मांसाहारी मृत जीवों का भोजन होता है। कोई भी जीव मृत होने के बाद सडने लगता है उसमें अनेक प्रकार के ऐसे जीवाणु पैदा होने लगते हैं जो स्वस्थ शरीर के लिए खतरनाक होते हैं, अनेक प्रकार की बीमारियों का कारण बनते हैं।
''एक कहावत है कि जैसा अन्न, वैसा मन, तैसा तन।''
कहने का अर्थ है कि शाकाहारी भोजन, स्वस्थ व पौष्टिक भोजन करने से सोच सात्विक होती है, स्वस्थ शरीर रहता है, मन शांत रहता है। अनेक प्रकार से रोगों से बचाता है।
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शाकाहारी भोजन हो या मांसाहारी, किसी भी भोजन में कोई बुराई नहीं है। यह व्यक्ति के अपनी पसंद, स्वाद और जलवायु पर निर्भर करता है। भोजन शारीरिक विकास, और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है। किन्तु हम इस बात को भी नकार नहीं सकते कि आदिकाल में मानव मांसाहारी ही था, वह शिकार करके अपना पेट भरता था। समय बदलने के साथ मानव ने बहुत विकास किया है, साथ ही वह इस स्थिति में भी आ चुका है कि वह मांसाहारी और शाकाहारी भोजन में से शारीरिक और मानसिक तौर पर एक मनुष्य को कौन सा भोजन करना श्रेष्ठ है?
यह सभी जानते हैं कि शाकाहारी भोजन और मांसाहारी भोजन दोनों ही सजीव पेड-पौधों और जीव-जंतुओं से ही आता है, जब फल को वृक्ष से तोड़ते हो, तब उन्हें भी चोट पहुंचती है। सब्जी काटते हो, तब भी चोट पहुंचती है।
फिर भी शाकाहारी भोजन को ही श्रेष्ठ कहा गया है।
शाकाहारी व मांसाहारी भोजन किसे कहते हैं?
अनाज, साग-सब्जी, दालें, फल, दूध आदि शाकाहारी भोजन कहलाता है। और जो माँस, मछली, अंडा आदि खाते है वो मांसाहारी कहलाते है।
भोजन वही अच्छा कहा जाता है जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन ,खनिज लवण, रेशा और जल तत्व मौजूद हों।
यह बात सौ फीसदी सत्य है कि शाकाहारी भोजन और मांसाहारी भोजन दोनों ही सजीव पेड-पौधों और जीव-जंतुओं से ही आता है, जब फल को वृक्ष से तोड़ते हो, तब उन्हें भी चोट पहुंचती है। सब्जी काटते हो, तब भी चोट पहुंचती है।
फिर भी शाकाहारी भोजन को ही श्रेष्ठ कहा गया है क्योंकि वृक्षों, सब्जियों के पास उतना ज्यादा विकसित स्नायु-संस्थान नहीं है, जितना पशुओं के पास है। पशुओं के पास उतना विकसित संस्थान नहीं है, जितना मनुष्यों के पास है। इसलिए जितनी पीड़ा मनुष्य अनुभव करता है मृत्यु में, उतनी पशु नहीं अनुभव करते। क्योंकि मनुष्य के पास सोच-विचार है, मृत्यु का बोध है, मर रहा हूं इसकी समझ है, मारा जा रहा हूं? इसकी समझ है। क्योंकि चेतना मनुष्य की चेतना बहुत प्रगाढ़ है। एक कारण यह भी है जिसके कारण शााकाहारी भोजन को श्रेष्ठ कहा गया है।
हिंदू अतीत में यज्ञ में मनुष्य की बलि चढ़ाते रहे, नरमेध यज्ञ होते रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे उन यज्ञों को करने वालों को भी पता चला कि यह तो अतिशय है और इसलिए उन्होंने भी व्याख्या बदल दी। मनुष्य बहुत ज्यादा संवेदनशील है। किसी को भी मारना भयंकर हिंसा है और उस हिंसा को करने वाला व्यक्ति तामसी कहलाता है।
