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Vimla Sharma

गर्भाधान और संस्कार | Conception and Rites




उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए गर्भाधाान संस्कार जरूरी होता है। जब पति-पत्नी के मिलन से संतान की उत्पति से होती है, तो उस मिलन को ही गर्भाधान संस्कार का पहला चरण कहा जाता है। गर्भावस्था के दौरान मां के सकारात्मक रहनेे से बच्चे की सोच व व्यवहार पर उसका असर पड़ता है। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसका महत्व है।



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आधुनिक भाषा में बात करें तो गर्भधारण केवल एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। किन्तु वैदिक काल में संस्कारों का अत्यंत महत्व था। जीवन का कोई भी कार्य संस्कारों के बिना संपन्न नहीं होता था। गर्भाधान केवल एक प्रक्रिया नहीं है। यदि हम भारतीय संस्कृति के अनुसार कहें तो यह भी एक प्रकार का संस्कार ही है। प्राचीन काल में जीवन के प्रत्येक कार्य संस्कारों के अनुसार ही होते थे। किन्तु धीेरे-धीरे यह हमारे जीवन से दूर होते चले गये। कारण चाहे कोई भी रहे हों किन्तु परिणाम किसी भी नजरिये से अच्छे नहीं रहे।



हमारे शास्त्रें में सोलह संस्कारों का वर्णन है। इनमें पहला गर्भाधान संस्कार और मृत्यु के उपरांत अंत्येष्टि, अंतिम संस्कार है। गर्भाधान के बाद पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण ये सभी संस्कार नवजात को दिये जाते हैं। शिशु, दीर्घकाल तक धर्म और मर्यादा की रक्षा करते हुए एक आदर्श जीवन जीये यही इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है।



गर्भधान संस्कार क्या है?

गर्भ का मतलब मां के अंदर पल रहे भ्रूण से है, जबकि संस्कार का मतलब ज्ञान से है, यानी शिशु को गर्भ में ही शिक्षा देना गर्भाधान या फिर गर्भ संस्कार कहलाता है।



उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए गर्भाधान संस्कार जरूरी होता है। जब पति-पत्नी के मिलन से संतान की उत्पति से होती है, तो उस मिलन को ही गर्भाधान संस्कार का पहला चरण कहा जाता है। गर्भावस्था के दौरान मां के सकारात्मक रहनेे से बच्चे की सोच व व्यवहार पर उसका असर पड़ता है। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसका महत्व है। गर्भावस्था के दौरान महिला जो खाती है, उसका असर शिशु पर जरूर होता है। उसी प्रकार महिला क्या सोचती है, क्या बोलती है व क्या पढ़ती है, उसका असर भी गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है। इसलिए, गर्भवती महिला को उत्तम भोजन करना चाहिए और हमेशा प्रसन्न रहना चाहिए

गर्भावस्था के दौरान सिर्फ अपना और शिशु का ध्यान रऽना ही काफी नहीं है, बल्कि शिशु के साथ आत्मीय संबंध बनाना भी जरूरी है। आप जैसे ही गर्भ धारण करती हैं, गर्भाधान संस्कार शुरू हो जाता है। इस दौरान आप बच्चे से बात करें और उसे अच्छी-अच्छी कहानियां सुनाएं। वैज्ञानिक रूप से भी यह साबित हो चुका है कि गर्भ में पल रहा भूण हर आवाज पर अपनी प्रतिक्रिया देता है। मां के शरीर से कुछ हार्मोंस निकलते हैं, जो शिशु को एक्टिव करते हैं। इसलिए, आप पूरे गर्भावस्था के दौरान सकारात्मक सोच बनाए रऽें। ऐसा माना जाता है कि गर्भाधान संस्कार पूरी गर्भावस्था के साथ-साथ शिशु के 2 वर्ष का पूरा होने तक चलता है।

