता मिलती है। इस आसन से चेहरे पर तेज आता है। यह आसन पढने लिखने वाले किशोरों के लिए बहुत लाभ दायक होता है।
पाद हस्तासन आसन
इस अवस्था में आने से पहले गहरी सांस लें फिर घुटनों को बिना मोडे आगे की ओर झुकें। सिर को घुटनों पर लगाने का प्रयास करें तथा हाथों की हथेलियों को जमीन से लगायें या फिर पैरों के तलवों के नीचे लाने का प्रयास करें। इस अवस्था में थोडी देर रहें फिर वापिस अपनी अवस्था में आ जायें। इस आसन में हाथों से पैरों को पकडा जाता है इसलिए इसे पाद हस्तासन कहते हैं।
अश्व संचालन आसन
अश्व का अर्थ होता है घोडा इस आसन में वैसी स्थिति बनती है इसलिए इसे अश्व संचालन आसन भी कहते हैं। इस आसन में एक पैर पर बैठ जायें तथा दूसरे पैर को पीछे की ओर ले जायें तथा पंजे को जमीन पर टिकायें। हाथों की दोनों हथेलियां जमीन पर लगाकर रखें। सिर को ऊपर की ओर उठायें। कमर को सीधा ही रखें, इस आसन में इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि आपकी कमर मुडनी नहीं चाहिए। कुछ देर इसी स्थिति में रहें फिर यही क्रिया दूसरे पैर के साथ दोहरायें।
पर्वत आसन
पर्वत आसन करने के लिए पहले पद्मासन में बैठ जायें। फिर दोनों हथेलियों का सहारा लेकर आगे की ओर झुकें। फिर दोनों पैरों को पीछे की ओर ले जायें। पैरों के पंजों और हथेलियों पर पूरे शरीर को लेकर नितंबों को ऊपर की ओर उठायें।
अष्टांग नमस्कार
सूर्य नमस्कार की अगली स्थिति है अष्टांग नमस्कार। अर्थात आठ अंगों से नमस्कार।
इस आसन को करने के लिए पहले आप उल्टा लेट जायें। पैरों के पंजों को जमीन से लगायें तथा दोनों हाथों को थोडा पीछे की ओर ले जायें। हथेलियों को जमीन से लगायें। हथेलियों का सहारा देकर गर्दन को ऊपर की ओर उठायें और ऊपर की ओर देखने का प्रयास करें। इस आसन में कमर से ऊपर का भाग ही मुडना चाहिए।
भुजंगासन
भुजंग का अर्थ है सांप का फन। इस आसन की स्थ्िाति भी ऐसी ही है। भुजंगासन आसन को करने के लिए पुन: जमीन पर उल्टा लेट जायें। पैरों को सीधा करें। पंजों को जमीन पर लगायें। दोनों हाथों को कंधों के नीचे लायें। हथेलियों के सहारे शरीर को ऊपर की ओर ले जायें और ऊपर की ओर देखें। इस आसन में कमर के ऊपर के ऊपर का हिस्सा ही मुडना चाहिए।
इस आसन के पश्चात् सूर्य नमस्कार, समाप्ति की ओर आरम्भ हो जाता है।
इसलिए तत्पश्चात सभी उपरोक्त आसन पुन: दोहराये जाते हैं।
अष्टांग नमस्कार:
सूर्य नमस्कार की अगली स्थिति है अष्टांग नमस्कार। अर्थात आठ अंगों से नमस्कार।
इस आसन को करने के लिए पहले आप उल्टा लेट जायें। पैरों के पंजों को जमीन से लगायें तथा दोनों हाथों को थोडा पीछे की ओर ले जायें। हथेलियों को जमीन से लगायें। हथेलियों का सहारा देकर गर्दन को ऊपर की ओर उठायें और ऊपर की ओर देखने का प्रयास करें। इस आसन में कमर से ऊपर का भाग ही मुडना चाहिए।
पर्वत आसन:
पर्वत आसन करने के लिए पहले पद्मासन में बैठ जायें। फिर दोनों हथेलियों का सहारा लेकर आगे की ओर झुकें। फिर दोनों पैरों को पीछे की ओर ले जायें। पैरों के पंजों और हथेलियों पर पूरे शरीर को लेकर नितंबों को ऊपर की ओर उठायें।
अश्व संचालन आसन
अश्व का अर्थ होता है घोडा इस आसन में वैसी स्थिति बनती है इसलिए इसे अश्व संचालन आसन भी कहते हैं। इस आसन में एक पैर पर बैठ जायें तथा दूसरे पैर को पीछे की ओर ले जायें तथा पंजे को जमीन पर टिकायें। हाथों की दोनों हथेलियां जमीन पर लगाकर रखें। सिर को ऊपर की ओर उठायें। कमर को सीधा ही रखें, इस आसन में इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि आपकी कमर मुडनी नहीं चाहिए। कुछ देर इसी स्थिति में रहें फिर यही क्रिया दूसरे पैर के साथ दोहरायें।
पाद हस्तासन आसन
इस अवस्था में आने से पहले गहरी सांस लें फिर घुटनों को बिना मोडे आगे की ओर झुकें। सिर को घुटनों पर लगाने का प्रयास करें तथा हाथों की हथेलियों को जमीन से लगायें या फिर पैरों के तलवों के नीचे लाने का प्रयास करें। इस अवस्था में थोडी देर रहें फिर वापिस अपनी अवस्था में आ जायें। इस आसन में हाथों से पैरों को पकडा जाता है इसलिए इसे पाद हस्तासन कहते हैं।
हस्त उत्तानासन
हस्त उत्तानासन करने के लिए गहरी सांस भरें और दोनों हाथों को पीछे की ओर ले जायें। हाथों को कानों से सटाकर ऊपर की ओर रखें। पीछे की ओर पूरे शरीर को जितना संभव हो झुकाने का प्रयास करें। यह आसन करते समय गहरी सांस लें। कुछ समय रूकें फिर धीरे-धीरे सांस छोडने के बाद पुन: सीधे खडे हो जायें। यह सूर्य नमस्कार की पहली अवस्था है, इस अवस्था को ‘दक्षासन’ कहा जाता है। ‘दक्ष्’ का अर्थ है सीधे खडा होना होता है।
यह आसन हृदय और फेफडों के लिए लाभदायक है। इस आसन से त्वचा और कमर दर्द के रोग दूर होते हैं। पीठ मजबूत बनती है और पैरो में ताकत मिलती है। मानसिक स्थिरता मिलती है।
सूर्य प्रणाम आसन
इस मुद्रा या आसन में दोनों पैरों पर सीधा सजग होकर खडे हो जायें। शरीर पूरी तरह से खिंचा हुआ होना चाहिए। फिर दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में लायें। मन ही मन सूर्य को प्रणाम करें। कोई मंत्र न जानते हों तो ‘ओम सूर्य नम:’ का मन ही मन मनन करें। कुछ समय इसी मुद्रा में खडे रहें।
सूर्य नमस्कार किसे नहीं करना चाहिय:
सूर्य नमस्कार गर्भवती महिलाओं को नहीं करना चाहिए। हर्निया और उच्च रक्तचाप के मरीजों को सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए। पीठ दर्द की शिकायत के दौरान सूर्य नमस्कार बिना चिकित्सक की सलाह के नहीं करना चाहिए।
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