बुद्ध, महावीर ने सिर्फ शाकाहार के लिए कहा है। उन्होंने कहा, पशुओं को छोड़ दो क्योंकि तुम मारते’ हो, काटते हो। उन्हें पीडा होती है। ऐसा क्यों करते है? भोोजन के साधारण से स्वाद के लिए तुम किसी का जीवन ले रहे हो। अपने जीवन में इतनी हिंसा कर रहे हो, तो तुम्हारे भीतर तमस बहुत गहरा है, तुम अंधे हो। तुम्हारी संवेदना समुचित नहीं है। तुम मनुष्य होने के योग्य ही नहीं हो। इसलिए महावीर ने तो मांसाहारी भोजन को बिलकुल वर्जित किया है। बुद्ध ने थोड़ी-सी शर्त रखी हैं। वह शर्त भी बहुत कीमती है। बुद्ध ने कहा कि मरे हुए जानवर का मांस खा लेने में कोई हर्ज नहीं है। ओशो कहते हैं कि बात तर्कयुक्त है। क्योंकि अगर मारने के कारण ही आदमी तामसी हो जाता है, तो मरे हुए जानवरों का मांस खाने में तो कोई हर्ज नहीं है। इसलिए बौद्ध मरे हुए जानवर का मांस खाने में मांसाहार नहीं मानते।
भगवान कृष्ण मांसाहार को उचित नहीं मानते। भगवान कृष्ण के अनुसार मांसाहार बासी भोजन है और बासी भोजन तामसी है। जैसे ही जानवर मरता है, उसके सारे मांस और खून का गुणधर्म बदल जाता है। खून तो विलीन ही हो जाता है और मांस में सड़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। क्योंकि मांस तभी तक जीवित था, जब तक प्राण थे। प्राण के हटते ही मांस सड़ने लगा, तो वह तो बिलकुल ही बासी भोजन है।
इसलिए सिर्फ शूद्रों ने ही मांसाहार भोजन स्वीकार किया है, यही वजह है कि डॉक्टर अंबेडकर ने शूद्रों को बौद्ध धर्म स्वीकार करने को कहा। मरे हुए को मारा नहीं जाता, इसलिए कोई हिंसा नहीं है। भगवान बुद्ध ने एक कारण से मांसाहारी भोजन को आज्ञा दी।
प्राचीन काल में एक ऋषि हुए कणाद। उनका नाम कणाद इसलएि पडा क्योंकि वह कारण से आज्ञा दी कि एक बहुत बड़ा प्राचीन, कणाद। उनका नाम ही कणाद इसलिए पड़ गया क्योंकि खेतों में जो कण अपने आप पककर गिर जाते थे या फसल काटने के बाद और कटी फसल हटाने के बाद जो कण बच जाते थे वह उन्हीं कणों से अपने भोजन का निर्वाह करते थे। वह अत्यंत अहिंसक ऋषि थे। पका हुआ गेहूं, जो अपने से गिर गया। और वह भी किसान से मांगकर नहीं, क्योंकि किसान पर भी क्यों बोझ बनना! जब पक्षी दाने बीनकर जी लेते हैं, तो आदमी भी ऐसे ही जी ले। इस प्रकार उनका नाम ही कणाद हो गया।
भगवान कृष्ण के अनुसार अगर मरे हुए जानवर को खाया जाए, तो कृष्ण के हिसाब से तामसी होगा, क्योंकि बासी और मुर्दा भोजन जीवन तंद्रा अर्थात थकान, आलस बढ़ाएगा, निद्रा लाएगा, मूर्च्छा बढ़ाएगा, शूद्रता पैदा करेेगा। मनुष्य में ब्राह्मणत्व का सत्व पैदा नहीं हो सकेगा
यह सत्य है कि मांसाहार चाहे मुरदे का हो, चाहे मारे गए जानवर का हो, नब्बे प्रतिशत तमस है। दस प्रतिशत या नौ प्रतिशत मौकों पर रजस में दौड़ाएगा। एक ही प्रतिशत मौका है कि उससे कोई सत्व में उठ सके।
इसे थोड़ा समझना होगा। यह सच है कि रामकृष्ण परमहंस व विवेकानंद दोनों ही मांसाहारी थे, फिर भी रामकृष्ण परम ज्ञान को उपलब्ध हुए। जो लोग धार्मिक होते हुए भी मांसाहारी भोजन का सेवन करना चाहते हैं वह इस तरह का तर्क दे मांसाहार का सेवन करते हैं। जैसा कि हम ऊपर चर्चा कर चुकेे हैं कि भोजन उस क्षेत्र की परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है। मछली और चावल बंगाल का मुख्य भोजन है। साथ ही यह भी सत्य है कि रामकृष्ण अत्यंत शुद्ध पुरुष हैं। इसलिए इतनी थोड़ी-सी अशुद्धि उन्हें बाधा न डाल पाई। इसका अर्थ केवल इतना ही है कि यह व्यक्ति इतना शुद्ध है कि इतनी-सी अशुद्धि इस पर कुछ बाधा नहीं डाल पाई। यह उस अशुद्धि के बावजूद भी पार हो गया। ऐसा ही समझो कि पहाड़ पर तुम चढ़ते हो। तो पहाड़ पर चढ़ने का नियम तो यही है कि जितना कम बोझ हो, उतना ठीक। और अगर तुम बोझ सिर पर लेकर चढ़ रहे हो, तो