गर्भ संस्कार स्वस्थ बच्चे का जन्म देने का सर्वाेत्तम तरीका है। यह मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से भी मां और बच्चे के लिए लाभदायक है।



गर्भवती मां के लिए गर्भ संस्कारों के अनुसार टिप्स

  • गर्भावस्था में पौष्टिक आहार बेहद जरूरी है, क्योंकि भ्रूण का विकास मां के स्वास्थ्य और पोषण पर निर्भर करता है। इसलिए, मां को विटामिन और ऽनिजों से भरपूर आहार लेना चाहिए। मां को केवल सात्विक भोजन करना चाहिए। नशीले पदार्थों का सेवन बिल्कुल ही न करे।

  • गर्भावस्था में महिला को मूड स्विंग जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है, लेकिन गर्भ संस्कार आपको अपनी भावनाओं को नियंत्रण करने में मदद करता है। यह मां और बच्चे दोनों के लिए अच्छा है।

  • डॉक्टरो के अनुसार हल्के-फुल्के व्यायाम व योग करें। प्राणायाम अवश्य करें, इससे आपको अधिक लाभ होगा। इससे तनाव कम होगा तथा नींद भी अच्छी आएगी, प्रसन्न रहेंगी। प्राणायाम करने से शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास बहुत अच्छा होगा।


  • संगीत भी तनाव को दूर करता है। संगीत से मन और मस्तिष्क दोनों को ही शांति मिलती है। अगर मां अच्छा संगीत सुनती है, तो बच्चे भी उसका प्रभाव पड़ता हैं और वह खुश रहता है।

  • आप स्वयं से तो कभी न कभी बात करती ही होंगी। ठीक इस तरह ही आप अपने गर्भस्थ शिशु से भी बात करें। ऐसा करने से आपको अकेलापन दूर होगा और और खुशी का अहसास होता है। कई बार शिशु प्रतिक्रिया भी देता है। भावनाएं और विचार, अजन्मे बच्चे को भी प्रभावित करते हैं। गर्भस्थ शिशु बाहर की ध्वनि, प्रकाश और गति से प्रभावित होता है। गर्भावस्था के दौरान जब आप खुश होती है तब आपके बच्चे में भी कुछ सकारात्मक भावनाओं का संचार होता है। वहीं, अगर मां नकारात्मक सोचती है और दुखी रहती है, तो बच्चे पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।



गर्भ संस्कार का शिशु के जीवन में महत्व-

  1. गर्भ संस्कार को करने से गर्भ में पल रहे शिशु में सद्गुणों का विकास हो सकता है और शिशु स्वस्थ भी हो सकता है।

  2. गर्भाधान संस्कार के कारण शिशु का स्वभाव शांत हो सकता है और वह हमेशा प्रसन्न रह सकता है। साथ ही वह तेजस्वी, स्वस्थ, सुन्दर, बुद्धिमान, निर्भीक और संस्कारवान भी हो सकता है। गर्भधान संस्कार के कारण गर्भावस्था आराम से गुजरती है।

कैसे करें गर्भ संस्कार की विधि-

  • अच्छी व संस्कारवान संतान की प्राप्ति के लिए पति-पत्नी का मिलन शुभ मुहूर्त में होना चाहिए। गर्भ संस्कार को कभी भी अशुभ मुहूर्त और क्रूर ग्रहों के नक्षत्र के समय नहीं करना चाहिए। श्राद्धपद, ग्रहणकाल, पूर्णिमा या फिर अमावस्या को नहीं करना चाहिए।


  • मिलन से पहले सर्वप्रथम दंपति को अपनी कुंडली के अनुसार ग्रहों की शांति करवानी चाहिए फिर गर्भधान संस्कार को संपन्न करना चाहिए।

  • शास्त्रें के अनुसार मासिक धर्म की शुरुआत की पहली 4 रातों, 11 वीं और 12 वीं रातों को गर्भ संस्कार नहीं करना चाहिए।



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