चढ़ना मुश्किल हो जाएगा। शायद तुम चढ़ने का ख्याल ही छोड़ दोगे, या बीच के किसी पड़ाव पर रुक जाओगे। लेकिन फिर एक बहुत शक्तिशाली मनुष्य, कोई हरक्यूलिस भारी वजन लेकर पहाड़ पर चढ़ रहा है और चढ़ जाता है। यह नियम नहीं है यह आदमी। यह हरक्यूलिस नियम नहीं है। यह इतना ही बता रहा है कि यह इतना शक्तिशाली पुरुष है कि उतना-सा वजन इसे चढ़ने में बाधा नहीं डालता। यह उस वजन के साथ चढ़ जाता है। तुम कमजोर हो, तुम उस वजन के साथ न चढ़ सकोगे। रामकृष्ण अपवाद हैं। तुम महावीर और बुद्ध से ज्यादा पवित्र आदमियों की कल्पना भी कैसे कर सकते हो! उनको भी छोड़ देना पड़ा। उनको भी लगा कि यह बोझ है। और यह बोझ अटकाएगा, यात्रा पूरी न होने देगा। यह गौरीशंकर तक नहीं पहुंचने देगा, बीच में कहीं पड़ाव बनाना पड़ेगा, थककर बैठ जाना पड़ेगा।
यह सत्य है कि कभी कोई जीसस, कभी कोई मोहम्मद और कभी कोई रामकृष्ण मांसाहार करते हुए भी ज्ञान को प्राप्त हुए हैं। वे हरक्यूलिस हैं। ये अपवाद हैं और अपवाद सिर्फ नियम को सिद्ध करते हैं। अपवाद से अपवाद सिद्ध नहीं होता, सिर्फ नियम सिद्ध होता है।
पश्चिम में किसी को समझाओ कि शराब गलत है, लोग हंसेंगे कि पागल हो गए हैं! जीसस को गलत नहीं, तो हमें कैसे गलत? और कुछ न मानें जीसस में, कम से कम इतना तो मानते ही हैं। और बातें कठिन हों, मगर यह तो सरल है। इसका तो हम अनुगमन कर लेते हैं।
जीसस जैसे लोगों के पीछे धर्म नहीं होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य कि जीसस के पीछे दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है। दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या ईसाइयों की है। और सबसे कम संख्या जैनियों की है, महावीर के पीछे। कारण है इसमें भी। क्योंकि महावीर तुम्हारी कमजोरियों को जरा भी मौका नहीं देते। वह कहते हैं कि ज्ञान प्राप्ति के लिए साथ चल सकते हो लेकिन कोई बहाना नहीं, लेकिन जीसस के साथ न भी यात्रा करनी हो, तो भी तुम ईसाई रह सकते हो। मांसाहार करो, शराब पीओ, सब कर सकते हो और ईसाई भी हो सकते हो। यह रास्ता सरल है।
यहां हम चर्चा कर रहे हैं कि मांसाहारी भोजन क्यों नहीं करना चाहिए और शाकाहारी भोजन क्यों करना चाहिए। मांसाहारी मृत जीवों का भोजन होता है जो कोई भी जीव मृत होने के बाद सडने लगता है उसमें अनेक प्रकार के ऐसे जीवाणु पैदा होने लगते हैं जो स्वस्थ शरीर के लिए खतरनाक होते हैं अनेक प्रकार की बीमारियों का कारण बनते हैं।
''एक कहावत है कि जैसा अन्न, वैसा मन, तैसा तन।''
कहने का अर्थ है कि शाकाहारी भोजन, स्वस्थ व पौष्टिक भोजन करने से सोच सात्विक होती है, स्वस्थ शरीर रहता है, मन शांत रहता है। अनेक प्रकार से रोगों से बचाता है।
इसके विपरीत मांसाहारी भोजन से शरीर शाकाहारी भोजन के मुकाबले जल्दी पौष्टिक तत्व आदि तो मिल लाते हैं किन्तु मांसाहारी भोजन को सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। आये दिन मांसाहार से कई प्रकार की महामारियां फैलने की खबरें आती रहती हैं। बर्ड फ्लू (Bird flu), कोविड-19 (Covid-19), इबोला (Ebola), सार्स (SARS) जैसी बीमारियों के नाम कोई अनजान नहीं है।
शाकाहारी भोजन साधारण व्यक्तियों के साथ आध्यात्म के रास्ते पर चलने वाले, सभी के लिए श्रेष्ठ व उचित है। शाकाहारी भोजन मानवता, प्रकृति सभी सुरक्षित हैं।
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